क्या मोदी सरकार हर भारतीय की जासूसी कर रही है? क्या लोगों के निजी डाटा पर सरकार लगातार निगरानी कर रही है? फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार कॉग्नाइट और सेप्टियर जैसी इजरायली टेक कंपनियों से शक्तिशाली निगरानी उपकरण खरीदकर अपने नागरिकों की जासूसी कर रही है।
फाइनेंशियल टाइम्स यानी एफ़टी की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार एक 'पिछले दरवाजे' के माध्यम से व्यक्तिगत डेटा को इंटरसेप्ट करती है। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि इसके माध्यम से नरेंद्र मोदी सरकार देश के 1.4 बिलियन नागरिकों की जासूसी करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में हर दिन व्यक्तिगत डेटा समुद्र के नीचे केबल लैंडिंग स्टेशनों के माध्यम से गुजरती है जो देश के तट के चारों ओर बने हैं और देश को बाकी दुनिया से जोड़ते हैं। इनमें से प्रत्येक में हार्डवेयर लगाया गया है जो एआई और डेटा एनालिटिक्स की मदद लेकर ज़रूरत पड़ने पर देश की सुरक्षा एजेंसियों को डेटा ढूंढकर, कॉपी कर दे सकता है।
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट की सत्य हिंदी पुष्टि नहीं करता है, लेकिन उस रिपोर्ट में जो आरोप लगाए गए हैं वे काफ़ी गंभीर हैं। फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट में दुनिया भर के देशों में पनडुब्बी केबल परियोजनाओं पर काम करने वाले चार लोगों का हवाला दिया गया है, जिन्होंने कहा, 'भारत इस मामले में असामान्य है कि यहां दूरसंचार कंपनियों को खुले तौर पर समुद्र के नीचे केबल लैंडिंग स्टेशनों और डेटा केंद्रों पर निगरानी उपकरण स्थापित करने की ज़रूरत होती है जो कि संचालन की शर्त के रूप में सरकार से अनुमोदित हैं।'
भारत के संचार बाजार के तेज गति से बढ़ने के साथ ही कई कंपनियाँ निगरानी उपकरण बेचने की होड़ में हैं। इनमें वेहेयर जैसी घरेलू इकाइयां शामिल हैं, लेकिन इज़राइल की कॉग्नाइट और सेप्टियर जैसी कंपनियां भी शामिल हैं जिनके बारे में लोगों को कम ही पता है।
रिपोर्ट के अनुसार एक अन्य इजरायली कंपनी कॉग्नाइट भी भारत में निगरानी उपकरण उपलब्ध कराती है।
2021 में मेटा ने आरोप लगाया था कि कॉग्नाइट उन कई कंपनियों में से एक थी जिनकी सेवाओं का इस्तेमाल कई देशों में पत्रकारों और राजनेताओं को ट्रैक करने के लिए किया जा रहा था, हालाँकि इसमें भारत का उल्लेख नहीं था।
डेक्कन हेरल्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि सेप्टियर उन दर्जनों कंपनियों में से एक थी जिन्हें अटलांटिक काउंसिल ने 2021 में संभावित रूप से गैर-जिम्मेदार प्रसारक माना था। अमेरिका स्थित थिंक टैंक ने अनुमान लगाया था कि ये कंपनियां जोखिम को स्वीकार करने या अनदेखा करने को तैयार हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार ने साफ़ किया है कि इस निगरानी को सख्ती से नियंत्रित किया जाता है और सभी निगरानी अनुरोधों को गृह सचिव द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
एफ़टी ने रिपोर्ट दी है कि हालाँकि आलोचकों का मानना है कि ये सुरक्षा 'रबर स्टैम्पिंग' के बराबर हैं और दुरुपयोग को रोकने के लिए बहुत कुछ नहीं करते हैं।
बता दें कि मोदी सरकार पहले ही जासूसी के आरोपों का सामना कर चुकी है। 2019 और 2021 में पत्रकारों और कार्यकर्ताओं के फोन पर एक हैकिंग टूल पेगासस पाया गया था। हालाँकि सरकार ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया है कि उसने इजरायली समूह एनएसओ से स्पाइवेयर को लगाया था। लेकिन तकनीक के क्षेत्र में काम करने वाली कई कंपनियों ने उन लोगों के फोन में पेगासस जैसे स्पाइवेयर होने के दावे किये।
अब, नए डेटा संरक्षण कानून के साथ अधिकारियों के पास गोपनीयता सुरक्षा उपायों को दरकिनार करने की व्यापक शक्तियां भी हैं। एफटी ने आलोचकों के हवाले से कहा है कि इससे सरकारी निगरानी के लिए अनुकूल स्थिति बनती है। डेक्कन हेरल्ड ने रिपोर्ट के हवाले से ख़बर दी है कि भारतीय सुरक्षा और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को निगरानी उपकरणों के माध्यम से डेटा तक पहुँच प्राप्त करनी होती है, लेकिन इसके लिए उन्हें अदालत का आदेश प्राप्त करने की ज़रूरत नहीं होती है।
इधर, रिपोर्ट के अनुसार सेप्टियर ने कहा, 'विदेशी संस्थाओं को हमारी कंपनी की बिक्री इजरायली अधिकारियों द्वारा विनियमित होती है और हमारा सारा व्यवसाय कानून के पूर्ण अनुपालन में होता है।' एफटी के अनुसार, इसके द्वारा बेचे जाने वाले उत्पाद और इसके ग्राहकों के बारे में जानकारी गोपनीय है।
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