चीफ जसिटिस चंद्रचूड़ ने वित्त अधिनियम, 2017 के जरिए पेश की गई योजना को रद्द करते हुए कहा, "मतदान के विकल्प के प्रभावी बनाने के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है।" इस फैसले की सबसे खास बात यह है कि बांड जारी करने वाला भारतीय स्टेट बैंक 2019 से चुनावी बांड प्राप्त करने वाले राजनीतिक दलों का विवरण तीन सप्ताह में भारतीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को पेश करेगा। चुनाव आयोग को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर भी ऐसे विवरण प्रकाशित करने के लिए कहा गया है।
- चुनावी बांड योजना असंवैधानिक। योजना नागरिकों के सूचना के अधिकार (आरटीआई) का उल्लंघन करती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता पूर्ण छूट देकर हासिल नहीं की जा सकती।"
- एसबीआई को चुनावी बांड जारी करने पर तत्काल रोक लगाने का आदेश। 6 मार्च, 2024 तक चुनावी बांड का सारा विवरण चुनाव आयोग को देना होगा कि किस पार्टी को कितना पैसा मिला। राजनीतिक दलों को पैसा खातेदारों को वापस करना होगा। सिर्फ उन्हीं बांड के पैसों को जो भुनाए नहीं गए हैं।
“
सुप्रीम कोर्ट ने आयकर अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए संशोधनों को भी रद्द कर दिया, जिन्होंने ऐसे दान या चुनावी फंडिंग को गुमनाम बना दिया था।
- ऐसी कोई भी चुनावी बांड योजना उसी राजनीतिक दल की मदद करेगी जो सत्ता में होगा। यह दावा उचित नहीं कि इससे राजनीति में काले धन के प्रवाह को रोकने में मदद मिलेगी। आर्थिक असमानता राजनीतिक जुड़ाव के विभिन्न स्तरों को जन्म देती है। जानकारी तक पहुंच नीति बनाने को प्रभावित करती है।
- कॉर्पोरेट राजनीतिक फंडिंग की अनुमति देने वाला कंपनी अधिनियम संशोधन "असंवैधानिक" करार। इसने भी आरटीआई का उल्लंघन किया है। 2017 में कंपनी अधिनियम में संशोधन से पहले, भारत में घाटे में चल रही कंपनियों को फंडिंग करने की अनुमति नहीं थी। लेकिन उसके बाद मिल गई। आसानी से समझा जा सकता है कि कर्ज में डूबी कंपनी राजनीतिक दल की फंडिंग क्यों करेगी। लेकिन भारत में इस कानून को बदलने के बाद यही हो रहा था।
अपनी राय बतायें