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फ़ोटो साभार - isro.gov.in

जानिए कौन हैं डॉ. विक्रम साराभाई, जिनके नाम पर रखा गया लैंडर का नाम

'चंद्रयान-2' के लैंडर 'विक्रम' का चांद पर उतरते समय इसरो से संपर्क टूट गया और जब सपंर्क टूटा तब लैंडर चांद की सतह से सिर्फ़ 2.1 किलोमीटर की दूरी पर था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि लैंडर का नाम ‘विक्रम’ क्यों रखा गया। आइए, आपको बताते हैं। 

लैंडर का नाम ‘विक्रम’ डॉ. विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया जिन्हें भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का पिता कहा जाता है। डॉ. साराभाई का जन्म 12 अगस्त 1919 को देश के जाने-माने उद्योगपति अंबालाल साराभाई के घर हुआ था। डॉ. साराभाई ने कैंब्रिज से पढ़ाई पूरी कर स्वतंत्र भारत में आने के बाद नवंबर 1947 में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (फ़िजिकल रिसर्च लैबोरेटरी-पीआरएल) की स्थापना की थी। 

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डॉ. साराभाई भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के चेयरमैन बने। उनके साथ अहमदाबाद के अन्य उद्योगपतियों ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ अहमदाबाद की स्थापना में अहम भूमिका निभाई। डॉ. विक्रम द्वारा स्थापित देश के प्रमुख संस्थानों में पीआरएल और आईआईएम-ए के अलावा कम्युनिटी साइंस सेंटर अहमदाबाद, विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर तिरुअनंतपुरम, स्पेस अप्लीकेशन सेंटर, अहमदाबाद, फास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफबीटीआर) कलपक्कम, वैरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन प्रोजेक्ट, कलकत्ता, इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) हैदराबाद, यूरेनियम कॉर्पोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) जादूगुडा बिहार शामिल हैं।
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भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सबसे बड़ी उपलब्धि इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) रही। साराभाई सरकार को अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए मनाने में सफल रहे। उन दिनों एक ग़रीब और विकासशील देश में अंतरिक्ष संबंधी शोध को लेकर विरोध होता था। कहा जाता था कि जो देश ग़रीबी से जूझ रहा है, वहां अंतरिक्ष शोध की क्या ज़रूरत है। 

उस समय डॉ. साराभाई ने कहा था, “कुछ लोग विकासशील देश में अंतरिक्ष गतिविधियों की ज़रूरत को लेकर सवाल उठाते हैं। हमारे लिए इस मक़सद को लेकर कोई अस्पष्टता नहीं है। हमें आर्थिक रूप से अगड़े देशों से प्रतिस्पर्धा या होड़ नहीं करनी है कि चांद या किसी ग्रह पर संभावनाएं तलाशनी हैं। लेकिन हम इस बात से प्रेरित हैं कि इसकी देश में अहम भूमिका हो सकती है। इससे भारतीय समुदाय को फायदा हो सकता है। हम मनुष्य और समाज की वास्तविक समस्याओं का समाधान उन्नत तकनीक का इस्तेमाल करके कर सकते हैं।”

डॉ. साराभाई विज्ञान की शिक्षा को लेकर इतने समर्पित थे कि 1966 में उन्होंने कम्युनिटी साइंस सेंटर, अहमदाबाद की स्थापना की थी। इसे अब विक्रम साराभाई कम्युनिटी साइंस सेंटर के नाम से जाना जाता है। उनकी निगरानी में अहमदाबाद में एक्सपेरिमेंटल सैटेलाइट कम्युनिकेशन अर्थ स्टेशन की स्थापना हुई। इसकी भारत के एजुकेशनल टेलीविजन परियोजना में अहम भूमिका रही।

भारत के नाभिकीय विज्ञान कार्यक्रम के पिता के रूप में सम्मानित डॉ. होमी जहांगीर भाभा के सहयोग से डॉ. साराभाई ने भारत में पहले रॉकेट लांचिंग स्टेशन की स्थापना की। यह अरब सागर के तट पर तिरुवनंतपुरम के नजदीक थुंबा में है।

थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लांचिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) से सोडियम वेपर पेलोड वाला पहला रॉकेट 21 नवंबर 1963 को लांच किया गया। 1965 में यूएन जनरल एसेंबली ने टीईआरएलएस को अंतरराष्ट्रीय केंद्र के रूप में मान्यता दी।

साराभाई परिवार की स्वतंत्रता आंदोलन में भी अहम भूमिका रही है। गुरुदेव रवींद्रनाथ, जे कृष्णमूर्ति, मोतीलाल नेहरू, वीएस श्रीनिवास शास्त्री, जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सीएफ़ एंड्र्यूज, सीवी रमन अहमदाबाद जाने पर साराभाई के यहां रुकते थे। 

महात्मा गांधी भी अपनी बीमारी की हालत में एक बार इस परिवार के लंबे समय तक मेहमान रहे थे। इस तरह से विक्रम साराभाई पर भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का असर पड़ा। अरबपति कारोबारी और डॉ. विक्रम के पिता अंबालाल साराभाई देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बहुत अच्छे मित्र थे। 

डॉ. होमी जहांगीर भाभा की विमान दुर्घटना में मृत्यु के बाद उन्होंने एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन का पदभार 1966 में संभाला था। डॉ. साराभाई इसरो के साथ परमाणु ऊर्जा निकाय के भी चेयरमैन रहे। वह परमाणु संयंत्रों के शांतिपूर्ण उपयोग के हिमायती थे। डॉ. साराभाई के समय में ही वैश्विक समुदाय में यह माना जाने लगा था कि भारत के पास एक से डेढ़ साल में बम बना लेने की तकनीक उपलब्ध है।

कॉस्मिक किरणों और स्पेस रिसर्च के अंतरराष्ट्रीय रूप से ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक डॉ. साराभाई की मृत्यु महज 52 साल की उम्र में 31 दिसंबर 1971 को केरल के सरकारी टूरिस्ट होटल कोवलम पैलेस में हुई।

डॉ. साराभाई ने जानी-मानी क्लॉसिकल डांसर मृणालिनी से 1942 में विवाह किया। मृणालिनी के साथ मिलकर उन्होंने दर्पण एकेडमी फ़ॉर पर्फार्मिंग आर्ट्स अहमदाबाद की स्थापना की। उनकी पुत्री मल्लिका साराभाई एक्टिविस्ट और कलाकार हैं और बेटे कार्तिकेय साराभाई पर्यावरण विज्ञान के क्षेत्र में सक्रिय हैं।

डॉ. साराभाई ने भारत के लिए जितना कुछ किया, उसकी यह एक छोटी सी सूची है। उन्ही के पुरखों की जमीन पर इसरो, पीआरएल और आईआईएम-ए सहित नामी गिरामी संस्थान बने हुए हैं। यह भी देखने वाली बात है कि उन्हें देश के लोगों ने क्या दिया है। इस समय पर्यावरण, मानवाधिकार के लिए काम करने वाले एक्टिविस्टों को टुकड़े-टुकड़े गैंग का नाम दिया जा चुका है, जिसके लिए डॉ. साराभाई के बेटे और बेटी समर्पित हैं। 

भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी की कलाकार मल्लिका 2002 में हुए गोधरा दंगों के बाद से नरेंद्र मोदी की आलोचक रही हैं। मल्लिका एमबीए हैं और उन्होंने आईआईएम अहमदाबाद से पीएचडी की है। उन्होंने 2009 में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी लालकृष्ण आडवाणी के ख़िलाफ़ गांधीनगर से लोकसभा चुनाव लड़ा था और अपने चुनाव लड़ने को घृणा की राजनीति के ख़िलाफ़ सत्याग्रह करार दिया था। 

मल्लिका को 1984 में राजीव गांधी ने राजनीति में आने का न्योता दिय़ा था, लेकिन उन्हें राजनीति रास नहीं आई। 2009 के चुनाव में गांधीनगर में उन्हें 9,268 वोट मिले और मल्लिका की जमानत जब्त हो गई थी।

स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, डॉ. विक्रम साराभाई और डॉ. होमी जहांगीर भाभा की तिकड़ी ने महज 2 दशक में भारत में विज्ञानवाद की ठोस नींव रख दी थी। 1938 में ही नेहरू ने कहा था, “अत्याधुनिक तकनीकी उपलब्धियों पर आधारित अर्थव्यवस्था अपनी मजबूत जगह बना रही है। अगर तकनीक बड़ी मशीन की मांग करती है, जैसा कि इस समय बड़े पैमाने पर हो रहा है, तो बड़ी मशीन को उसके सभी प्रभावों के साथ निश्चित रूप से स्वीकार किया जाना चाहिए।”

ऐसी स्थितियों में, जब पैसे के पीछे न भागने वालों, बहुत ज्यादा धन संग्रह न करने वालों, रिश्वत न लेने वालों को मूर्ख या ललचाई लोमड़ी की संज्ञा दी जाने लगी है तो डॉ. साराभाई जैसे व्यक्तित्व याद आते हैं। उन्होंने न सिर्फ अपनी पूरी जिंदगी देश के नाम कर दी, बल्कि अपनी पैतृक संपत्ति भी देश को समर्पित कर दी। यह अलग बात है कि आज के दौर में इस तरह के लोगों को अपने बच्चों के लिए कुछ न कर पाने वाला, पैतृक संपत्ति बर्बाद कर देने वाला और बेवकूफ और मूर्ख कहकर खारिज किया जाने लगा है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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