प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता वाली एक चयन समिति ने गुरुवार को सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को नए चुनाव आयुक्त के रूप में तो चुना, लेकिन पैनल में शामिल विपक्षी सदस्य अधीर रंजन चौधरी ने अपनी असहमति दर्ज की। उन्होंने नियुक्ति के लिए अपनाई गई प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए। अधीर ने दावा किया कि शॉर्टलिस्ट किए गए अधिकारियों के नाम उन्हें पहले से उपलब्ध नहीं कराए गए थे। उन्होंने कहा कि उनके नाम उन्हें तब दिए गए जब पीएम के साथ बैठक के लिए सिर्फ़ 8-10 मिनट बचे थे।
अधीर रंजन चौधरी दो चुनाव आयुक्तों का चयन करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाले पैनल का हिस्सा थे। बैठक में प्रधानमंत्री और अधीर रंजन चौधरी के अलावा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हुए।
अधीर रंजन चौधरी ने चयन प्रक्रिया को लेकर दो गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने आख़िरी समय में उनको सूची दिए जाने पर आपत्ति जताई और कहा कि, 'मैंने शॉर्टलिस्ट की हुई सूची मांगी थी। लेकिन मुझे आधी रात को 212 लोगों की सूची दी गई। सुबह मुझे प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में जाना था। अब कोई बताए कि इतने कम समय में इतने लोगों के बारे में क्या सोचे-विचारे या फिर बुद्धि का इस्तेमाल करे।'
विपक्षी सदस्य चौधरी ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सरकार ने बैठक शुरू होने से सिर्फ 8-10 मिनट पहले उनके साथ छह शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों के नाम साझा किए।
अधीर रंजन चौधरी के अनुसार उनके साथ जिन छह अधिकारियों के नाम आए थे उनमें उत्पल कुमार सिंह, प्रदीप कुमार त्रिपाठी, ज्ञानेश कुमार, इंदीवर पांडे, सुखबीर सिंह संधू और सुधीर कुमार गंगाधर रहाटे थे।
उन्होंने कहा, “अमित शाह ने तब दो नाम प्रस्तावित किए – ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू का। इसके बाद प्रधानमंत्री ने पूछा कि क्या मैं कुछ कहना चाहूंगा। मैंने उन्हें बताया कि मैंने पहले ही सरकार से शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों की बायो-प्रोफाइल मुझे उपलब्ध कराने के लिए कहा था, जिससे मुझे उनकी प्रोफाइल देखने के बाद एक अच्छा निर्णय लेने में मदद मिलती।”
उन्होंने कहा, “लेकिन ऐसा नहीं किया गया। मैं कल रात अपने निर्वाचन क्षेत्र से दिल्ली पहुंचा। और मुझे आश्चर्य हुआ, जब मुझे 212 अधिकारियों की एक विस्तृत सूची मिली जो रात में दी गई थी। मैं इतने कम समय में 212 अधिकारियों के बारे में जानकारी, उनकी निष्ठा, अनुभव और प्रशासनिक क्षमता के बारे में कैसे प्राप्त कर सकता हूं? इसीलिए मैंने शॉर्ट-लिस्ट किए गए उम्मीदवारों की बायो-प्रोफाइल मांगी थी।”
चौधरी ने कहा, “इसलिए, मैंने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से कहा कि आपके पास पैनल में बहुमत है, आपके पास खुला मैदान है, आप जो चाहें कर सकते हैं। मैं क्या कर सकता हूँ? और मैंने उनसे कहा कि मैं इसका विरोध करूंगा क्योंकि इसमें प्रक्रियात्मक खामियां हैं। मैंने उनसे कहा कि मेरे मन में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कुछ भी नहीं है। मैं ज्ञानेश कुमार या सुखबीर सिंह संधू को नहीं जानता। मेरी उनसे कोई दोस्ती या दुश्मनी नहीं है। छह में से एक मेरे गृह राज्य बंगाल से थे- इंदीवर पांडे। मैं उनके बारे में जानता हूं... वे एक अच्छे और काबिल अधिकारी माने जाते हैं।' लेकिन मैंने उनसे कहा कि यह प्रक्रिया के बारे में है। अगर सरकार चाहती थी कि विपक्ष इस अभ्यास का हिस्सा बने, तो उन्हें इसे ठीक से करना चाहिए था ताकि मैं भी योगदान दे सकता।"
कांग्रेस नेता ने कहा, 'और यदि आप विपक्ष को हल्के में लेना चाहते हैं और पूरी प्रक्रिया को महज औपचारिकता बनाना चाहते हैं, तो मैं क्या कर सकता हूं? ...मैंने उनसे कहा कि आपने ये दो नाम प्रस्तावित किए हैं, आप केवल औपचारिकता पूरी कर रहे हैं। मैं भी औपचारिकता पूरी करूंगा और अपनी असहमति दर्ज करूंगा। मैंने उनसे कहा कि मेरी असहमति को रिकॉर्ड पर ले लें। और असहमति प्रक्रियात्मक खामियों को लेकर थी। चौधरी ने कहा, 'मैं कोई जादूगर नहीं हूं जो 212 अधिकारियों के बारे में पता लगाऊं और उनका विवरण पढ़ूं।'
विपक्ष के नेता चौधरी ने चयन समिति को लेकर भी आपत्ति उठाई और कहा कि जिस समिति में सरकार के दो सदस्य- प्रधानमंत्री और गृहमंत्री- हों, वहाँ विपक्ष का एक सदस्य कुछ भी कहे क्या फर्क पड़ता है।
कांग्रेस नेता ने चयन समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश की जगह एक केंद्रीय मंत्री को शामिल करने वाले कानून को लेकर केंद्र पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, 'भारत के मुख्य न्यायाधीश को इस समिति में होना चाहिए था।' उन्होंने कहा कि पिछले साल लाए गए क़ानून ने बैठक को महज एक 'औपचारिकता' तक सीमित कर दिया है। उन्होंने कहा, 'पैनल में सरकार बहुमत में है। वे जो चाहते हैं वही होता है।'
अधीर रंजन चौधरी ने चुनाव आयुक्त के पद से अरुण गोयल के इस्तीफे का भी ज़िक्र किया, जिससे विवाद खड़ा हो गया है। उन्होंने कहा, "जब श्री गोयल को नियुक्त किया गया था, तो सुप्रीम कोर्ट ने 'बिजली की गति' वाली टिप्पणी की थी। वह बिजली की गति से आए और डिजिटल गति से चले गए।"
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