कोरोना वायरस के कहर की सबसे ज़्यादा मार रोज कमाने-खाने वालों पर पड़ रही है। यह वह वर्ग है जो गांव-घर छोड़कर बड़े शहरों में प्राइवेट नौकरी करता है। लेकिन इस वायरस के कारण काम-धंधे बंद हो चुके हैं और कंप्लीट लॉकडाउन की घोषणा के बाद इन लोगों के लिये शहर छोड़कर गांव जाना मजबूरी हो गया है क्योंकि शहरों में रहने के लिये इनके पास कोई स्थायी आशियाना नहीं है।
एनडीटीवी की ओर से यह कहने पर कि प्रधानमंत्री ने अपील की है कि जो लोग जहां हैं, वहीं रहें, इस पर अवधेश कहते हैं कि उनके पास कोई रास्ता नहीं था। अवधेश के मुताबिक़, ‘वायरस के प्रकोप के कारण कंपनी की ओर से कहा गया कि कॉलोनी को खाली कर दो। जाने के लिये कोई गाड़ी नहीं थी और हम कुछ लोग एक ही गांव के थे, इसलिये हम लोगों ने पैदल ही निकलने का फ़ैसला किया।’
दिल्ली-नोएडा से भी कुछ ऐसे ही वीडियो सामने आये हैं। इन वीडियो में दिल्ली-नोएडा में मजदूरी करने वाले लोग बुलंदशहर-आगरा तक पैदल जा रहे हैं। इनका भी यही कहना है कि शहर में रहने का कोई ठिकाना नहीं है, काम चौपट हो गया है, ऐसे में यहां क्या करें।
यह साफ है कि कोरोना वायरस के कारण दिहाड़ी मजदूरी करने वाले, प्राइवेट कंपनियों में काम करने वाले लोग सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं। ऐसे में अगर कंप्लीट लॉकडाउन के बाद भी हालात नहीं सुधरे तो इस तबक़े के लिये ख़ासी मुश्किलें खड़ी हो जायेंगी।
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