गंगा नदी को बचाने के लिए चार महीनों से आमरण अनशन पर बैठे पर्यावरण वैज्ञानिक जी. डी. अगरवाल जो स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के नाम से जाने जाते थे, उनकी मौत हो गई। वे ऋषिकेश के ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइसेंज में भर्ती थे। यह उनके आमरण अनशन का 111वाँ दिन था। उन्होंने 22 जून को अनशन शुरू किया था।
क्या थी मांगें?
डॉक्टर अगरवाल की तीन प्रमुख मांगें थीं। - राष्ट्रीय नदी (संरक्षण और प्रबंधन) अधिनियम 2012 को संसद से पारित करवाया जाए। इससे गंगा नदीं के मैनिजमेंट के प्रावधान तय होते और उन्हें लागू करने के लिए सरकार पर दबाव डाला जा सकता था।
- उत्तराखंड में गंगा में गिरने वाली नदियों अलकनंदा, धौलीगंगा, मंदाकिनी, नंदकिनी और पिंडारी पर बन रही पनबिजली परियोजनाओं को बंद कर दिया जाए।
- गंगा से बालू निकालने का काम बंद हो।
वे चाहते थे कि सरकार नदी की ‘अविरल धारा’ यानी न्यूतम प्राकृतिक धारा सुनिश्चित करे ताकि नदी कहीं भी और कभी भी न सूखे।
मोदी को लिखी थी चिट्ठियाँ
डॉक्टर अगरवाल ने माँग की थी कि गंगा श्रद्धालु परिषद बनाई जाए जो गंगा नदी के प्रबंधन का कामकाज स्वतंत्र रूप से करे। उन्होंने राज्य सरकार के अलावा केंद्र सरकार को भी चिट्ठियाँ लिखीं। अनशन शुरू होने के पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक ख़त लिख कर अनशन की जानकारी दी थी।
डॉक्टर जी. डी. अगरवाल ने अनशन शुरू करने से पहले प्रधानमंत्री को यह चिट्ठी लिखी थी
उन्होंने मोदी को छह ख़त लिखे। अंतिम तीन चिट्ठियां 24 फ़रवरी, 23 जून और 5 अगस्त को लिखी गई थीं। मोदी की ओर से कोई जवाब नहीं गया। इसके उलट उनकी हालत ख़राब होने के बाद उन्हें जबरन अस्पताल में भर्ती कराया गया था।
अगरवाल ने इलाज कराने से साफ़ इनकार कर दिया तो उन्हें जबरन उठा कर एम्स में दाख़िल कराया गया।
डॉ. अगरवाल ने पहले भी गंगा के लिए कई बार अनशन का रास्ता अपनाया है। ऐसे ही एक मौक़े पर 2012 में जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब उनके स्वास्थ्य के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए ट्वीट किया था कि केंद्र को गंगा को बचाने के लिए ठोस उपाय करने चाहिए (ट्वीट नीचे देखें) लेकिन जब आज प्रथानमंत्री हैं तो उनकी कोई मांग मानना तो दूर, उनकी चिट्ठियों का जवाब तक नहीं दिया।
उमा भारती ने हालाँकि उनकी ख़ैर-ख़बर ली और ट्वीट किया कि उन्होंने अगरवाल की हालत नाज़ुक होने की जानकारी नैशनल मिशन फ़ॉर क्लीन गंगा के प्रभारी नितिन गडकरी को दी थी। उन्होंने जोड़ा कि उनकी मौत की आशंका भी जताई थी। पर बाद में उन्होंने इस बयान को वापस ले लिया। इस पर्यावरण वैज्ञानिक की मौत के बाद मोदी ने फिर ट्वीट कर शोक जताया। लेकिन ऐसी स्थिति न आए, इसके लिए कुछ नहीं किया। अगरवाल की मौत के बाद नितिन गडकरी ने अविरल धारा सुनिश्चित करने के लिए कुछ घोषणाएँ कीं, पर उनमें नया कुछ नहीं था। यह मुख्य रूप से 'डैमेज कंट्रोल' के तहत किया गया था, यानी लोगों के गुस्से से सरकार को नुक़सान न हो, इसकी कोशिश भर की गई।
पर्यावरण वैज्ञानिक की कुल कोशिश गंगा को बचाने की थी। यह वही गंगा है, जिसे बचाने का भरोसा मोदी ने देश को दिया था। उनके मुताबिक़, इसी गंगा को बचाने के लिए उन्होंने वाराणसी से चुनाव लड़ा था। पर उन्होंने इस मुद्दे पर कुछ नहीं किया, यह साफ़ है। यह मोदी की 'बोलो और भूल जाओ' की कार्यशैली भी दर्शाती है।
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