किसान संगठनों ने शनिवार को देशभर में राजभवनों की ओर कूच किया है। 2020 में आज ही के दिन किसानों ने दिल्ली के तमाम बॉर्डर पर और देश भर में केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। शनिवार को उत्तर प्रदेश के साथ ही पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड आदि राज्यों में किसान संगठनों ने अपनी ताकत दिखाई है।
किसान संगठनों का कहना है कि सरकार ने उन्हें लिखित में आश्वासन दिया था कि वह फसलों के लिए एमएसपी लागू करेगी लेकिन अभी तक कुछ नहीं किया गया है।
26 नवंबर, 2020 को किसान संगठनों ने दिल्ली के सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर डेरा डाल दिया था। किसानों ने 1 साल तक तमाम जगहों पर जोरदार प्रदर्शन किया था। कई बार ट्रेनें रोकी गई थीं। किसानों की मांगों के आगे झुकते हुए नवंबर, 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान किया था।
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माना गया था कि पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी ने यह फैसला लिया था। किसान आंदोलन की वजह से बीजेपी के नेताओं को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ ही पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड और देश के अलग-अलग इलाकों में जोरदार विरोध का सामना करना पड़ा था।
शनिवार को लखनऊ में मजदूर किसान महापंचायत भी रखी गई। इसमें किसान नेता राकेश टिकैत भी शामिल हुए। उन्होंने कहा है कि किसानों के कई मुद्दे हैं जिनकी ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। किसानों का कहना है कि उनके साथ वादाखिलाफी की गई है।
किसानों की मुख्य मांग
- एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाए।
- किसानों का कर्जा माफ हो।
- किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस हों।
- सिंचाई के लिए फ्री बिजली दी जाए।
- आवारा पशुओं का बंदोबस्त किया जाए।
- गन्ने का बकाया भुगतान किया जाए।
- बिजली की 24 घंटे आपूर्ति की जाए।
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