महामहिम,
यह चिट्ठी मैं आपको भारी मन से लिख रहा हूँ।
11 जनवरी, 2019 को सारे न्यूज़ चैनलों पर यह ब्रेकिंग न्यूज़ थी कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलिजियम ने कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश माननीय दिनेश माहेश्वरी और दिल्ली हाई कोर्ट के जज माननीय जस्टिस संजीव खन्ना को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त करने की सिफ़ारिश की है। पहले तो मुझे माननीय जस्टिस संजीव खन्ना की प्रोन्नति पर यक़ीन नहीं हुआ कि कैसे दिल्ली हाई कोर्ट में अत्यंत योग्य और बेहद ईमानदार और देश भर में वरिष्ठता के मामले में 30 और जजों की अनदेखी कर उनका नाम बढ़ाया गया। इस ख़बर की पुष्टि के लिए मैं लगातार चैनल बदलता रहा और मुझे यह ख़बर सही लगी। जो क़ानूनी मसलों से जुड़ी वेबसाइट हैं, वहाँ भी इस मामले की विस्तृत कवरेज देखने को मिली। इसके साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर भी कॉलिजियम के फ़ैसले की जानकारी थी।
आपको इस बात की जानकारी हो सकती है कि वेबसाइट पर यह लिखा है कि कॉलिजियम ने सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीशों और दूसरे नंबर के जजों के नामों पर भी विचार-विमर्श किया और वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि ये दोनों व्यक्ति हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और दूसरे नंबर के जजों से ज़्यादा योग्य और क़ाबिल पाए गए।
कॉलिजियम ने अपने फ़ैसले में 12 दिसंबर 2018 को लिए गए कुछ दूसरे फ़ैसलों का भी ज़िक्र किया है। कॉलिजियम का प्रस्ताव यह भी कहता है कि अदालत में शीतकालीन छुट्टी की वजह से आवश्यक परामर्श नहीं किया जा सका और जब अदालत छुट्टी के बाद खुली तब तक कॉलिजियम की संरचना बदल चुकी थी।
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ईमानदारी की बात यह है कि इस ब्रेकिंग न्यूज़ ने सारी परंपराओं को तोड़ दिया है और इस वजह से पूरे न्यायिक और वैधानिक समुदाय में तूफ़ान खड़ा हो गया है। देश के कई मुख्य न्यायाधीश समेत 32 जजों के विवेक, योग्यता और ईमानदारी को दरकिनार करने वाला यह फ़ैसला भयावह और चौंकाने वाला है। हम सब लोग जानते हैं कि माननीय जस्टिस संजीव खन्ना, न केवल पूर्व माननीय जस्टिस डी. आर. खन्ना के बेटे हैं, बल्कि अति सम्मानित माननीय जस्टिस एच. आर. खन्ना के भतीजे भी हैं।
न्यायपालिका से जुड़े लोगों के बीच यह चर्चा गर्म है कि जस्टिस खन्ना को प्रोन्नति उनके महान चाचा की विरासत को सम्मान, उनके महान आदर्शों, उसूलों और दर्शन के साथ ही बंदी प्रत्यक्षीकरण के मामले में उनके साहसिक क़दम को सम्मान देने की कोशिश है। हम सब जानते हैं कि इमर्जेंसी के दौरान जब सरकार ने नागरिकों के जीवन और सुरक्षा पर जिस तरीके के प्रतिबंध लगाए थे, जिसको सुप्रीम कोर्ट के चार सबसे वरिष्ठ जजों ने सही ठहराने का काम किया था, उस वक़्त जस्टिस खन्ना चट्टान की तरह खड़े रहे और विरोध में अपनी आवाज़ बुलंद की।
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ऐसा कहा जाता है कि जस्टिस खन्ना कोर्ट के बहुमत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ हस्ताक्षर करते समय जानते थे कि वह कभी मुख्य न्यायाधीश नहीं बन पाएँगे। जब वह वक़्त आया तब जस्टिस खन्ना की वरिष्ठता को नज़रअंदाज कर जस्टिस एम. एच. बेग को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। जस्टिस खन्ना ने उन तमाम लोगों को जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता से खिलवाड़ करने के पक्ष में थे, इस्तीफ़ा देकर उनके गाल पर तमाचा मारा था। जस्टिस खन्ना की जगह जस्टिस बेग की नियुक्ति को भारतीय न्यायपालिका के इतिहास मे काला अध्याय माना जाता है।
दिसंबर, 1978 को सुप्रीम कोर्ट के कोर्ट नंबर दो में उनकी आदम क़द तस्वीर लगाई गई। आज तक किसी और जज को यह सम्मान हासिल नहीं हुआ कि उनके जीवित रहते सुप्रीम कोर्ट में उनकी तस्वीर लगाई जाए।
अभी ज़्यादा वक़्त नहीं हुआ है जब माननीय चीफ़ जस्टिस गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट के चार अन्य जजों के साथ ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की और उन मसलों को उठाया था जो वे उस वक़्त के मुख्य न्यायाधीश के रहते हुए झेल रहे थे।
तब मीडिया को संबोधित करते हुए कहा गया था कि अगर इस संस्थान की सुरक्षा नहीं की गई तो इस देश में लोकतंत्र नहीं बचेगा। यह भी कहा गया था कि स्वतंत्र न्यायपालिका के बग़ैर लोकतंत्र नहीं बचेगा।
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र जो अपनी मज़बूत न्यायपालिका के लिए मशहूर है, के मुखिया होने के नाते
महामहिम से मैं यह गुज़ारिश करता हूँ कि वह इस मामले पर ग़ौर करें। आप ख़ुद न्यायपालिका से जुड़े रहे हैं, लिहाजा आप ख़ुद देखें कि कैसे कॉलिजियम के 5 वरिष्ठतम जजों ने लगभग 32 वरिष्ठ जजों की वरिष्ठता को नकारा है। ऐसे में लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता कैसे अक्षुण्ण रहेगी।
यह नहीं भूला जा सकता कि डेढ़ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट की कॉलिजियम ने माननीय जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की वरिष्ठता को नज़रअंदाज किया था और अब मामूली अंतराल के बाद वही सबसे योग्य उम्मीदवार मान लिए गए हैं।
एक ऐसी ऊर्जावान न्यायपालिका जिसने समय-समय पर अपनी साख पर उठने वाले सवालों का बड़ी मजबूती से सामना किया है, उसके एक सदस्य के रूप मे मैं यह चिट्ठी लिख रहा हूँ। लेकिन मुझे यह डर है कि न्यायपालिका की साख़ नहीं बचेगी। इन 32 जजों में बहुत से ऐसे हैं जो जस्टिस खन्ना से कम योग्य और ईमादार नहीं है और जिनकी योग्यता को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है, अगर उनकी अनदेखी होगी तो यह एक काला दिन साबित होगा। न्यायपालिका की विरासत, जिस पर हम लोगों को गर्व है और जिस विरासत को कॉलिजियम भी पूरी निष्ठा के साथ बचा कर रखना चाहता है, उसके साथ अगर ऐसा होगा तो वह किसी दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना से कम नहीं होगा।
ऊपर कही गई बातों के सदर्भ में मैं विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करता हूँ कि एक और ऐतिहासिक ग़लती न होने दी जाए।
सादर,
कैलाश गंभीर
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