चुनावी बिसात बिछते ही अक्सर सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए बाबा साहब आंबेडकर अहम हो जाते हैं। संविधान में उनके द्वारा सभी धर्म, जाति और समुदाय के लोगों के लिए सम्मिलित की गई बातें राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों में फिर से स्थान पा लेती हैं। सरकारें बनते ही अगले 5 साल यह बातें फ़ाइलों में ही दबी रह जाती हैं और अगले चुनाव में फिर वही शगूफ़ा छूटता है। आख़िर ऐसा क्यों होता है?