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नए कृषि क़ानूनों को लेकर केंद्र सरकार और किसान यूनियनों के नेताओं के बीच शुक्रवार को एक बार फिर दिल्ली के विज्ञान भवन में हुई बैठक बेनतीजा रही। अगली बैठक 19 जनवरी को दिन में 12 बजे होगी। बैठक में किसान और सरकार दोनों अपने रुख पर अड़े रहे। किसानों ने बैठक से पहले ही साफ़ कर दिया था कि वे कृषि क़ानूनों को रद्द करने और एमएसपी की क़ानूनी गारंटी देने पर ही बात करेंगे।
बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि किसानों की शंकाओं का समाधान करने की कोशिश की गई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। उन्होंने कहा, ‘हमारी कोशिश है कि बातचीत के जरिये रास्ता निकले और किसान आंदोलन ख़त्म हो। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जो कमेटी बनाई है, वह जब भारत सरकार को बुलाएगी तो हम उसके सामने अपना पक्ष रखेंगे। यह कमेटी भी इस मसले का हल ढूंढने के लिए ही बनाई गई है।’ उन्होंने कहा कि किसान भी आगे की बातचीत जारी रखना चाहते हैं।
बैठक में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, कृषि विभाग के अफ़सर सहित 40 किसान संगठनों के नेता मौजूद रहे।
30 दिसंबर की बैठक में सरकार थोड़ा झुकी थी और उसने पराली से संबंधित अध्यादेश और प्रस्तावित बिजली क़ानून को लेकर किसानों की मांगों को मान लिया था। लेकिन 8 जनवरी की बैठक में सरकार ने साफ कर दिया था कि वह कृषि क़ानूनों को वापस नहीं लेगी।
बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों से कहा था कि किसान संगठन क़ानूनों को रद्द करने के अतिरिक्त कोई और विकल्प दें तो सरकार उस पर विचार करेगी। जबकि किसानों की मांग इन कृषि क़ानूनों को वापस लेने और एमएसपी पर गारंटी का क़ानून बनाने की है।
किसानों व सरकार के बीच जारी गतिरोध को ख़त्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 4 सदस्यों की एक कमेटी बनाई लेकिन कमेटी को लेकर विवाद शुरू हो गया और कहा गया कि इसमें शामिल सभी सदस्य कृषि क़ानूनों के घोर समर्थक रहे हैं।
इस कमेटी में शामिल भूपिंदर सिंह मान ने गुरूवार को ख़ुद को इससे अलग कर लिया। मान भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और ऑल इंडिया किसान को-ऑर्डिनेशन कमेटी के प्रमुख भी हैं। मान ने कहा है कि वह पंजाब और देश के किसानों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे। ऐसे में कमेटी के गठन पर ही सवाल खड़े हो गए हैं।
मान के इस फ़ैसले का किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने स्वागत किया है और कहा है कि किसानों के लिए किसी भी कमेटी का कोई महत्व नहीं है क्योंकि कमेटी का गठन करना उनकी मांग ही नहीं है।
किसान संगठनों के नेताओं ने कमेटी के सामने पेश होने और उससे बात करने से साफ इनकार कर दिया है। किसानों का कहना है कि कमेटी में शामिल चारों लोग पहले ही कृषि क़ानूनों का समर्थन कर चुके हैं, ऐसे में आख़िर वे इन कमेटियों के सामने क्यों पेश होंगे। उन्होंने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि वे इस आंदोलन को और तेज़ करेंगे। इससे इस मसले का हल निकलना और मुश्किल हो गया है।
कृषि क़ानूनों को लेकर मोदी सरकार पर विपक्षी दलों ने दबाव बढ़ा दिया है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर कहा है कि सरकार को ये क़ानून वापस लेने ही होंगे। गुरूवार को मदुरै पहुंचे राहुल ने कहा कि वे किसानों के साथ खड़े हैं और आगे भी खड़े रहेंगे। बता दें कि राहुल इस मसले पर पंजाब में ट्रैक्टर यात्रा भी निकाल चुके हैं और राष्ट्रपति से भी मिल चुके हैं।
एक ओर किसानों की ट्रैक्टर परेड की तैयारी है तो दूसरी ओर दिल्ली पुलिस ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। पुलिस ने अदालत में दायर याचिका में कहा है कि वह इसके ख़िलाफ़ आदेश जारी करे। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इस मामले में किसान यूनियनों को नोटिस जारी किया है।
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