हिन्दू राष्ट्रवाद कर रहा है चीन का विरोध?
चीन के नीतिकार बीजिंग के प्रति भारत के कथित विरोध को हिन्दू राष्ट्रवाद के साथ जोड़ते हुए यह मानते हैं कि सामाजिक आम सहमति बनाने के लिए चीन के प्रति दुश्मनी निभाई जा रही है। बीजेपी मुसलमानों से विरोध और चीन-विरोधी भावनाओं को उभार कर जनता को लामबंद कर रही है।चीन का मानना है कि इसके तहत ही सत्तारूढ़ बीजेपी एक नया नैरेटिव गढ़ रही है, इसके साथ ही वह नई सामाजिक नीतियाँ बना रही है और राष्ट्रीय कार्रवाइयाँ कर रही है।
विश्व गुरु बनने की चाहत?
क्या चीन के साथ बढ़ते टकराव को हिन्दुओं के विश्व गुरु बनने की चाह का नतीजा माना जा सकता है? भारत में ऐसा मानने वाले कम लोग ही होंगे, पर चीन का यही मानना है। हालांकि ग्लोबल टाइम्स के इस लेख में 'विश्व गुरु' शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है, पर इसे हिन्दु पौराणिक विश्वासों का नतीजा ज़रूर माना गया है।5 ट्रिलियन इकॉनमी भी हिन्दू राष्ट्रवाद?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 5 ट्रिलियन कारोबार की अर्थव्यवस्था बनाने की घोषणा को भी इस हिन्दू राष्ट्रवाद से ही जोड़ कर देखा गया है। नरेंद्र मोदी ने पिछले साल के बजट के पहले इसका एलान किया था और उसी बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी इसका ज़िक्र किया था।5 ट्रिलियन इकॉनमी के लक्ष्य को भारत सरकार की आर्थिक नीति नहीं बल्कि आर्थिक बदहाली से ध्यान बँटाने की रणनीति के रूप में देखा गया था। किसी ने इसे हिन्दू राष्ट्रवाद से जोड़ कर नहीं देखा था।
क्या कहते हैं चीनी नीतिकार?
पर चीन के सिद्धांतकार 5 ट्रिलियन इकॉनमी के लक्ष्य को भी हिन्दू राष्ट्रवाद से जोड़ कर ही देखते हैं। इतना ही नहीं, वे इस पर अपनी चिंता भी नहीं छिपाते हैं। ग्लोबल टाइम्स लिखता है,“
'भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 के लिए जीडीपी का लक्ष्य 5 ट्रिलियन डॉलर का रखा है। इससे भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, इससे हिन्दू राष्ट्रवाद की ठोस आर्थिक बुनियाद रखी जा सकेगी।'
ग्लोबल टाइम्स के लेख का अंश
हिन्दू राष्ट्रवाद की आर्थिक बुनियाद?
पर्यवेक्षकों का मानना है कि चीन हिन्दू राष्ट्रवाद को समझने में ग़लती कर रहा है। यह हिन्दू राष्ट्रवाद किसी आर्थिक बुनियाद पर नहीं टिका है और न ही किसी धार्मिक राष्ट्रवाद को आर्थिक मजबूती की ज़रूरत ही होती है।'चीन को जीतना ज़रूरी'
बहरहाल, चीनी सिद्धांतकारों का यह भी मानना है कि भारत का यह हिन्दू राष्ट्रवाद चीन को निशाने पर इसलिए ले रहा है कि उसे लग रहा है कि विश्व का नेता बनने के पहले चीन को जीतना ज़रूरी है। ग्लोबल टाइम्स लिखता है, 'हिन्दू राष्ट्रवाद का मौजूदा विकास इतिहास में विरले ही है। इस राष्ट्रवाद के मूल में हिन्दुओं के लिए बड़ा देश बनाना है। भारतीयों को लगता है कि यह लक्ष्य हासिल करने के पहले उन्हें चीन को जीतना होगा।'बिल्कुल साफ़ है कि ग्लोबल टाइम्स हिन्दू राष्ट्रवाद की जड़ें और उसके विकास को समझने में नाकाम है। केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी।
1962 में जंग क्यों हुई थी?
ग्लोबल टाइम्स मोटे तौर पर यह मान कर चलता है कि बीजेपी नेतृत्व चीन विरोधी भावनाओं का इस्तेमाल अपने हिन्दू राष्ट्रवाद को मजबूत करने के लिए कर रहा है। इसका मतलब साफ़ है कि यदि किसी ग़ैर-बीजेपी दल की सरकार रही होती जिसे हिन्दू राष्ट्रवाद से कोई मतलब नहीं होता तो चीन के साथ भारत का रिश्ता खराब नहीं होता। अगर ऐसा है तो फिर 1962 में भारत और चीन के बीच जंग क्यों हुयी?अमेरिकी जाल में भारत?
ग्लोबल टाइम्स इसके पहले भी यह बात कई बार कह चुका है। लेख में कहा गया है, 'भारत में लोग इस बात का समर्थन कर रहे हैं कि वह चीन को रोकने के लिए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ शामिल हो जाए।'मोदी के गुजरात में चीनी निवेश!
यह भी दिलचस्प बात है कि जब सौ से ज़्यादा चीनी कंपनियों ने गुजरात में कारोबार शुरू किया था और अरबों रुपए का निवेश किया था, उस समय वहाँ के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे।
वह उस समय भी हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीति करते थे। नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री के रूप में 4 बार चीन गए थे और हर बार वे कुछ न कुछ निवेश लेकर ही लौटे थे।
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