विशेष सीबीआई अदालत ने रिटायर्ड आईपीएस अफ़सर डी. जी. वंजारा और एन. के. अमीन के ख़िलाफ़ हत्या, साजिश और दूसरे आपराधिक आरोप यह कह कर रद्द कर दिए हैं कि मुक़दमा चलाने के लिए ज़रूरी अनुमति गुजरात सरकार ने नहीं दी है। अदालत ने कहा है कि इन अभिुयक्तों पर मुक़दमा चलाया जाना चाहिए, पर उसके लिए धारा 197 के तहत गुजरात सरकार की अनुमति नहीं मिली है, लिहाज़ा तमाम आरोप निरस्त किए जाते हैं।
यानी यह साफ़ है कि अदालत इन लोगों को इशरत जहाँ मुठभेड़ मामले में निर्दोष नहीं मानती है। गुजरात सरकार ने जानबूझ कर मुक़दमा चलाने की अनुमति नहीं दी। इससे साफ़ है कि गुजरात सरकार जानबूझ कर इन अभियुक्तों को बचा रही है।
क्या है मामला?
गुजरात पुलिस ने 15 जून, 2004 को अहमदाबाद शहर में एक मुठभेड़ में इशरत जहाँ और उनके साथ अमजद रज़ा राणा, प्राणेश पिल्लई उर्फ़ जावेद ग़ुलाम शेख और जीशान जौहर को मार गिराया था। पुलिस ने दावा किया था कि ये आतंकवादी थे और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करना चाहते थे। लेकिन पुलिस के दावे पर शक किया गया था, यह कहा गया था कि यह मुठभेड़ फ़र्जी था और मारे गए लोग न तो आतंकवादी थे न ही वे राज्य के मुख्यमंत्री की हत्या करने के लिए गए हुए थे। इस मामले सीबाई को सौंप दिया गया था।
अब सवाल यह उठता है कि आख़िर गुजरात सरकार क्यों एक हत्या अभियुक्त को बचा रही है? वह इशरत जहाँ मुठभेड़ मामले की तह में क्यों नहीं जाना चाहती है? क्या इसके पीछे कोई बड़ी वजह है और क्या वह किसी बड़े आदमी को बचाना चाहती है? यदि हाँ तो वह आदमी कौन है?
सीबीआई ने 22 अक्टूबर, 2018 को विशेष अदालत से कहा था कि उसने धारा 197 के तहत गुजरात सरकार से वंजारा और अमीन पर मुक़दमा चलाने की अनुमति माँगी है। इसके पहले 7 अगस्त को विशेष अदालत के जज जी. के. पांड्या ने वंजारा और अमीन को दोषमुक्त क़रार देने और बरी करने की दरख़्वास्त को यह कह कर खारिज कर दिया था कि इनके ख़िलाफ़ मामला बनता है और इन पर मुक़दमा चलना चाहिए। अदालत ने सीबीआई को एक महीने का समय दिया और 22 नवंबर को फिर सुनवाई करने की तारीख़ दी। लेकिन उसके पहले ही 5 नवंबर को एक सनसनीखेज खुलासा हुआ।
शोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले के गवाह आज़म ख़ान ने यह दावा कर सबको चौंका दिया कि वंजारा ने गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री हीरेन पांड्या की हत्या करने का आदेश दिया था।
मामला क्या था?
गुजरात पुलिस ने शोहराबुद्दीन, उनकी पत्नी कौसर बी और तुलसीराम प्रजापति को एक मुठभेड़ में मार गिराया था। इस मुठभेड़ को भी फ़र्ज़ी बताया गया था। इस मामले में भी वंजारा का नाम आया था। इस तरह यह आरोप बनता था कि हीरेन पांड्या हत्याकांड के तार वंजारा से जुड़ते थे।
आज़म ख़ान शोहराबुद्दीन के नज़दीकी सहयोगी थे। 'द वायर' में छपी ख़बर के अनुसार,
“
शोहराबुद्दीन ने बातचीत के दौरान मुझसे कहा था कि उसे, नईम ख़ान और शाहिद रामपुरी को गुजरात के हीरेन पांड्या की हत्या का ठेका मिला था। मुझे इसका दुख हुआ और मैंने शोहराबुद्दीन से कहा कि उसने एक अच्छे आदमी की हत्या कर दी। शोहराबुद्दीन ने मुझसे कहा था कि हीरेन की हत्या करने का ठेका उसे वंजारा से मिला था।
आज़म ख़ान, गवाह, शोहराबुद्दीन कांड
इस पर काफ़ी बवाल मचा था। स्वराज अभियान के नेता और मशहूर वकील प्रशांत भूषण ने ट्वीट कर कहा था, 'यह बड़ी बात है। गवाह का कहना है कि नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्री हीरेन पांड्या की हत्या का ठेका शोहराबुद्दीन को दिया गया था।'
इसी तरह भारतीय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा था, ‘ऊपर से ये काम दिया था। कौन है ये ऊपर?’
इसी तरह यह भी दिलचस्प बात है इशरत जहाँ मामले में वंजारा जेल में थे और उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। लेकिन इस्तीफ़े में उन्होंने अमित शाह की तीखी आलोचना की थी। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति सद्भाव दिखाया था, लेकिन गुजरात सरकार की तीखी आलोचना की थी।
वंजारा के इस्तीफ़े का एक हिस्सा
तो क्या गुजरात सरकार इस कारण वंजारा को बचा रही है कि उनके पास शोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले और हीरेन पांड्या हत्याकांड मामले से जुड़े तथ्य हैं। क्या ये ऐसी जानकारियाँ हैं, जिन्हें गुजरात सरकार सामने लाना नहीं चाहती है? क्या वह चाहती है कि वंजारा का मुँह बंद रखा जाए, उन्हें बरी करवा दिया जाए? क्या वंजारा इस मामले में बरी होने के लिए अपना मुँह बंद रखना चाहते हैं?
इन सवालों के जवाब सत्य हिन्दी के पास नहीं है। हमें नही पता कि सच्चाई क्या है। पर ये सवाल हैं, जिनका जवाब पूछा जाना चाहिए
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