किसी को अपने पिता के लौटने का इंतज़ार था तो किसी को अपने बेटे का। किसी को अपने पति का तो किसी को अपने भाई और दोस्त का। जब आख़ीरी बार बातें हुई थीं तो जल्द लौटने का वादा किया था। घरवाले इंतज़ार में थे। वे लौटे भी। लेकिन तिरंगे में लिपटे हुए। लौटे उस गौरव और सम्मान के साथ जिसे हर देशवासी पाना चाहता है। अपनी मातृभूमि के लिए ख़ुद को क़ुर्बान तक कर देने का गौरव।
'जिस दिन घर लौटना तय था उस दिन शहीद होने की ख़बर मिली'
- देश
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- 4 May, 2020
किसी को अपने पिता के लौटने का इंतज़ार था तो किसी को अपने बेटे का। किसी को अपने पति का तो किसी को अपने भाई और दोस्त का। जब आख़ीरी बार बातें हुई थीं तो जल्द लौटने का वादा किया था। वे लौटे भी। लेकिन तिरंगे में लिपटे हुए।

आँसुओं के साथ यही गौरव उन पाँचों शहीदों के परिवार के लोगों में है जो जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में आतंकियों से लड़ते हुए शहीद हो गए। परिवारों को अपनों को खोने का दुख है तो देश के लिए जान तक न्यौछावर कर देने का गर्व भी। उन सभी परिवारों की अलग-अलग कहानियाँ हैं।