क्या मौजूदा केंद्र सरकार को सामान्य आलोचना भी बर्दाश्त नहीं? और क्या उसे पत्रकारों, स्तंभकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का सरकार के ख़िलाफ़ बोलना पसंद नहीं है? और मौक़ा मिलते ही उन्ह सबक सिखाने की कोशिश करती है? हाल की दो घटनाओं से तो यह संदेश साफ है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार-स्तंभकार आकार पटेल के ख़िलाफ़ मामला दर्ज सिर्फ इसलिए किया गया है कि उन्होंने अमेरिका में चल रहे विरोध प्रदर्शन की तरह ही भारत में भी प्रदर्शन करने की बात की। दूसरे, पत्रकार विनोद दुआ के ख़िलाफ़ पुलिस में ए़फ़आईआर इसलिये दर्ज कराई गयी है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की है।
विरोध की बात भी अपराध?
अमेरिका के मीनियापोलिस राज्य में पुलिस ज़्यादती में एक अश्वेत व्यक्ति की मौत के बाद पूरे देश में ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन चल रहा है, जिसमें श्वेत भी बड़ी तादाद में भाग ले रहे हैं। मानवाधिकार के लिए काम करने वाली संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल के पूर्व अध्यक्ष आकार पटेल ने एक ट्वीट कर कहा,
“
'हमें इस तरह के प्रदर्शनों की ज़रूरत है। दलित, मुसलिम और आदिवासियों की ओर से। और ग़रीबों और महिलाओं की ओर से। दुनिया देखेगी। विरोध एक कला है।'
आकार पटेल, पूर्व अध्यक्ष, एमनेस्टी इंटरेशनल
कर्नाटक के बंगलुरु में पुलिस ने जे. सी. नगर थाने में पटेल के ख़िलाफ़ एक एफ़आईआर दर्ज कर ली है। उन पर धारा 505 (1), 153 और 117 के तहत मामला दर्ज किया गया है। उन पर आरोप है कि उन्होंने लोगों को गड़बड़ी पैदा करने और दंगा करने के लिए भड़काया है।
विनोद दुआ
इसी तरह वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ पर 'सार्वजनिक रूप से गड़बड़ी फैलाने' का आरोप लगाते हुए उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई है। पुलिस ने भारतीय जनता पार्टी के एक प्रवक्ता की शिकायत पर यह शिकायत दर्ज की है।
एफ़आईआर में कहा गया है कि दुआ ने 'ग़लत मंशा से झूठी ख़बर फैला कर देश में शांति भंग करने की कोशिश की है।'
क्या कहा विनोद दुआ ने?
विनोद दुआ टीवी के बेहद प्रतिष्ठित एंकर-पत्रकार हैं। दुआ ने कहा है कि 'प्रधानमंत्री दंतविहीन व्यक्ति है, जिनमें देश की समस्याओं से निपटने की क्षमता नहीं है।'बीजेपी ने पुलिस को यह भी शिकायत की है कि दुआ ने दिल्ली दंगों पर 'ग़लत रिपोर्ट दी है' और कहा है कि 'केंद्र ने इस दंगे को रोकने के लिए कुछ नहीं किया, उन्होंने अपने शब्द बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के मुँह में डाल दिया है।'
इस आधार पर ही दुआ के ख़िलाफ़ धाना 290 (गड़बड़ी फैलाने), 505 (सार्वजनिक गड़बड़ के लिए बयान देने) और 505 (2) (लोगों में डर फैलाने) का मामला दर्ज कर दिया गया है।
याद दिला दें कि इस तरह की वारदात पहले ही हो चुकी है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने पिछले दिनों द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन के ख़िलाफ़ मामला इसलिए दर्ज किया था कि उसने अपने फेसबुक पोस्ट में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की आलोचना की थी।
केंद्र सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को पहले भी निशाने पर लिया जा चुका है और उन्हें परेशान किया गया है। सवाल यह कि सरकार को क्या किसी तरह की आलोचना बर्दाश्त नहीं है? और क्या मीडिया का मुँह बंद करने की कोशिश की जा रही है?
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