अंतरिक्ष की दुनिया के अंतरराष्ट्रीय जानकारों और दुनिया भर के मीडिया का कहना है कि इसरो का विक्रम से संपर्क टूट जाना बहुत मामूली सा नुक़सान है और इसका यह मतलब क़तई नहीं है कि सब कुछ ख़त्म हो गया है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया का कहना है कि ऑर्बिट्रर अभी भी चंद्रमा के चारों ओर चक्कर लगा रहा है।
अख़बार ‘द गार्डियन’ ने लेख लिखा है ‘भारत की मून लैंडिंग को झटका, आख़िरी क्षणों में टूटा संपर्क।’ लेख में फ़्रांस की अंतरिक्ष एजेंसी सीएनईएस के भारत में प्रतिनिधि मैथ्यू वीइस के हवाले से कहा गया है कि ‘भारत संभवत: उस दिशा में जा रहा है जहाँ शायद चांद पर मानव बस्तियां बसने में 20 साल, 50 साल या 100 साल लगेंगे।'
अमेरिकी मैगजीन ‘वायर्ड’ ने कहा है कि चंद्रयान-2 भारत का अब तक का 'सबसे महत्वाकांक्षी' अंतरिक्ष मिशन था। मैगजीन ने लिखा है, 'विक्रम लैंडर और जिस प्रज्ञान रोवर को चांद की सतह पर उतारने के लिए वह ले जा रहा था, उनसे संपर्क टूटना भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए बहुत बड़ा झटका है लेकिन मिशन को लेकर अभी सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ है।'
वाशिंगटन पोस्ट ने, ‘चांद पर उतरने का भारत का पहला प्रयास संभवत: फ़ेल’, इस हेडिंग से ख़बर लिखी है। अख़बार ने आगे लिखा है, ‘मिशन के नाकाम होने के बावजूद सोशल मीडिया पर लोगों ने अंतरिक्ष एजेंसी इसरो और उसके वैज्ञानिकों को जमकर सपोर्ट किया। यह घटना भारत की बढ़ती अंतरिक्ष महत्वाकांक्षा के लिए झटका साबित हो सकता है लेकिन इसे देश की युवा आबादी की आकांक्षाओं के प्रतिरूप के रूप में देखा गया।’
वाशिंगटन पोस्ट लिखता है, ‘भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की सफलताओं में से एक बात यह है कि इसकी लागत कम रही है। चंद्रयान-2 पर 14.1 करोड़ डॉलर का ख़र्च आया जो अमेरिका के द्वारा ऐतिहासिक अपोलो मून मिशन पर किये गये ख़र्च का एक छोटा सा हिस्सा है।'
अमेरिकी नेटवर्क सीएनएन ने कहा, ‘चांद पर भारत की ऐतिहासिक लैंडिंग शायद फ़ेल हो गई लगती है। अपने रोवर को चांद पर उतारने की भारत की ऐतिहासिक कोशिश संभवतः नाकाम हो गई है।’ सीएनएन ने आगे कहा, ‘भीड़ ने हर छोटे क़दम का जश्न मनाया और जिस समय विक्रम के चांद पर उतरने की उम्मीद की जा रही थी, सन्नाटा फैल गया।'
बीबीसी ने कहा कि भारत के इस मिशन को दुनिया भर के मीडिया में इसलिए जगह मिली क्योंकि यह बेहद सस्ता या किफायती था। बीबीसी ने लिखा है, ‘उदाहरण के लिए 'एवेंजर: एंडगेम' फ़िल्म का बजट लगभग 35.6 करोड़ डॉलर था जो चंद्रयान-2 के बजट के दोगुने से ज़्यादा था। लेकिन, यह कोई पहला मौक़ा नहीं है जब इसरो को इतनी कम लागत में यह काम करने के लिए तारीफ़ मिली हो। इसरो का 2014 का मंगल मिशन जिसकी लागत 7.4 करोड़ डॉलर थी और यह अमेरिका के मैवेन ऑर्बिटर के बजट का महज 10वां हिस्सा था।’
फ़्रांस के दैनिक अख़बार, ले मोंद ने लिखा है, ‘चांद पर सॉफ़्ट लैंडिंग की सफलता दर केवल 45 फ़ीसदी है। अख़बार ने अपने लेख की शुरुआत ‘ए ब्रोकन ड्रीम’ यानी ‘एक टूटे हुए सपने’ से की है।
अमरिका के पूर्व अंतरिक्ष वैज्ञानिक जैरी एम लिनेंगर ने कहा, भारत कुछ कठिन, बेहद कठिन काम करने की कोशिश कर रहा था। सब कुछ योजना के मुताबिक़ हो रहा था लेकिन दुर्भाग्य से यह असफल हो गया। कुल मिलाकर, मिशन बहुत सफल रहा है। उन्होंने कहा, ऑर्बिट्रर अगले साल से कई ज़रूरी जानकारियाँ देना शुरू कर देगा।’
नासा स्पेसफ़ाइट के प्रबंध निदेशक क्रिस जी ने कहा, ऑर्बिट्रर चंद्रमा की कक्षा में पहुँच चुका है और अपना काम कर रहा है। इसे पूरी तरह से असफल नहीं कहा जा सकता।
चंद्रयान मिशन के फ़ेल होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसरो मुख्यालय पहुँचे थे और उन्होंने वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाते हुए कहा था कि पूरा देश आपके साथ है।
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