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सीपीएम ने क्यों कहा 'मोदी सरकार फासिस्ट नहीं'; सीपीआई, कांग्रेस क्या करेगी? 

मोदी सरकार फासीवादी है या नहीं, इस पर खुद वाम दलों में बड़ा मतभेद हो गया है। वाम दलों में तो इसको लेकर विवाद चल ही रहा है, इसमें कांग्रेस भी कूद गई है। इन वजहों से मोदी सरकार की ‘फासीवादी प्रवृत्तियों’ को लेकर सीपीएम एक अजीब राजनीतिक दुविधा में फँस गई है।

दरअसल, यह दुविधा इसलिए आई कि सीपीएम की ओर से राज्य इकाइयों को एक नोट भेजा गया है। इसमें बताया गया है कि 24वीं पार्टी कांग्रेस के लिए उसके राजनीतिक प्रस्ताव के मसौदे में 'मोदी सरकार फासीवादी या नव-फासीवादी नहीं है' या 'भारतीय राज्य नव-फासीवादी राज्य' के रूप में नहीं है। उसने इसमें यह भी बताया है कि उसने ऐसा क्यों किया है। तमिलनाडु के मदुरै में अप्रैल महीने में सीपीएम की प्रस्तावित कांग्रेस के लिए तैयार इस राजनीतिक प्रस्ताव के मसौदे को 17 से 19 जनवरी तक कोलकाता में सीपीएम केंद्रीय समिति की बैठक में मंजूरी दे दी गई थी। अब इसके नोट राज्यों की ईकाइयों को भेजे गए हैं।

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सीपीएम के राजनीतिक प्रस्ताव के मसौदे से जुड़े नोट ने विवाद खड़ा कर दिया है। इस नोट के बाद वाम मोर्चे में मतभेद और बढ़ गए हैं। सीपीआई ने मांग की है कि उसका सहयोगी दल सीपीएम अपना रुख सही करे। राजनीतिक प्रस्ताव के मसौदे का बचाव करते हुए वरिष्ठ सीपीएम नेता ए के बालन ने आलोचकों को चुनौती दी कि वे साबित करें कि मोदी सरकार प्रकृति में फासीवादी है। 

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार बालन ने कहा, 'पार्टी ने कभी भी बीजेपी सरकार को फासीवादी शासन नहीं कहा है। हमने कभी नहीं कहा कि फासीवाद आ गया है। एक बार जब फासीवाद हमारे देश में पहुंच जाएगा, तो राजनीतिक ढांचा बदल जाएगा। सीपीआई और सीपीआई (एमएल) का मानना ​​है कि फासीवाद आ गया है।'

राज्य इकाइयों को भेजे गए नोट में केंद्रीय नेतृत्व ने मोदी सरकार पर अपनी स्थिति साफ़ की है। बीजेपी-आरएसएस के तहत मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था का ज़िक्र करते हुए दस्तावेज में कहा गया है कि यह 'हिंदुत्व-कॉर्पोरेट सत्तावादी शासन है जो नव-फासीवादी विशेषताओं को दिखाता है। हम यह नहीं कह रहे हैं कि मोदी सरकार एक फासीवादी या नव-फासीवादी सरकार है। न ही हम भारतीय राज्य को एक नव-फासीवादी राज्य के रूप में क़रार दे रहे हैं।' 
यानी सीपीएम ने कहा है कि हिंदुत्व-कॉर्पोरेट सत्तावादी शासन नव फासीवाद का रुझान दिखाता है, लेकिन साफ़ तौर पर नव फासीवादी नहीं है।

राज्य इकाइयों को भेजे गए नोट में यह भी कहा गया है कि 'राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया है कि अगर भाजपा-आरएसएस का मुक़ाबला नहीं किया गया और उन्हें रोका नहीं गया तो हिंदुत्व-कॉर्पोरेट अधिनायकवाद के नव-फासीवाद की ओर बढ़ने का ख़तरा है।'

हालाँकि, फासीवाद पर सीपीएम की नई व्याख्या उसके क़रीबी सहयोगी सीपीआई को पसंद नहीं आई है। सीपीआई के राज्य प्रमुख बिनॉय विश्वम ने कहा है कि सीपीएम को अपनी स्थिति सही करनी होगी। विश्वम ने कहा, 'आरएसएस एक फासीवादी संगठन है। आरएसएस के तहत मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार वास्तव में एक फासीवादी सरकार है। सीपीएम को इसमें संशोधन करना होगा।'

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सीपीएम अपना अस्तित्व बचाने में जुटा है: कांग्रेस

सीपीएम की इस व्याख्या पर कांग्रेस ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है। विपक्ष के नेता वी डी सतीशन ने आरोप लगाया है कि सीपीएम का नया रुख संघ परिवार के निर्देशों का पालन करने के उसके फ़ैसले का हिस्सा है। उन्होंने आरोप लगाया, 'पार्टी ने अपने अस्तित्व को बचाने के लिए ही अपने नए निष्कर्ष निकाले हैं। राज्य के पोलित ब्यूरो सदस्यों के नेतृत्व में पार्टी ने इस तरह का दस्तावेज तैयार करने का फ़ैसला किया।'

सतीशन ने कहा कि मोदी सरकार को फासीवादी नहीं मानने वाला सीपीएम का राजनीतिक प्रस्ताव का मसौदा किसी भी तरह से चौंकाने वाला नहीं है। उन्होंने कहा, 'हम सीपीएम के बीजेपी के साथ लंबे समय से चले आ रहे गुप्त संबंधों को जानते हैं और अब वह संबंध उजागर हो गया है। पिछले दो सम्मेलनों के निर्णयों को पलटकर, सीपीएम को अब पता चल गया है कि मोदी सरकार न तो एक क्लासिक फासीवादी है और न ही एक नव-फासीवादी शासन है।' उन्होंने कहा कि केरल में सीपीएम ने हमेशा फासीवाद के साथ समझौता किया है।

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कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य रमेश चेन्निथला ने आरोप लगाया है कि सीपीएम का मसौदा प्रस्ताव आगामी विधानसभा चुनावों में बीजेपी के वोट हासिल करने के लिए एक रणनीतिक क़दम है। उन्होंने याद दिलाया कि सीपीएम नेता प्रकाश करात ने बीजेपी के प्रति नरम रुख की वकालत की थी, जबकि सीताराम येचुरी ने इस तरह के विचार का विरोध किया था।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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क़मर वहीद नक़वी
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