भारत चीन सीमा तनाव के बीच चीन 10 हज़ार से ज़्यादा भारतीयों पर निगरानी क्यों कर रहा था? प्रधानमंत्री, कैबिनेट मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों से लेकर विपक्षी नेताओं तक। सैन्य प्रमुखों से लेकर वैज्ञानिकों और नौकरशाहों तक। जजों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, अभिनेताओं, खिलाड़ियों से लेकर धर्म गुरुओं तक। ऐसे लोगों के साथ ही उनके परिवार वालों और उनके क़रीबियों पर भी निगरानी क्यों? क्या इससे उसे सीमा विवाद में कोई फ़ायदा मिलेगा? वैज्ञानिकों, जजों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, अभिनेताओं, खिलाड़ियों, धर्म गुरुओं और उन सबके परिवार वालों की निगरानी से चीन को क्या फ़ायदा मिल सकता है? यही वह सवाल है जिससे पता चलता है कि चीन का एक व्यापक मक़सद है। सीमा विवाद से परे। सीमा विवाद जैसे मसले शायद इसके लिए उतने मायने नहीं रखते हैं। फिर उसका मक़सद क्या है?
इसे समझने के लिए पहले यह जान लें कि चीन चाहता क्या है? चीन की ख्वाहिश है कि वह दुनिया पर एकछत्र राज करे। इसके लिए वह विस्तारवादी नीति अपनाए हुए है, पूरी दुनिया में बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव जैसे नेटवर्क बिछा रहा है और हर देश तक अपनी पहुँच बढ़ा रहा है। उसकी राह में आने वाले अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे ताक़तवर देशों के सामने वह सीधा तनकर खड़ा हो रहा है और सीधी चुनौती पेश कर रहा है। उसकी राह में ऐसी ही चुनौती भारत भी है। चीन भारत के पड़ोसी देशों के साथ संबंध बनाकर इसकी घेराबंदी कर रहा है तो भारत भी उसी तरह से चीन को क़रारा जवाब दे रहा है। यानी भारत से चीन को निपटने में शायद काफ़ी मुश्किलें आ रही हैं।
अब जो 10 हज़ार से ज़्यादा भारतीयों पर निगरानी का मामला है वह इसी संदर्भ में है। पूरे मामले को ऐसे समझिए-
झेनहुआ डेटा इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कंपनी एक निजी कंपनी है जो चीन की सरकार और सरकारी राजनीतिक दल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए काम करती है। वह भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सीडीएस, सेना प्रमुख, भारत के मुख्य न्यायाधीश, अफ़सर, खिलाड़ी, पत्रकार आदि लोगों का डाटा जुटा रही थी। इसने उन सैकड़ों लोगों के भी डाटा जुटाए जो वित्तीय अपराध, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, और मादक पदार्थों, सोने, हथियारों या वन्यजीवों की तस्करी के अभियुक्त हैं।
अब सवाल है कि चीन अपराधियों की सूचना इकट्ठा क्यों कर रहा था? दरअसल, इसका भी एक ख़ास मक़सद था। फर्ज करें कि किसी देश में सामाजिक उथप-पुथल पैदा करना हो तो ये अपराधी किस तरह काम आ सकते हैं।
दक्षिण-पूर्व चीन में ग्वांगडोंग प्रांत के शेन्ज़ेन शहर में स्थित झेनहुआ डेटा इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कंपनी के बारे में 'द इंडियन एक्सप्रेस', 'द ऑस्ट्रेलियन फाइनेंशियल रिव्यू', इटली का 'इल फोग्लियो' और लंदन के 'द डेली टेलीग्राफ़' ने जानकारी निकाली है। इसी ख़बर के बाद से चीनी निगरानी को लेकर दुनिया भर में तहलका मचा हुआ है।
'हाइब्रिड वारफेयर'
बहरहाल, इस निगरानी प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण है- एक निशाने के लिए डाटा का इस्तेमाल करना, जिसे 'हाइब्रिड वारफेयर' नाम दिया गया है। हाइब्रिड वारफ़ेयर से उनका मतलब है किसी देश से बिना युद्ध किए या बिना सैनिक के इस्तेमाल किए उस पर अपना दबदबा कायम करना है। यह युद्ध का का एक तरीक़ा। हाइब्रिड वारफ़ेयर का इस्तेमाल नुक़सान पहुँचाने, या माहौल को अपने पक्ष में करने में किया जा सकता है। कंपनी के अनुसार ही हाइब्रिड वारफ़ेयर का उपकरण सूचना है। दूसरे शब्दों में कहें तो सूचना को इस तरह पेश करना कि लोगों की धारणा को बदला जा सके और प्रोपगेंडा चलाया जा सके।
कंपनी कैसे जुटा रही थी डाटा?
जो लोग निशाने पर थे उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखी जा रही थी और सूचनाओं की एक लाइब्रेरी तैयार की जा रही थी। इसमें टार्गेट किए गए व्यक्ति के रिश्तेदारों और क़रीबियों को भी शामिल किया गया। इसके लिए समाचार की सूचनाओं के अलावा वेबसाइट व सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म से जानकारी निकाली, शोध पत्रों, लेखों और यहाँ तक की भर्ती पदों पर नज़र रखी जाती थी और जानकारी जुटाई जाती थी। एआई यानी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से ऐसे लोगों की लोकेशन भी रिकॉर्ड की जाती थी कि कौन कहाँ जा रहा है। सोशल मीडिया पर लाइक करने वाले और कमेंट की भी निगरानी की जाती थी।
यानी निशाने पर लिए गए लोगों की चौबीसों घंटे की जानकारी इकट्ठी की जा रही थी और फिर उनका विश्लेषण किया जा रहा था। यही हाइब्रिड वारफ़ेयर का तरीक़ा है।
कैसे काम करता है हाइब्रिड वारफ़ेयर
दरअसल, इसको इज़ाद करने वालों का मानना है कि हाइब्रिड वारफ़ेयर एक ऐसा तरीक़ा है जिससे किसी देश में स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है। इसमें सामाजिक तनाव पैदा करना, आर्थिक गतिविधियों को पटरी से उतारना, संस्थाओं को खोखला कर देना और राजनीतिक नेतृत्व व इंटेलिजेंस की साख को गिराना शामिल है। ज़ाहिर है कि यदि किसी देश में ऐसी स्थिति पैदा कर दी जाए तो फिर उस देश से सैनिकों और हथियारों से युद्ध करने की नौबत ही नहीं आएगी। और यह सब साइबर हमला कर, ग़लत सूचनाओं का कैंपेन चलाकर, जासूसी करके किया जा सकता है। हाइब्रिड वारफ़ेयर की कल्पना करने वालों का यही मानना था। चीनी सेना के एक प्रकाशन 'अनरेस्ट्रिक्टेड वारफ़ेयर' में सन 2000 से पहले ही हाइब्रिड वारफ़ेयर का ख़ाका पेश किया गया था। इसके बारे में लिखा गया था कि हाइब्रिड वारफ़ेयर सेना की हिंसा से हटकर राजनीतिक, आर्थिक और तकनीक के क्षेत्र में जाना है।
चीन के इस हाइब्रिड वारफ़ेयर के बारे में कितनी सच्चाई है इसका पता इसी बात से चलता है कि जब इस बारे में झेनहुआ कंपनी से जानकारी माँगी गई और सवाल पूछे गए तो वेबसाइट ही बंद कर दी गई। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, रिकॉर्ड बताते हैं कि झेनहुआ को अप्रैल 2018 में एक कंपनी के रूप में पंजीकृत किया गया था और पूरे देश और क्षेत्रों में 20 प्रोसेसिंग सेंटर स्थापित किए गए थे। कंपनी की वेबसाइट पर कहा गया था कि इसके ग्राहकों में चीनी सरकार और सेना भी थी।
भारत पर नज़र रखने के लिए चीन क्या-क्या कर रहा है, यह तो चौंकाता ही है, वह जो तरकीबें अपना रहा है वे भारत को कहीं ज़्यादा सचेत करने वाली हैं।
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