भारत और चीन की सेनाओं में कमांडर स्तर की बातचीत का क्या नतीजा निकला? क्या पीपल्स लिबरेशन आर्मी यानी चीनी सेना हाल फ़िलहाल कब्जा किए गए इलाक़ों को खाली करने पर राज़ी हो गयी है ताकि तनाव कम किया जा सके? क्या चीनी सेना इस पर राजी हो गयी है कि वह वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपने सैनिकों और साजो-सामान के जमावड़े को कम कर देगी ताकि दोनों पक्षों में भरोसा कायम किया जा सके?
मंगलवार को सेना की उत्तरी कमान के 16वीं कोर के कमांडर लेफ़्टीनेंट जनरल हरिंदर सिंह और चीनी सेना के शिनजियांग सैन्य ज़िले के कमांडर मेजर जनरल लिउ लिन के बीच बातचीत हुयी है। 5 जून, 22 जून के बाद यह तीसरे दौर की बातचीत थी, जो तक़रीबन 11 घंटे चली।
क्या हुआ बातचीत में?
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक़, लद्दाख में चुशुल स्थित चीनी चौकी पर हुई बातचीत में इस पर मोटी सहमति बन गई है कि गलवान घाटी और गोगरा हॉट स्प्रिंग्स इलाक़े से दोनों सेनाएं वापस लौट सकती हैं।चीनी सरकार के अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने भी एक ख़बर में कहा है कि दोनों सेनाएं सीमा से सैनिकों को वापस बुलाने पर राजी हो गई हैं ताकि तनाव कम किया जा सके। ग्लोबल टाइम्स की ख़बर में कहा गया है,
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'चीन और भारत सीमा पर अग्रिम पंक्ति के सैनिकों को वापस बुलाने पर राजी हो गए हैं। यह काम कई चरणों में किया जाएगा। यह इसलिए किया जाएगा कि सीमा पर तनाव कम किया जा सके।'
ग्लोबल टाइम्स, चीनी सरकार का अख़बार
क्या कहना है चीन का?
ग्लोबल टाइम्स में यह भी कहा गया है कि 'दोनों पक्षों को सीमा पर बातचीत की मौजूदा प्रक्रिया, पहले के समझौतों और ऐतिहासिक तथ्यों का सम्मान करना चाहिए और दोनों को एक-दूसरे की मुख्य चिंताओं का ख्याल रखना चाहिए।'
इसी दिन राजधानी बीजिंग में रोज़ाना की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा कि 'दोनों देशों ने बातचीत में काफी प्रगति की है।' उन्होंने यह भी कहा कि 'दोनों देश सीमा पर तैनात सैनिकों को वापस बुलाने पर राजी हो गए हैं।'
चीन का संकेत?
दिलचस्प बात यह है कि चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने गलवान घाटी का नाम नहीं लिया। चीनी सरकार के अख़बार ने भी गलवान घाटी का नाम नहीं लिया।लेकिन ग्लोबल टाइम्स की ख़बर में यह ज़रूर कहा गया है कि 'गलवान घाटी सेक्टर बहुत ही संकरा है, वहाँ इतने अधिक सैनिकों की मौजूदगी से इसका संकेत मिलता है कि तनाव बढ़ा हुआ है।' इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि 'तनाव कम करने के लिए अग्रिम पंक्ति के सैनिकों को वापस बुलाने पर सहमति बन गई है।'
इसी लेख में इस बात का उल्लेख है कि
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'यह इलाक़ा 5,000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है जहाँ सितंबर में किसी मनुष्य का रहना नामुमकिन है। इस स्थिति में कमांडरों का मानना है कि जितनी जल्दी हो सके, मामले को सुलटा लेना चाहिये।'
ग्लोबल टाइम्स, चीनी सरकार का अख़बार
उधर, इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर काफी दिलचस्प है। उसका कहना है कि चीन पैंगोंग झील के किनारे के इलाके और डेप्सांग पर कोई बात करने को तैयार नहीं है। उसका कहना है कि चीन का दावा है ये उसके इलाक़े हैं और वहां से पीछे हटने का कोई सवाल ही नहीं है।
ऐसे में यही तसवीर उभरती है कि चीन गलवान घाटी से सैनिकों को वापस बुलाने पर राजी है, पर वह पैंगोंग झील और डेप्सांग खाली नहीं करने पर अड़ा हुआ है। यानी पिक्चर अभी बाकी है।
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