ज्ञानवापी मस्जिद में कथित रूप से मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग को लेकर वाराणसी के जिला जज ए. के. विश्वेश की अदालत ने अदालत ने शुक्रवार को फैसला नहीं सुनाया। अब इस मामले में 11 अक्टूबर को अदालत फिर से सुनवाई करेगी। हिंदू पक्ष ने कथित रूप से मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग की मांग की थी।
याचिकाकर्ताओं के वकील विष्णु जैन ने पत्रकारों को बताया, अदालत ने कहा है कि इस मामले में कोई फैसला देने से पहले हमारी ओर से दो सवाल हैं और इन सवालों पर हिंदू पक्ष अपना स्पष्टीकरण दे। उन्होंने पत्रकारों को बताया कि पहला सवाल यह कि कथित रूप से जो शिवलिंग मिला है, क्या वह इस केस का हिस्सा है या नहीं और दूसरा यह कि वैज्ञानिक परीक्षण के लिए अदालत कोई आयोग बना सकती है या नहीं।
इस मामले में दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने 29 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। हिंदू पक्ष की ओर से कथित रूप से मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराए जाने का ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतजामिया कमेटी के अलावा राखी सिंह नाम की महिला ने भी विरोध किया था।
राखी सिंह उन 5 महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने वाराणसी की सिविल कोर्ट में याचिका दायर कर मस्जिद के अंदर देवी-देवताओं की पूजा की इजाजत देने की मांग की थी। उनके वकीलों ने कार्बन डेटिंग को लेकर अदालत के सामने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि इससे उस आकृति को नुकसान होगा जिसे लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्षों के बीच विवाद है।
क्या है कार्बन डेटिंग?
कार्बन डेटिंग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है जो किसी पुरातात्विक वस्तु के बारे में बताती है कि यह कितनी पुरानी है। कार्बन डेटिंग प्रक्रिया एक ऐसा तरीका है जो कॉर्बन के गुणों का इस्तेमाल करके कॉर्बनिक पदार्थ युक्त किसी वस्तु की आयु का पता लगाने में मदद करती है। कॉर्बन डेटिंग 1940 के दौर में शुरू हुई थी। दुनिया भर में इसका व्यापक इस्तेमाल होता है।
एक वैज्ञानिक पत्रिका नेचर में प्रकाशित रिसर्च पेपर के मुताबिक, सभी जीवित वस्तुएं अपने जीवन काल में आसपास के वातावरण से कार्बन का अवशोषण करती हैं। इसमें कुछ मात्रा में रेडियो एक्टिव कार्बन -14 यानी (C-14) भी शामिल होता है।
रिसर्च पेपर के मुताबिक, जब कोई पौधा या कोई जीव मर जाता है तो कार्बन का अवशोषण होना बंद हो जाता है। लेकिन कार्बन -14 एक रेडियो एक्टिव कार्बन है इसलिए उस पौधे या जीव में यह धीरे-धीरे खत्म होता है और एक टाइम कैप्सूल बना देता है। इस तरह अगर अदालत ज्ञानवापी मस्जिद के भीतर मिली आकृति की कार्बन डेटिंग का आदेश देती है तो विशेषज्ञ इस आकृति से एक नमूना लेंगे और देखेंगे कि यहां पर कितना कॉर्बन -14 बचा हुआ है और इससे यह पता चल सकेगा कि यह कितना पुराना है।
क्या है मामला?
बताना होगा कि वाराणसी की सिविल कोर्ट में 5 हिंदू महिलाओं ने याचिका दायर कर मस्जिद के अंदर देवी-देवताओं की पूजा की इजाजत देने की मांग की थी। यह मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में ही स्थित है।
निचली अदालत के आदेश के बाद इस साल मई के महीने में ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे हुआ था। सर्वे के बाद से हिंदू और मुसलिम पक्ष एक नई लड़ाई में उलझ गए थे। हिंदू पक्ष का कहना था कि मस्जिद के अंदर से जो आकृति मिली है वह शिवलिंग है जबकि मुसलिम पक्ष ने साफ कहा था कि यह फव्वारा है।
मुसलिम पक्ष ने कहा था कि शिवलिंग में कोई सुराख नहीं होता जबकि इस आकृति में एक सुराख है। फव्वारे और शिवलिंग के बीच चल रहे इस विवाद को लेकर सोशल मीडिया पर भी काफी जोरदार बहस हुई थी। इसके बाद हिंदू पक्ष की ओर से इस आकृति को लेकर कार्बन डेटिंग कराए जाने की मांग की गई थी।
हिंदू पक्ष में मतभेद!
कॉर्बन डेटिंग पर हिन्दू पक्षों में मतभेद उभरने की काफी चर्चा हुई थी। कहा गया था कि याचिकाकर्ता राखी सिंह का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील जितेंद्र सिंह विशन को कथित तौर पर लगता है कि उन्होंने यह लड़ाई शुरू की थी, लेकिन वकील हरिशंकर जैन और विष्णु जैन, जो अन्य चार याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, उनको ज्यादा श्रेय दिया जा रहा है। ज्ञानवापी परिसर के सर्वे का वीडियो लीक होने पर भी दोनों पक्षों में विवाद हुआ था।
सुने जाने लायक है श्रृंगार गौरी मामला
पिछले महीने ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के मामले में वाराणसी की जिला अदालत का फैसला आया था। अदालत ने कहा था कि श्रृंगार गौरी मामला आगे सुने जाने योग्य है और मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया गया था।
5 हिंदू महिलाओं की ओर से मस्जिद के अंदर देवी-देवताओं की पूजा की इजाजत देने की याचिका को मस्जिद की अंजुमन इंतजामिया कमेटी की ओर से चुनौती दी गई थी। कमेटी ने अदालत में पूजा स्थल अधिनियम, 1991 का हवाला दिया था और कहा था कि इसके तहत हिंदू महिलाओं की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकती।
बता दें कि इस साल मई के महीने में हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला वाराणसी के जिला जज को ट्रांसफर कर दिया था। अदालत ने आदेश दिया था कि इस मामले में आई तमाम अर्जियों को भी जिला जज के पास ट्रांसफर किया जाना चाहिए।
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