सोरोस का भारतीय संदर्भ
2020 में दावोस में हुए वर्ल्ड इकनॉमिक फ़ोरम के मंच पर जॉर्ज सोरोस ने कहा था- राष्ट्रवाद पीछे हटने की बजाय आगे बढ़ रहा है। सबसे बड़ा आघात भारत से आया है। लोकतांत्रिक रूप से चुने गए नरेंद्र मोदी हिन्दू राष्ट्रवादी राज्य बना रहे हैं। वे अर्द्ध स्वायत्त कश्मीर पर दंडात्मक कार्रवाई थोप रहे हैं, और करोड़ों मुसलमानों से नागरिकता छीन रहे हैं।“
भारत एक लोकतांत्रिक देश है, लेकिन नरेंद्र मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं। उनके तेजी से बड़ा नेता बनने की अहम वजह मुस्लिमों के साथ की गई हिंसा है। भारत में मोदी और बिजनेस टाइकून अडानी एक दूसरे के सहयोगी हैं। अडानी ने शेयर बाज़ार से राशि जुटाने की कोशिश की जिसमें वह विफल रहे।
- जॉर्ज सोरोस, यूएस उद्योगपति, फरवरी 2023, म्यूनिख में सोर्सः इंडियन एक्सप्रेस
' सोरोस के इस बयान को मोदी सरकार के कई मंत्रियों ने भारत पर हमला बताया। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सोरोस को आर्थिक युद्ध अपराधी बताया। बहरहाल, भारत में बहुत दिनों तक सोरोस छाए रहे।
ट्रंप के खिलाफ फंडिंग का आरोप
ट्रंप के अलावा कुछ अन्य प्रमुख रिपब्लिकन, जिनमें फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डीसांटिस और पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ शामिल हैं, ने कहा कि अटॉर्नी एल्विन ब्रैग को सोरोस ने फंडिग किया और ब्रैग ने ही इस मामले की पैरवी की, जिसमें ट्रंप को सरेंडर करना पड़ा।ट्रंप ने एक बयान में दावा किया कि अटॉर्नी एल्विन ब्रैग को "जॉर्ज सोरोस ने फंडिग की है।" हालांकि सीएएन की एक विशेष रिपोर्ट में कहा गया कि सोरोस ने ब्रैग के 2021 के चुनाव अभियान में कोई प्रत्यक्ष योगदान नहीं दिया था। सोरोस के प्रवक्ता, माइकल वचोन ने पिछले सप्ताह सीएनएन को बताया कि दोनों व्यक्तियों ने कभी भी किसी भी तरह से संवाद नहीं किया।
ब्रैग के सफल अभियान को कलर ऑफ चेंज से संबद्ध राजनीतिक कार्रवाई समिति ने समर्थन दिया था। यह एक गैर-लाभकारी वकालत समूह है। कलर ऑफ चेंज पीएसी, जिसने देश भर के प्रगतिशील जिला अटॉर्नी उम्मीदवारों का समर्थन किया है, ने ब्रैग का समर्थन करते हुए $ 500,000 से थोड़ा अधिक खर्च किया। यह जानकारी कलर ऑफ चेंज के अध्यक्ष और पीएसी के प्रवक्ता राशद रॉबिन्सन ने पिछले सप्ताह सीएनएन को दी थी।
कौन हैं जॉर्ज सोरोस
जॉर्ज सोरोस दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से एक हैं। वह मूल रूप से हंगरी के हैं, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के समय उन्हें अपना देश हंगरी छोड़ना पड़ा था। 1947 में वह लंदन पहुंचे थे और उन्होंने यहीं से लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में फिलोसोफी की पढ़ाई की। बाद में वह अमेरिका चले गए। वह बहुत बड़े निवेशक हैं।लेकिन अरबपति बनने से पहले सोरोस ने काफ़ी ज़्यादा असहिष्णुता को झेला है। 1930 में हंगरी में जन्मे सोरोस ने 1944-1945 के नाजी कब्जे के दौरान किसी तरह खुद को ज़िंदा बचाए रखा। नाजी कब्जे के कारण 500,000 से अधिक हंगरी के यहूदियों की हत्या हुई। जॉर्ज सोरोस की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि उनका अपना यहूदी परिवार झूठे पहचान पत्रों को हासिल करके, अपना इतिहास छुपाकर और दूसरों को भी ऐसा करने में मदद करके बचा रहा।
सोरोस ने लंदन के लिए 1947 में बुडापेस्ट को छोड़ दिया। उन्होंने वहाँ पर रेलवे कुली के रूप में अंशकालिक रूप से काम किया और लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए नाइट-क्लब वेटर के रूप में काम किया। 1956 में वह वित्त और निवेश की दुनिया में प्रवेश करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए। वहीं उन्होंने अपनी किस्मत बनाई। 1973 में उन्होंने अपना हेज फंड, सोरोस फंड मैनेजमेंट लॉन्च किया और संयुक्त राज्य अमेरिका के इतिहास में सबसे सफल निवेशकों में से एक बन गए।
सोरोस ने 1979 में रंगभेद के तहत काले दक्षिण अफ़्रीकी लोगों को छात्रवृत्ति देकर अपनी चैरिटी शुरू की। 1980 के दशक में उन्होंने कम्युनिस्ट हंगरी में पश्चिम की अकादमिक यात्राओं को फंड देकर और स्वतंत्र सांस्कृतिक समूहों और अन्य पहलों का समर्थन करके विचारों के खुले आदान-प्रदान को बढ़ावा देने में मदद की। उसके बाद तो उन्होंने जर्मनी में भी स्वतंत्र विचारों के लिए फंडिंग की। वह समलैंगिक विवाह के समर्थक हैं। 2017 में ओपन सोसाइटी फ़ाउंडेशन ने घोषणा की कि सोरोस ने अपनी संपत्ति का 18 बिलियन डॉलर फ़ाउंडेशन के भविष्य के काम के वित्तपोषण के लिए स्थानांतरित कर दिया है, जिससे 1984 से फ़ाउंडेशन को दिया गया उनका कुल दान 32 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया है।
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