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भारत में कम से कम 5 जजों की बेंच, जिसे हम संविधान पीठ भी कहते हैं, संविधान की व्याख्या करने के लिए विश्वसनीय हैं। एक बार उन पांच या अधिक ने संविधान की व्याख्या कर दी, तो यह उस निर्णय का पालन करने के लिए अनुच्छेद 144 के तहत एक अथॉरिटी के रूप में आपका कर्तव्य है। अब, आप एक नागरिक के रूप में इसकी आलोचना कर सकते हैं। मैं एक नागरिक के तौर पर इसकी आलोचना कर सकता हूं, कोई बात नहीं। लेकिन आप कभी ये मत भूलें कि मेरे उलट आप आज एक अथॉरिटी हैं, आप उस फैसले से बंधे हैं, वो फैसला सही हो या गलत हो।
- जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, 27 जनवरी 2023, मुंबई, सोर्सः इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी बुनियादी ढांचे के सिद्धांत पर सवाल उठाते हुए केंद्र का समर्थन किया और इशारों में कहा कि न्यायपालिका को अपनी सीमाएं पता होनी चाहिए। उन्होंने एनजेएसी (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) अधिनियम को रद्द करने को संसदीय संप्रभुता को चुनौती जैसा मामला बताया। धनखड़ ने केशवानंद भारती मामले पर ऐतिहासिक 1973 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कहा - विधायिका बनाम न्यायपालिका की बहस का एक पुराना उदाहरण 'गलत मिसाल' है। धनखड़ ने कहा था - 1973 में, एक गलत परम्परा शुरू हुई। केशवानंद भारती मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी संरचना का विचार दिया, यह कहते हुए कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, लेकिन इसकी मूल संरचना में नहीं।
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