कांग्रेस ने डुप्लीकेट मतदाता पहचान पत्र नंबरों (ईपीआईसी) पर चुनाव आयोग के स्पष्टीकरण को "दोहरा रवैया" बताया। उसने भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) से इस मुद्दे पर साफ-साफ बात करने का आग्रह किया। ईसीआई ने डुप्लीकेट मतदाता पहचान पत्र नंबरों को लेकर शुक्रवार को कहा था कि वह "दशकों पुराने" इस मुद्दे को अगले तीन महीनों में हल करेगा।
कांग्रेस के एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप ऑफ लीडर्स एंड एक्सपर्ट्स (ईगल) ने एक बयान में कहा, "कांग्रेस पार्टी चुनाव आयोग के इस कमजोर और दोहरे स्पष्टीकरण को खारिज करती है और भारत में मतदाता सूचियों की पवित्रता पर साफ-साफ बात करने की अपनी मांग को दोहराती है।" ईगल आठ सदस्यीय समिति है, जिसे कांग्रेस ने पिछले महीने चुनाव आयोग द्वारा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की निगरानी के लिए गठित किया था।
कांग्रेस ग्रुप ने कहा कि ईसीआई ने एक ही मतदाता पहचान पत्र नंबर के कई मतदाताओं को आवंटित किए जाने के मुद्दे पर दोहरा जवाब दिया है। उसने कहा- "ईसीआई ने अपने जवाब में, एक कमजोर स्पष्टीकरण देने के लिए अपनी चुनावी प्रक्रिया के पीछे छिपने की कोशिश की है। हैरानी की बात यह है कि ईसीआई को यह स्वीकार करने के लिए मजबूर होना पड़ा कि उसकी मतदाता सूचियां दोषपूर्ण और अविश्वसनीय हैं।"
कांग्रेस समूह के बयान के अनुसार, चुनाव आयोग ने 18 सितंबर, 2008 को जारी एक पत्र में सभी राज्यों के मुख्य चुनाव अधिकारियों को बताया था कि "मतदाता पहचान पत्र अद्वितीय हैं।" लेकिन उसकी हकीकत अब सामने आ गई है कि वो कितने अद्वितीय हैं। समूह ने कहा "हालांकि, ईसीआई आज कह रहा है कि डुप्लीकेट मतदाता पहचान पत्र का मुद्दा 'दशकों पुराना मुद्दा' है। भारत के नागरिकों को ईसीआई के किस बयान पर विश्वास करना चाहिए? आज एक आम भारतीय मतदाता को चुनाव आयोग पर भरोसा क्यों करना चाहिए?"
कांग्रेस समूह ने सवाल किया कि 17 साल बाद ईसीआई कई मतदाता पहचान पत्रों की इस प्रक्रिया को साफ करने के लिए एक निकाय गठित करने की बात क्यों कर रहा है? उसने पूछा- "क्या ईसीआई तब से भारत के मतदाताओं को गलत तरीके से यह बता रहा था कि मतदाता पहचान पत्र अद्वितीय हैं? यदि हां, तो ईसीआई अपने नागरिकों को किन अन्य प्रक्रियाओं के बारे में गलत जानकारी दे रहा है?"
चुनाव आयोग का इन सवालों पर शुरुआती जवाब यह था कि वह खुद को बचाने के लिए कह रहा था कि "ऐसा केवल राज्यों में हो सकता है।" लेकिन ऐसे उदाहरण हैं जहां एक ही राज्य के एक ही विधानसभा क्षेत्र में एक ही मतदाता पहचान पत्र नंबर वाले कई मतदाताओं के स्पष्ट सबूत हैं।
"क्या ईसीआई तब झूठ बोल रहा है? क्योंकि डुप्लीकेट मतदाता पहचान पत्र का मुद्दा स्पष्ट रूप से अलग-अलग राज्यों में नहीं है, बल्कि एक ही राज्य में और कई मामलों में, एक ही निर्वाचन क्षेत्रों में है।"
बयान में कहा गया कि विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अन्य संबंधित राजनीतिक दलों के साथ मिलकर चुनाव आयोग से महाराष्ट्र की मतदाता सूची की एक प्रति उपलब्ध कराने की स्पष्ट मांग की थी। उन्होंने कहा कि "इस पर इतनी चुप्पी क्यों है? यह केवल उस बात की पुष्टि करता है जो कांग्रेस पार्टी लगातार कहती आई है -- वर्तमान ईसीआई के तहत मतदाता सूचियां संदिग्ध और दोषपूर्ण हैं।"
इससे पहले चुनाव आयोग ने बयान जारी किया जिसमें कहा गया कि भारत की मतदाता सूची दुनिया भर में मतदाताओं का सबसे बड़ा डेटाबेस है, जिसमें 99 करोड़ से अधिक पंजीकृत मतदाता हैं।
आयोग ने दावा किया था "डुप्लीकेट इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड नंबरों के मुद्दे के संबंध में, आयोग ने पहले ही इस मामले पर ध्यान दिया है। एक ईपीआईसी नंबर के बावजूद, एक मतदाता जो किसी विशेष मतदान केंद्र की मतदाता सूची से जुड़ा हुआ है, वह केवल उसी मतदान केंद्र पर वोट डाल सकता है और कहीं और नहीं।"
कांग्रेस नेता गुरदीप सप्पल ने अलग से एक बयान में कहा- फॉर्म 6, फॉर्म 7 और फॉर्म 8 भर कर कोई व्यक्ति वोटर लिस्ट में नाम जुड़वा सकता है, हटवा सकता है और बूथ शिफ्ट करवा सकता है। चुनाव आयोग बताए कि इस प्रक्रिया से कितने नामों का बदलाव वोटर लिस्टों में किया गया है? साथ ही, अपने बयान में चुनाव आयोग ने एक जानकारी और नहीं दी। ऐसे फॉर्म भरने में बाद इलेक्शन रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) को वोटर का नाम लिस्ट से हटाने से पहले उसे एक रजिस्टर्ड पोस्ट भेजना होता है। ऐसा रजिस्टर्ड पोस्ट कितने वोटरों को मिलता है? अगर नहीं मिलता है इसके ज़िम्मेदार ERO पर क्या कभी कोई कार्रवाई हुई है?
सप्पल ने कहा- साथ ही, फॉर्म 7 मिलने पर वोटर का नाम हटाने से पहले बीएलओ को वोटर से मुलाक़ात कर फॉर्म की सच्चाई का निरीक्षण करना होता है और अपनी रिपोर्ट देनी होती है। जिन लोगों का वोट कट जाता है, क्या बीएलओ वाकई उनसे मिलते हैं? जरा ऐसे वोटरों से पूछ कर देखिए, कब उन्हें रजिस्टर्ड पोस्ट मिला या कब बीएलओ उनसे मिलने आए?
मतदाता फोटो पहचानपत्र विवाद पश्चिम बंगाल से शुरू हुआ था। सबसे पहले टीएमसी प्रमुख और सीएम ममता बनर्जी ने 27 फ़रवरी को आरोप लगाया था कि कई मतदाताओं के पास एक ही ईपीआईसी संख्या है। इस पर चुनाव आयोग ने एक बयान जारी कर कहा कि ईपीआईसी संख्या में दोहराव का मतलब डुप्लिकेट या नकली मतदाता नहीं है। इसने कहा था कि 'मैनुअल त्रुटि' से दो राज्यों के मतदाताओं की ईपीआईसी संख्या एक हो गई। इसके बाद ही टीएमसी ने सोमवार को चेतावनी दी थी कि यदि चुनाव आयोग 24 घंटे में गड़बड़ी को मानकर नहीं सुधारता है तो टीएमसी ऐसी ही गड़बड़ियों के और दस्तावेज मंगलवार को जारी करेगी।
पिछले मंगलवार को टीएमसी ने कहा था कि 'चुनाव आयोग की झूठी सफ़ाई' उनके अपने नियमों के ख़िलाफ़ है। इस मामले में टीएमसी राज्यसभा सांसद साकेत गोखले ने कहा है कि चुनाव आयोग ने जो सफ़ाई दी है वो उनके अपने नियमों और दिशानिर्देशों से मेल नहीं खाती। उन्होंने वोटर आईडी कार्ड के रूप में जाने जाने वाले EPIC बनाए जाने की पूरी प्रक्रिया को समझाते हुए चुनाव आयोग की दलीलों को खारिज कर दिया। गोखले ने कहा है कि ईपीआईसी जारी करने की प्रक्रिया चुनाव आयोग की 'हैंडबुक फॉर इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर्स' में लिखी है।
टीएमसी ने चुनाव आयोग के तीन झूठ बताये
साकेत गोखले इसी के आधार पर चुनाव आयोग की 'सफ़ाई' में तीन झूठ बेनकाब करने का दावा किया है-
चुनाव आयोग का दावा 1: उनका कहना है कि एक ही ईपीआईसी नंबर कई लोगों को इसलिए दे दिया गया क्योंकि कुछ राज्यों ने एक ही "अल्फान्यूमेरिक सीरीज" का इस्तेमाल किया।
सच: ईपीआईसी नंबर में 3 अक्षर और 7 नंबर होते हैं। हैंडबुक में साफ़ लिखा है कि ये 3 अक्षर फंक्शनल यूनिक सीरियल नंबर के नाम से जाने जाते हैं। ये 3 अक्षर हर विधानसभा क्षेत्र के लिए अलग होते हैं। मतलब, एक ही राज्य में भी दो अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के वोटर्स के ईपीआईसी के पहले 3 अक्षर एक जैसे नहीं हो सकते। तो फिर पश्चिम बंगाल के वोटर्स के ईपीआईसी नंबर हरियाणा, गुजरात और दूसरे राज्यों के लोगों को कैसे मिल गए?
चुनाव आयोग का दावा 2: उनका कहना है कि अगर दो लोगों के पास एक ही ईपीआईसी नंबर है, तो भी वे अपने-अपने क्षेत्र में वोट डाल सकते हैं जहां उनका नाम दर्ज है।
सच : फोटो वाली मतदाता सूची में वोटर की तस्वीर ईपीआईसी नंबर से जुड़ी होती है। अगर बंगाल का कोई वोटर वोट डालने जाए और उसका ईपीआईसी नंबर किसी दूसरे राज्य के व्यक्ति को भी दिया गया हो तो मतदाता सूची में उसकी तस्वीर अलग दिखेगी। इससे फोटो न मिलने की वजह से उसे वोट डालने से रोका जा सकता है। एक ही ईपीआईसी नंबर अलग-अलग राज्यों में देकर उन वोटर्स को वोटिंग से रोका जा सकता है जो बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट दे सकते हैं।
चुनाव आयोग का दावा 3: उनका कहना है कि एक ही ईपीआईसी नंबर कई लोगों को ग़लती से दे दिया गया और इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
सच: चुनाव आयोग के नियम कहते हैं कि ईपीआईसी नंबर देने के लिए जो सॉफ्टवेयर इस्तेमाल होता है, वो हर इस्तेमाल और खाली नंबर का हिसाब रखता है ताकि एक ही नंबर दो लोगों को न मिले। ईपीआईसी नंबर वोटर की जानकारी और तस्वीर से जुड़ा होता है और इसे स्थायी यूनिक आईडी माना जाता है। तो ये कैसे मुमकिन है कि 'ग़लती' से एक ही ईपीआईसी नंबर अलग-अलग राज्यों के लोगों को दे दिया जाए? और अगर ईपीआईसी नंबर डुप्लिकेट है, तो वोट डालने से रोका जा सकता है। ये साफ़ तौर पर बीजेपी के पक्ष में मतदाताओं को रोकने की साज़िश लगती है, जिसमें गैर-बीजेपी इलाक़ों के वोटर्स को निशाना बनाया जा रहा है।
टीएमसी नेताओं ने दावा किया है कि उनके पास ऐसे कई दस्तावेज हैं, जो दिखाते हैं कि एक ही ईपीआईसी नंबर का इस्तेमाल एक ही निर्वाचन क्षेत्र और अलग-अलग राज्यों में किया जा रहा है। पार्टी की उपनेता सागरिका घोष ने कहा, 'हमारे पास सबूत हैं कि गुजरात, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के लोगों को बंगाल की मतदाता सूची में शामिल किया गया है। यह एक सुनियोजित साज़िश है।'
बीजेपी ने टीएमसी के आरोपों को बेबुनियाद और हताशा का नतीजा बताया है। बंगाल भाजपा के प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा, 'टीएमसी खुद फर्जी मतदाताओं को शामिल करने की विशेषज्ञ है। अब जब उनकी साजिश का पर्दाफाश हो रहा है, तो वे चुनाव आयोग पर उंगली उठा रही हैं। जनता सब समझती है।'
(रिपोर्ट और संपादन यूसुफ किरमानी)
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