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चुनाव आयोग में क्या पादर्शिता बची है- सरकार की चुप्पी के बीच विपक्ष का सवाल

लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के अचानक इस्तीफे को लेकर कई विपक्षी नेताओं ने हैरानी व्यक्त की है, जिससे आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर देश भर में व्यापक चिंता जताई जा रही है। विपक्ष ने केंद्र की आलोचना की और कहा कि सरकार पारदर्शी और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया में दिलचस्पी नहीं रखती है।

चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के इस्तीफे की घोषणा शनिवार को की गई और राष्ट्रपति ने इसे आनन-फानन में स्वीकार कर लिया। सरकार की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई। अभी यह तक नहीं बताया गया है कि आयोग में दो चुनाव आयुक्तों के खाली पद कब भरे जाएंगे, जबकि आम चुनाव 2024 सिर पर आ चुका है।

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कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा- “यह काफी चौंकाने वाला है। चुनाव की घोषणा से ठीक पहले चुनाव आयुक्त ने इस्तीफा दे दिया है. अब तो एक ही चुनाव आयुक्त है... इस चुनाव आयोग में क्या हो रहा है? पूरा देश चिंतित है। वेणुगोपाल ने कहा-  "भारत सरकार स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं चाहती है।"

वेणुगोपाल ने कहा- “इससे पहले, उन्होंने भारत के चीफ जस्टिस को चुनाव आयोग और चुनाव आयुक्त की चयन प्रक्रिया से हटा दिया। सीजेआई के स्थान पर उन्होंने एक कैबिनेट मंत्री को शामिल किया...अब यह एक सरकारी मामला बन गया है...इस प्रक्रिया में पारदर्शिता खो गई है।''
2019 के चुनावों के दौरान, तत्कालीन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिए पीएम को क्लीन चिट देने के खिलाफ असहमति जताई थी। बाद में, उन्हें लगातार पूछताछ का सामना करना पड़ा। वेणुगोपाल ने उस घटना को याद दिलाते हुए कहा कि सरकार का यह रवैया दर्शाता है कि मोदी सरकार लोकतांत्रिक परंपराओं को नष्ट करने पर तुली हुई है।

तानाशाही लोकतंत्र हड़प लेगीः खड़गे

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सवाल किया- "चुनाव आयोग या चुनावी चूक? भारत में अब केवल एक चुनाव आयुक्त है, जबकि कुछ ही दिनों में लोकसभा चुनावों की घोषणा होनी है। क्यों?" खड़गे ने एक्स पर लिखा- "जैसा कि मैंने पहले कहा है, अगर हम अपने स्वतंत्र संस्थानों की तबाही को नहीं रोकते हैं, तो हमारा लोकतंत्र तानाशाही द्वारा हड़प लिया जाएगा!" 

टीएमसी सांसद साकेत गोखले ने अरुण गोयल के इस्तीफे को बहुत चिन्ताजनक बताया है। एक्स पर एक पोस्ट में, गोखले ने लिखा, “चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने अचानक इस्तीफा दे दिया है। अन्य ईसी का पद रिक्त है। इससे चुनाव आयोग के पास अब केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त रह गए हैं। मोदी सरकार ने एक नया कानून पेश किया है जहां चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अब पीएम मोदी और उनके द्वारा चुने गए एक मंत्री के बहुमत से की जाएगी। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले, मोदी आज के इस्तीफे के बाद अब 3 में से 2 चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करेंगे। यह बहुत ही चिंताजनक है।"

अरुण गोयल ने 21 नवंबर, 2022 को भारत के चुनाव आयुक्त (ईसी) के रूप में कार्यभार संभाला था। उन्होंने संस्कृति मंत्रालय के सचिव के रूप में भी काम किया है। वो डीडीए के उपाध्यक्ष, केंद्र में अतिरिक्त सचिव और वित्तीय सलाहकार, श्रम और रोजगार मंत्रालय; और संयुक्त सचिव, राजस्व विभाग और वित्त मंत्रालय रहे हैं। यानी गोयल सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। वो सरकार के विश्वासपात्र अधिकारी थे। इसीलिए उनकी रिटायरमेंट के अगले ही दिन उन्हें चुनाव आयुक्त बना दिया गया।
टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने एक्स पर लिखा- “ईसी अरुण गोयल ने कोलकाता में ईसीआई की चुनाव समीक्षा बैठक के ठीक बाद इस्तीफा क्यों दिया, जहां से वह अचानक चले गए थे? स्पष्ट रूप से वे मतदान कराने के फेज (चरणों) की संख्या और अत्यधिक सुरक्षा बलों की तैनाती पर दिल्ली के आदेश से असहमत थे। अब उनकी जगह किसी चुने हुए, हाँ बोलने वाले आदमी को ले लिया जाएगा।"

इस बीच, आईएएस 1985 बैच के आईएएस संजीव गुप्ता ने एक्स पर लिखा, “जिस तेजी से 18 नवंबर 2022 को अरुण गोयल की नियुक्ति हुई उसी तेजी से चुनाव आयुक्त का इस्तीफा का इस्तीफा हुआ। ये सारी बातें भारत चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल उठाते हैं। हम सभी बैचमेट इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि क्या हो रहा है। उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।”

अरुण गोयल का कार्यकाल 5 दिसंबर, 2027 तक था, और अगले वर्ष फरवरी में राजीव कुमार के रिटायरमेंट के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) बनने की कतार में थे। यानी जिस शख्स को अगला मुख्य चुनाव आयुक्त बनना था, वो समय से बहुत पहले इस्तीफा दे देगा, देश में सवाल उठने स्वाभाविक हैं। 

पंजाब काडर के 1985 बैच के आईएएस अधिकारी गोयल नवंबर 2022 में चुनाव आयोग में रिटायरमेंट के अगले ही दिन शामिल हुए थे।फरवरी में अनूप चंद्र पांडे के रिटायर होने और गोयल के इस्तीफे के साथ, तीन सदस्यीय केंद्रीय चुनाव आयोग में अब केवल एक सदस्य बचे रह गए हैं, और वो हैं- सीईसी राजीव कुमार।

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आगे क्या होगा

सीईसी और ईसी की नियुक्ति को नियंत्रित करने वाले नए कानून के तहत, दो केंद्रीय सचिवों के साथ कानून मंत्री की अध्यक्षता वाली एक सर्च कमेटी विचार के लिए पांच नामों को शॉर्टलिस्ट करेगी। फिर प्रधान मंत्री की अध्यक्षता वाली एक कमेटी इन नामों पर विचार करेगी।इस कमेटी में प्रधान मंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता या सदन में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल हैं। समिति एक नाम का चयन करेगी, पीएम मोदी वाली जो कमेटी उस नाम को राष्ट्रपति को भेजेगी। फिर आधिकारिक तौर पर राष्ट्रपति उस शख्स को चुनाव आयुक्त नियुक्त कर देंगी। अशोक लवाला मामले के बाद केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग में कई सारी चीजें बदल दी हैं। इसीलिए विपक्ष बार-बार पारदर्शिता का सवाल उठा रहा है।

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