कांग्रेस ने सीबीआई के पूर्व विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को उनकी सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनाए जाने पर सवाल उठाया है। इसने कहा है कि आख़िर सरकार को ऐसा क्या डर है कि उसने ऐसा किया? कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने पूछा कि मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के ख़िलाफ़ अस्थाना के पास आख़िर क्या है?
राकेश अस्थाना को बुधवार को पदभार करने के दिन ही कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस मामले में प्रेस कॉन्फ़्रेंस की। उन्होंने कहा कि अस्थाना की दिल्ली पुलिस कमिश्नर के रूप में नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले के ख़िलाफ़ है जिसमें इसने कहा था कि जिस अफ़सर की सेवानिवृत्ति की अवधि 6 महीने से कम बची हो उसको पुलिस का प्रमुख नहीं नियुक्त किया जाना चाहिए।
पवन खेड़ा ने कहा कि पेगासस जासूसी वाली सूची में अस्थाना का नाम आने के बाद उनकी नियुक्ति की गई है। उन्होंने अस्थाना को प्रधानमंत्री मोदी का क़रीबी बताते हुए पूछा कि क्या इसके लिए कोई उन्हें लाभ दिया गया है।
कांग्रेस प्रवक्ता ने पूछा, 'राकेश अस्थाना की सीबीआई निदेशक पद के लिए उम्मीदवारी उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख़ के कारण खारिज कर दी गई थी, लेकिन उस क़ानून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त करते समय लागू नहीं किया है। अस्थाना को उनकी सेवानिवृत्ति से चार दिन पहले नियुक्त करने के लिए सरकार को क्या मजबूर होना पड़ा है?'
उन्होंने गुजरात कैडर के अधिकारी अस्थाना को दिल्ली में नियुक्ति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, 'भारत में सिविल सेवाओं में ऐसे कैडर होते हैं जो राज्य और क्षेत्र विशिष्ट होते हैं। इसी तरह, दिल्ली में रिक्तियाँ एजीएमयूटी कैडर से भरी जाती हैं। यह तथ्य कि गुजरात कैडर के एक अधिकारी अस्थाना को लाया गया, इससे एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है। क्या सरकार को एजीएमयूटी कैडर के भीतर कोई कुशल अधिकारी नहीं मिला? क्या यह सरकार कह रही है कि एजीएमयूटी कैडर के वरिष्ठ अधिकारी पुलिस आयुक्त के कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हैं?'
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— Congress (@INCIndia) July 28, 2021
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बता दें कि अस्थाना ने बुधवार को पदभार भी ग्रहण कर लिया। इससे पहले वह सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक के रूप में कार्य कर रहे थे। दो दिन पहले ही ख़बर आई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति यानी एसीसी ने एजीएमयूटी कैडर से बाहर गुजरात कैडर के अस्थाना की दिल्ली पुलिस आयुक्त के तौर पर नियुक्ति को मंजूरी दी। इसके साथ ही समिति ने 31 जुलाई की उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख़ को एक वर्ष की अवधि के लिए आगे बढ़ा दिया है।
राकेश अस्थाना अक्सर विवादों में रहे हैं। सबसे हाल में तो वह तब चर्चा में रहे थे जब वह सीबीआई निदेशक पद की दौड़ से बाहर हो गए थे। इससे पहले वह सीबीआई में विशेष निदेशक भी रह चुके थे।
2019 में एजेंसी के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा को पद से हटाने के बाद उनके विरोधी माने जाने वाले विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। ऐसा इसलिए किया गया था कि उन दोनों अफसरों के बीच तब जंग छिड़ गई थी।
राकेश अस्थाना को पद से हटाने का फ़ैसला इसलिए ज़्यादा चर्चा में रहा था कि उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का क़रीबी माना जाता है। गुजरात में उन्होंने नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान वडोदरा के पुलिस आयुक्त जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया था।
बाद में उन्हें सीबीआई में लाया गया था। इस बीच तत्कालीन सीबीआई निदेशक वर्मा और तत्कालीन विशेष निदेशक राकेश अस्थाना में अनबन शुरू हो गई। उसके बाद दोनों ने एक-दूसरे के ख़िलाफ़ शिकायतें कीं और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया। वर्मा द्वारा 15 अक्टूबर 2018 को अस्थाना के ख़िलाफ़ एक एफ़आईआर भी दर्ज करवायी गयी थी।
उसमें अस्थाना पर आरोप लगा था कि मोइन क़ुरैशी के मामले में एक संदिग्ध को राहत देने के लिए उन्हें बिचौलियों के माध्यम से 2.95 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था।
समझा जाता है कि इस मोर्चे पर फ़जीहत होने के बाद सरकार ने अस्थाना सहित दोनों अफसरों को हटाने का फ़ैसला लिया था। हालाँकि, बाद में अस्थाना को आरोपमुक्त कर दिया गया था और फिर उन्हें अगस्त 2020 में बीएसएफ़ का प्रमुख नियुक्त किया गया था।
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