चुनाव आयोग ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स का ज़ोरदार शब्दों में विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि इससे राजनीतिक दलों को पैसे देने की प्रक्रिया की पारदर्शिता कम होगी। आयोग ने यह भी कहा है कि यह पीछे ले जाने वाला कदम है। अदालत ने इस पर सुनवाई की अगली तारीख़ 2 अप्रैल तय की है।
लेकिन इसके साथ ही एक नई बहस की शुरुआत हो गई है। चुनावों को प्रभावित करने की कॉरपोरेट जगत की कोशिशें और चुनावों पर धन-बल के बढ़ते प्रभाव को कम करने की कोशिश के तहत ही इलेक्टोरल बॉन्डस की पहले की गई थी। इससे जुड़े विधेयक को लोकसभा में पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बढ़ चढ़ कर दावे किए थे और बताया था कि किस तरह इससे राजनीति में काले धन का प्रभाव ख़त्म हो जाएगा। पर शुरुआत में ही यह साफ़ हो गया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जो वजहें बताई गईं हैं, असली कारण ठीक इसके उलट हैं। यह तो साफ़ है कि इससे पारदर्शिता कम होगी, काले धन का प्रभाव बढ़ेगा, कॉरपोरेट जगत बिना सामने आए अपने मनपसंद दल को मनमाफ़िक पैसे दे सकेगा और कोई समझ भी नहीं पाएगा कि किस कंपनी ने किस पार्टी को कितने पैसे दिए। और उस पर तुर्रा यह कि सब कुछ पाक साफ़ है।