हिज़बुल मुजाहिदीन के दो आतंकवादियों और उनके एक वकील के साथ जम्मू-कश्मीर के डिप्टी पुलिस सुपरिटेंडेंट दविंदर सिंह की गिरफ़्तारी से कई अहम सवाल खड़े हो गए हैं। क्या पाकिस्तान स्थित आतंकवादी गुटों के साथ दविंदर सिंह की साँठगाँठ बहुत पहले से चली आ रही है?
यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि संसद पर हमले के मामले में दोषी पाए गए आतंकवादी अफ़ज़ल गुरु ने अपने वकील को लिखी एक चिट्ठी में कहा था कि दविंदर सिंह ने उसे घनघोर यंत्रणा दी थी। उसने यह भी कहा था कि वह एक पाकिस्तानी आतंकवादी को दिल्ली ले जाए, उसे घर ढूंढने और एक गाड़ी खरीदने में मदद करे। बाद में गुरु की पत्नी तबस्सुम ने आरोप लगाया था कि दविंदर सिंह ने अफ़ज़ल को छोड़ने के लिए एक लाख रुपये की घूस माँगी थी और उन्होंने अपने गहने बेच कर उस पुलिस अफ़सर को पैसे दिए थे।
अफ़ज़ल को 2013 में मौत की सज़ा दे दी गई। दविंदर सिंह अफ़ज़ल से कब, कहाँ, कैसे मिले, उन्होंने जम्मू-कश्मीर के पत्रकार परवेज़ बुख़ारी को एक इंटरव्यू में बताया। बुख़ारी की किताब ‘द हैंगिंग ऑफ़ अफ़ज़ल गुरु एंड द स्ट्रेंज केस ऑफ़ अटैक ऑन द इंडियन पार्लियामेंट’ में वह इंटरव्यू शामिल है। पढ़िए, उसका एक अंश :
दविंदर सिंह : एक सूत्र ने मुझे जानकारी दी कि अफ़ज़ल गुरु नाम का शख़्स गाज़ी बाबा के लिए कूरियर का काम करता है। मैंने उसे तलाशा, पर पकड़ नहीं पाया। जब मुझे पता चला कि अफ़ज़ल बारामुला ज़िले के पट्टन इलाक़े में काम करता है, मैंने वहाँ के डीएसपी और स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) के प्रभारी विनय गुप्ता से संपर्क किया और उन्होंने उसे पकड़ लिया। विनय से अफ़ज़ल से पूछताछ करने के बाद मुझे फ़ोन किया और कहा कि वह उससे कुछ नहीं उगलवा पाए। मैं विनय से कहा कि वह उसे रिहा न करें और बडगाम ज़िले के हुमहामा कैंप में मेरे पास भेज दें। मैंने अफ़ज़ल को इस तरह जाना।
परवेज़ बुख़ारी : कस्टडी में उसने क्या बताया?
दविंदर सिंह : मैंने उसे कैम्प में कई दिनों तक पूछताछ की और यंत्रणाएँ दीं। हमने उसकी गिरफ़्तार कहीं नहीं दिखाई। उन दिनों काम करने का यही तरीका था। हमने उसे मलद्वार में पेट्रोल डाला और बिजली के झटके दिए। पर वह नहीं टूटा। हमने गाज़ी बाबा के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए उसे बहुत यंत्रणा दी, पर उसने कुछ भी नहीं बताया। वह उन दिनों बेहद भोंदू किस्म का आदमी हुआ करता था। मैं यंत्रणा देने और जानकारी उगलवाने के लिए जाना जाता था। यदि कोई मेरी पूछताछ से भी पाक साफ़ निकल जाता था तो उसे साफ़ मान लिया जाता था और पूरे पुलिस विभाग में उसे कोई छूता नहीं था।
बुख़ारी : तो अफ़ज़ल को रिहा कर दिया गया?
दविंदर सिंह : मेरे एसपी आशिक हुसैन बुख़ारी ने अपने साले अल्ताफ और अफ़ज़ल के भाई ऐजाज गुरु को मेरे पास भेजा। उन्होंने कहा, ‘यदि तुम अफ़ज़ल को किसी मामले में शामिल नहीं पाए तो उसे रिहा क्यों नहीं कर देते।?’ मैंने कहा कि यंत्रणा की वजह से हुए उसके घाव भर जाएँ। उसे पट्टन के एसओजी ने पकड़ा था तो मैंने उसे वहीं भेज दिया। बाद में उसे वहाँ से रिहा कर दिया गया।
बुख़ारी : क्या उसके बाद अफ़ज़ल या उसके परिवार के किसी आदमी के साथ आप संपर्क में थे, जैसा आरोप लग रहा है?
दविंदर सिंह : पट्टन कैंप में भेजने के बाद अफ़ज़ल गुरु या उसके किसी रिश्तेदार के साथ मेरा कभी कोई संपर्क नहीं रहा। कोई फ़ोन नहीं, कोई मुलाक़ात नहीं, कुछ भी नहीं। मैंने उसके भाई ऐजाज को सिर्फ़ एक बार देखा, जब एसपी ने उसे मेरे पास भेजा था।
बुख़ारी : अफ़ज़ल ने अपनी चिट्ठी में यह आरोप लगाया था कि आपने तारिक नाम के एक आदमी की मौजूदगी में अफ़ज़ल से कहा था कि वह एक आदमी को अपने साथ दिल्ली ले जाए और उसकी मदद करे।
दविंदर सिंह : यह झूठ है। मैं तारिक या मुहम्मद से नहीं मिला, पर उनके बारे में जानता हूं। मुझे पता है कि तारिक और मुहम्मद ‘ए’ कैटगरी के वांछित चरमपंथी थे और उन पर 5 लाख रुपए का ईनाम रखा गया था। यदि मैं उन्हें जानता होता और मैंने उन्हें गिरफ़्तार किया होता तो आपको क्या लगता है कि मैं उन्हें छोड़ देता? यह मनगढंत कहानी है। वे पाकिस्तान से यहाँ आतंकवादी गतिविधियों के लिए आए थे। यदि मैं उन्हें मिलता तो आपको लगता है कि मैं उन्हें बख़्श देता? अफ़ज़ल दया की भीख माँग रहा है, वह कश्मीरी जनता और भारत सरकार से सहानुभूति चाहता है, इसलिए यह कहानी सुना रहा है।
बुख़ारी : अफ़ज़ल ने अपनी चिट्ठी में आरोप लगाया है कि आप उसके और मुहम्मद के संपर्क में उस समय भी थे जब वे लोग दिल्ली में थे।
दविंदर सिंह : यह सच नहीं है। मेरे पास उसका नंबर कभी नहीं था और न ही मैंने कभी उसे फ़ोन किया। सितंबर 2000 में अफ़ज़ल को मेरे कैम्प से पट्टन कैम्प भेज दिया गया और 2001 में मेरा तबादला हुमहामा एसओजी कैंप से काउंटर इंटेलीजेन्स कश्मीर, हरि निवास, कर दिया गया। मैं जब हुमहामा में था, एसटीडी की सुविधा नहीं थी। तबादले के बाद मैं उस कैम्प नहीं गया। यदि मैंने अफ़ज़ल को फोन किया था तो इसकी पुष्टि कौन करेगा?
बुख़ारी : जैसा कि आरोप लगाया जा रहा है, क्या किसी ने आपको अफ़ज़ल की रिहाई के लिए पैसे दिए थे?
दविंदर सिंह : नहीं। यदि मैं पैसे लेना चाहता भी तो नहीं ले सकता था क्योंकि ख़ुद एसपी का साला अफ़ज़ल की रिहाई की माँग कर रहा था। पर इसके साथ ही मैं इसकी गारंटी नहीं लेता कि उसके परिवार के किसी आदमी ने पैसे नहीं लिए होंगे।
बुख़ारी : अफ़ज़ल के लगाए गए आरोपों को देखते हुए क्या आपको लगता है कि आपका इस्तेमाल किया गया है?
दविंदर सिंह : मेरे लिए मुश्किल की घड़ी है। मैं अपने वरिष्ठों से यह उम्मीद करता हूं कि वे आरोपों से मुझे बरी करें। पर यह दुखद है कि मेरे विभाग का कोई आदमी अब तक सामने नहीं आया है। यदि मुझे तनिक भी संदेह होता कि मेरा इस्तेमाल किया गया है तो मैं चुप नहीं रहता। और मैं यह एक बार फिर साफ़ कर दूं कि पट्टन एसओजी को सौंपने के बाद मैं अफ़ज़ल या उसके किसी रिश्तेदार से कभी नहीं मिला, न ही मुलाक़ात की और न ही बात की।
बुख़ारी : फिर आपका नाम अफ़ज़ल की चिट्ठी और उसकी पत्नी के खाते में क्यों है?
दविंदर सिंह : एसओजी में काम करने और बहुत राष्ट्रवादी होने की वजह से मुझे फँसाया गया है। बदले में मुझे क्या मिला? साजिशकर्ता के रूप में बदनामी! यह वाकई बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। और आपको दो टूक बताऊँ कि जिससे मैंने पूछताछ की हो, वह मुझे कभी नहीं भूल सकता।
बुख़ारी : आपने भी अफ़ज़ल की चिट्ठी देखी ही होगी। क्या आपको लगता है कि वह लिखावट उसी की है?
दविंदर सिंह : दस्तख़त उसके ही हैं, पर लिखावट उसकी नहीं है। दस्तख़त मैंने नहीं देखा है, पर लिखावट अफ़ज़ल की नहीं है। दस्तख़त उसका हो सकता है, पर मैं उसकी लिखावट पहचानता हूँ। मैं यह इसलिए जानता हूँ कि वह किसी के बच्चे को पढ़ाता था और मैंने उसकी लिखावट देखी थी। यह सब मनगढंत है।
बुख़ारी : क्या आपने उसे सावधानी से देखा है?
दविंदर सिंह : हाँ, बिल्कुल।
बुख़ारी : आपने अफ़ज़ल को देखा है। क्या आपको लगता है कि वह ऐसा इन्सान है, जो संसद पर हमले में शामिल हो सकता है?
दविंदर सिंह : वह यह कह रहा है कि अपने साथ उस आदमी को ले गया और उसकी मदद की। और कार खरीदने में उसकी मदद की, वगैरह, वगैरह। उसने ऐसा क्यों किया, उसे ही बेहतर पता होगा। यदि जब वह पकड़ा गया उस समय ये बातें साबित हो गई होतीं...वह यह सब नहीं जानता होता। हमारे साथ यह बात यहीं ख़त्म हो गई कि पूछताछ में वही नहीं टूटा।
(पेंग्विन इंडिया से साभार)
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