क्या उत्तर भारत के लोगों में योग्यता की कमी होती है, हर कोई कहेगा नहीं, ऐसा नहीं है। दुनिया भर में उत्तर भारत के लोगों ने अपने हुनर से नाम कमाया है। यह बयान कोई आम शख़्स दे तो समझा जा सकता है कि उसकी समझ रोज़गार या उत्तर भारतीयों को लेकर कम रही होगी। लेकिन जब मोदी सरकार में मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता ऐसा बयान दें तो उत्तर भारतीयों का नाराज होना स्वाभाविक है। केंद्र सरकार में मंत्री संतोष गंगवार ने कहा है कि देश में नौकरियों की कोई कमी नहीं है बल्कि उत्तर भारत के लोगों में योग्यता की कमी है।
केंद्र सरकार में श्रम और रोज़गार राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष गंगवार ने शनिवार को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, ‘मैं यह कहना चाहता हूँ कि देश में नौकरियों का कोई अकाल नहीं है, बहुत रोज़गार है। मैं इसी मंत्रालय को संभाल रहा हूँ और हर दिन के हालात पर नज़र रखता हूँ। हमारे पास रोज़गार देने के लिए रोज़गार दफ़्तर हैं और हमने इसके लिए अलग से भी व्यवस्था की है। हमारा मंत्रालय हालात पर नज़र रख रहा है।’
गंगवार ने आगे कहा, ‘जो लोग हमारे उत्तर भारत में नौकरियां देने के लिए आते हैं, वे इस बात का सवाल कर देते हैं कि जिस पद के लिए वे रख रहे हैं उसकी क्वालिटी का व्यक्ति हमें कम मिलता है।’
#WATCH MoS Labour & Employment, Santosh K Gangwar says, "Desh mein rozgaar ki kami nahi hai. Humare Uttar Bharat mein jo recruitment karne aate hain is baat ka sawaal karte hain ki jis padd (position) ke liye hum rakh rahe hain uski quality ka vyakti humein kum milta hai." (14/9) pic.twitter.com/qQtEQA89zg
— ANI (@ANI) September 15, 2019
गंगवार का यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश भर में अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर ख़राब ख़बरें आ रही हैं। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री से साढ़े तीन लाख नौकरियाँ जा चुकी हैं, इसके अलावा हीरा उद्योग से भी नौकरियाँ जाने की ख़बर है। देश की आर्थिक विकास दर गिरकर 5 फ़ीसदी पर पहुँच गई है और सबसे चिंताजनक बात यह है कि बेरोज़गारी की दर पिछले 45 साल में सबसे ज़्यादा हो गई है।
ऐसे में मंत्री का यह बयान बेहद निराशाजनक है क्योंकि सरकार को चाहिए कि वह ख़राब आर्थिक हालात के बीच ऐसे लोग जिनकी नौकरियाँ चली गई हैं, उनके लिए नौकरियों का इंतजाम करे बजाय इसके कि वह देश के बड़े हिस्से के लोगों के लिए कह दे कि उनमें योग्यता की कमी है।
बेरोज़गारी के आंकड़े सामने आने के बाद भी यह सरकार मानने को बिलकुल तैयार नहीं है कि देश में नौकरियाँ जा रही हैं। कहने का मतलब यह है कि बेरोज़गारी और ख़राब आर्थिक हालात को लेकर अर्थशास्त्रियों से लेकर आम लोग भले ही चिंता जता रहे हों लेकिन केंद्र सरकार में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने हाल ही में कहा है कि बेरोज़गारी को लेकर आए आंकड़े पूरी तरह ग़लत हैं और किसी की भी नौकरी नहीं गई है।
केंद्रीय मंत्री राय का कहना है कि बुनियादी ढांचे में सुधार हो रहा है, बड़ी कंपनियां विभिन्न क्षेत्रों में निवेश कर रही हैं, करोड़ों लोग मुद्रा योजना के तहत ऋण ले रहे हैं और इससे पता चलता है कि रोज़गार बढ़ रहा है। राय का यह भी कहना है कि देश 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी के रास्ते पर चल रहा है।
यहाँ तक कि केंद्र में वित्त मंत्रालय जैसा अहम ओहदा संभाल रहीं निर्मला सीतारमण ने ऑटो सेक्टर में आई मंदी के लिए युवाओं की सोच और ओला-उबर कैब को ज़िम्मेदार ठहरा दिया था। वित्त मंत्री का कहना था कि युवा वर्ग नई कार के लिए ईएमआई का भुगतान करने से ज़्यादा ओला और उबर जैसी टैक्सी सर्विस का इस्तेमाल करना पसंद कर रहे हैं और इस वजह से ऑटो सेक्टर में मंदी है।
बीजेपी ने 2014 में हर साल दो करोड़ रोज़गार देने का वादा किया था और लोगों ने उसके इस वादे पर वोट भी दिया था। लेकिन सरकार के पहले कार्यकाल में विपक्ष लगातार रोज़गार के मुद्दे पर मोदी सरकार पर हमलावर रहा और पूछता रहा कि हर साल 2 करोड़ रोज़गार के वादों का क्या हुआ। हाल ही में सरकार ने जो आर्थिक सर्वे पेश किया है उसमें भी रोज़गार पर ज़्यादा कुछ नहीं कहा गया है।
देश की तरक़्क़ी का सीधा मतलब रोज़गार से है। रोज़गार बढ़ेगा तो लोगों की प्रति व्यक्ति आय में इजाफ़ा होगा, इससे लोगों में ख़र्च करने की क्षमता बढ़ेगी और उत्पादन बढ़ेगा। उत्पादन बढने से अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहतर होगी। लेकिन सवाल यह है कि सरकार 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का ख़्वाब तो दिखा रही है लेकिन रोज़गार को लेकर वह इस तरह के ‘योग्यता कम होने’ वाले नकारात्मक बयान दे रही है। ऐसे में देश कैसे 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनेगा, सरकार को इस सवाल का जवाब ज़रूर देना चाहिए।
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