भारतीय जनता पार्टी के सामने चारों खाने चित हुई कांग्रेस दोबारा अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश कर रही है। सोनिया गाँधी के फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद इन कोशिशों में तेज़ी आई है। कांग्रेस ने आरएसएस यानी संघ को राष्ट्रवाद से जुड़े तमाम मुद्दों पर 'गाँधी दर्शन' के सहारे ज़मीनी स्तर पर जवाब देने की रणनीति बनाई है। नौजवानों के बीच 'गाँधी दर्शन' के प्रचार-प्रसार के लिए कांग्रेस ज़िला और मंडल स्तर पर 'को-ऑर्डिनेटर' बनाएगी।
इसे लेकर गुरुवार को सोनिया गाँधी की अध्यक्षता में कांग्रेस के सभी महासचिवों और स्वतंत्र प्रभारियों की एक अहम बैठक हुई थी। इस बैठक में पार्टी का संगठन मजबूत करने, सदस्यता अभियान चलाने और देश के मौजूदा राजनीतिक और आर्थिक हालात पर मोदी सरकार को घेरने के अलावा बीजेपी और संघ परिवार के बुनियादी मुद्दों पर ज़मीनी स्तर पर लड़ने को लेकर कई घंटे विचार-विमर्श हुआ।
बता दें कि 2 अक्टूबर को महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती मनाई जाएगी। इसे लेकर कांग्रेस साल भर से तैयारी कर रही है। बैठक में इसकी तैयारियों का जायजा भी लिया गया। महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती के मौक़े पर ही कांग्रेस ‘गाँधी दर्शन’ को फिर से नौजवानों के बीच लोकप्रिय बनाने की कोशिशों में जुटेगी। बैठक में संगठन को मजबूत करने के मास्टर प्लान पर भी चर्चा हुई। ट्रेनिंग इंचार्ज सचिन राव ने इस पर चार पेज का नोट भी पेश किया।
देश के मौजूदा राजनीतिक हालात में कांग्रेस पार्टी की बुनियादी विचारधारा और अहम मुद्दों पर अपनी राय को जनता तक पहुंचाने के लिए पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देने की ज़रूरत महसूस कर रही है।
कांग्रेस मुख्यालय 24, अकबर रोड पर हुई इस बैठक के बाद कई मीडिया चैनलों और अख़बारों ने इस बारे में ख़बर दी है कि कांग्रेस, आरएसएस से लड़ने के लिए उसी के तौर-तरीके़ अपनाने जा रही है। इससे कांग्रेस को लेकर जनता में ग़लत संदेश गया है। इन ख़बरों से कांग्रेस में ख़ासी बेचैनी है।
को-ऑर्डिनेटर नियुक्त करने की परंपरा पुरानी
कांग्रेस की इस अहम बैठक में शामिल रहे कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि जिला या मंडल स्तर पर को-ऑर्डिनेटर नियुक्त करने की कांग्रेस की पुरानी नीति है। दरअसल, यह परंपरा राजीव गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल में तत्कालीन ट्रेनिंग इंचार्ज डीके राय ने शुरू की थी। इसके मुताबिक़ हर राज्य में जिला स्तर पर दूसरे राज्य के दो को-ऑर्डिनेटर तैनात किए जाते थे। ये पार्टी से जुड़े युवा कार्यकर्ताओं को पार्टी की विचारधारा और समसामयिक मुद्दों पर पार्टी की राय से अवगत कराते थे। इसके लिए समय-समय पर सेमिनार और विचार गोष्ठियों आयोजित की जाती थी लेकिन समय के साथ यह परंपरा हाशिये पर चली गई। अब कांग्रेस इसे दोबारा जिंदा करने की कोशिश कर रही है।कांग्रेस का मानना है जनता का विश्वास जीतने के लिए नेताओं को ज़मीनी लड़ाई लड़ने की ज़रूरत है। बैठक में सचिन राव की तरफ़ से पेश किए गए 4 पेज के नोट के मुताबिक़, इसके लिए कार्यकर्ताओं का समूह बनाया जाएगा। इनको 'प्रेरक' कहा जाएगा।
कांग्रेस का 'प्रेरक' शब्द संघ के 'प्रचारक' जैसा है। कांग्रेस के ये 'प्रेरक' संगठन से जुड़े हुए ऐसे वरिष्ठ नेता होंगे, जिनको कांग्रेस की विचारधारा और पार्टी के बारे में अच्छी जानकारी होगी। इन्हीं 'प्रेरकों' के ज़रिए पार्टी अपने विचार ज़मीनी कार्यकर्ताओं तक पहुंचाएगी और उनको उसी हिसाब से ट्रेनिंग देगी।
ये 'प्रेरक' पार्टी के वे लोग होंगे, जिनको कार्यकर्ताओं का विश्वास प्राप्त होगा। वे सम्मानित नेताओं में से चुने जाएंगे और प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अंतर्गत ही काम करेंगे। पार्टी की बुनियादी विचारधारा और बुनियादी मुद्दों पर पार्टी के विचारों को गाँव तक के कार्यकर्ताओं और जनता के बीच पहुंचाने के लिए पार्टी अपने सहयोगी संगठन सेवा दल का भी सहारा लेगी।
कांग्रेस की कोशिश पार्टी से जुड़ने वाले नौजवानों को ‘गाँधी दर्शन’ की सही जानकारी देने की है ताकि वे बीजेपी और संघ परिवार की तरफ़ से उछाले जा रहे राष्ट्रवाद के मुद्दे को सही अर्थों में समझ सकें।
सूत्रों के हवाले से ख़बर है कि 'प्रेरक' शब्द को लेकर पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने आपत्ति ज़ाहिर की है। कई नेताओं की आपत्ति के बाद आम सहमति से यह तय किया गया है कि 'प्रेरक' शब्द को बदल के 'को-ऑर्डिनेटर' या 'सहयोगी' कर दिया जाएगा।
सूत्रों के अनुसार, सबसे पहले मुकुल वासनिक ने कहा कि 'प्रेरक' शब्द की जगह दूसरे शब्द का प्रयोग किया जाए। सूत्रों के मुताबिक़, मुकुल वासनिक के बाद पार्टी के कई और वरिष्ठ नेताओं ने भी इस पर एतराज़ जताया। इन नेताओं का कहना था कि कांग्रेस गाँधीवादी विचारों की पार्टी है लिहाज़ा उसे राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पर संघ परिवार से कुछ नहीं सीखना है। उल्टे संघ परिवार को कांग्रेस से गाँधीवादी राष्ट्रवाद की सीख लेनी चाहिए।
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