पीएमओ ने एक ट्वीट के जरिए सरकारी विभागों को अगले डेढ़ साल में मिशन मोड में काम करते हुए 10 लाख लोगों की भर्ती के लिए प्रधानमंत्री के निर्देश से अवगत कराया है। पकौड़ा बेचने को रोज़गार बता चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 8 साल में दूसरी बार रोज़गार पर मुंह खोला है। सशस्त्र बलों में भी अग्निपथ योजना की घोषणा हुई है। बेरोजगारों को ‘अग्निवीर’ बनाने के अवसर का एलान हुआ है।
पकौड़े वाले रोज़गार की सोच से जैसे देश चौंक गया था उसी तरह अग्निपथ योजना से भी समूचा देश और सैनिक भौंचक हैं।
सवाल यह है कि क्या वास्तव में अग्निपथ रोज़गार देने के लिए है? या फिर पूरी सेना को पेंशन से दूर करने के लिए अग्निवीरों को अग्निपथ पर अग्रसर कर उनसे कुर्बानी ली जा रही है? सवाल उठने लगे हैं कि अग्निपथ योजना से सेना मजबूत होगी या कमजोर?
पेंशनधारी सैनिकों से मुक्ति का अभियान है अग्निपथ?
समझना जरूरी है कि अग्निपथ योजना क्या सेना को पेंशनधारी सैनिकों से मुक्त करने का अभियान है? देश की सशस्त्र सेनाओं में करीब 14 लाख जवान हैं और भारतीय सेना दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सैन्य ताकत है। indianarmy.nic.in के अनुसार हर साल 60 हज़ार जवान रिटायर होते हैं और पेंशनधारी सैनिकों की संख्या में इजाफा करते हैं। यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि सैन्य खर्च का 58 फीसदी हिस्सा पेंशन आदि पर खर्च हो जाता है। सरकार के लिए यह चिंता का सबब है। इसी चिंता से मुक्ति की राह बनाती है अग्निपथ योजना।
अग्निपथ योजना से 12.5 हज़ार जवान सेना में जुड़ते चले जाएंगे जबकि 37.5 हज़ार जवान रिटायर भी किए जाते रहेंगे। इस हिसाब से अगले 24 साल बाद की तस्वीर बताती है कि अग्निपथ योजना से 75 हज़ार जवान नियमित फौज का हिस्सा बनेंगे। इसका मतलब यह है कि अगले 24 साल में 14 लाख 40 हज़ार जवान रिटायर होंगे तो मात्र 75 हजार जवान सैन्य बल का हिस्सा बनेंगे जो पेंशन के हकदार होंगे। इस तरह 24 साल बाद पेंशन के बोझ से लगभग मुक्त बनाती है अग्निपथ योजना।
मगर, सवाल यह है कि महज छह महीने की बेसिक ट्रेनिंग के बाद सिर्फ चार साल तक सेना में रहने वाले जवान क्या वास्तव में हमारे लिए उतने उपयोगी, दक्ष और स्थितियों से निपटने की क्षमता वाले रह जाएंगे जितने कि आज हैं?
अग्निवीरों के लिए चुनौती है ‘अग्निपथ’
अग्निपथ भर्ती योजना अग्निवीरों के लिए अग्निपथ ही है। देश में बेरोजगारी दूर करने या युवाओं को उनके पैरों पर खड़ा करने के मकसद से इस योजना का कोई लेना-देना नहीं लगता। यह आश्चर्यजनक इसलिए भी है क्योंकि सेना में इस किस्म से भर्ती के बारे में कभी किसी ने सोचा न होगा। खासकर भारत जैसे देश में जहां गांव-गांव से जवानों का अरमान देश के लिए सरहद पर लड़ना होता है। सशस्त्र सेनाओं में नियुक्ति के लिए इस अग्निपथ योजना में ऐसा क्या है कि इतनी शंकाएं पैदा हो रही हैं?
अग्निपथ योजना के 37.5 हजार ‘अग्निवीर’ हर साल पूर्व सैनिक बन जाएंगे। तब उनकी उम्र होगी 21.5 साल से लेकर 25 साल। इन बेरोज़गार पूर्व सैनिकों में अग्निवीर के तेवर तो होंगे लेकिन अपना भविष्य फिर से संवारने का लाइफटाइम काम एक बार फिर उनके सामने होगा।
आम बेरोजगारों से ये बेरोज़गार थोड़ा अलग और ‘अग्निवीर’ इसलिए होंगे क्योंकि इनके पास नौकरी छूटने के बाद 11.7 लाख रुपये होंगे। लेकिन, कैसे और ये रुपये कहां से आएंगे- इसे भी समझते हैं।
सेवानिधि भी ‘अग्निवीर’ ही करेंगे तैयार
जब अग्निपथ योजना के तहत ये नौकरी शुरू कर रहे होंगे तब इनकी सैलरी 30 हजार रुपये प्रतिमाह होगी। लेकिन, उनके हाथ में 9 हज़ार रुपये काटकर 21 हज़ार ही दिए जाएंगे। सरकार की ओर से इस रकम में 9 हज़ार जोड़कर उसे सेवा निधि कोष में जमा किया जाता रहेगा। हर साल सैलरी में बढ़ोतरी और उस मुताबिक इस रकम में थोड़ा परिवर्तन भी प्रस्तावित है। मगर, चार साल बाद 5.02 लाख रुपये अग्निवीरों के और इतनी ही रकम सरकार की ओर से मिलाकर कुल 10.04 लाख में ब्याज की रकम जोड़ते हुए 11.7 लाख रुपये अग्निवीरों के हाथों में आएंगे। यही रकम इन ‘अग्निवीरों’ को देश के बाकी बेरोजगारों से अलग साबित करेगी। इसके अलावा वे पूर्व सैनिक होंगे, प्रशिक्षित होंगे।
अग्निवीर अगर सेवावधि के चार सालों में दुर्भाग्यवश दिवंगत हो जाते हैं तो सेवानिधि के 11.7 लाख रुपये के अलावा 1 करोड़ रुपये आश्रित को दिए जाएंगे। घटना के वक्त जितने समय की नौकरी बची होगी, उसकी तनख्वाह भी दी जाएगी। अपंग होने की स्थिति में अधिकतम 44 लाख रुपये तक अलग-अलग स्थितियों के अनुसार दिए जा सकते हैं। सेवानिधि और बची हुई नौकरी की पूरी सैलरी भी मिलेगी।
अग्निवीरों को स्किल सर्टिफिकेट दिए जाएंगे, बैंक से लोन भी मिलेंगे ताकि वे अपना जीवन दोबारा शुरू कर सकें।
पूर्व सैनिकों को कैसे मिलेगा रोजगार?
इंडियन आर्मी की साइट पर यह चिंता भी पढ़ने को मिलती है कि जो सेना के जवान इन दिनों 36.5 से लेकर 43.5 साल की उम्र में रिटायर होते हैं उनके लिए यह वक्त अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने का होता है। मां-बाप की जिम्मेदारी के साथ-साथ अपने बच्चों को उचित करियर बनाने में योगदान करने का होता है। ऐसे में जब उन्हें सेना से बाहर दूसरी नौकरी नहीं मिलती है तो वे परेशान रहते हैं। ऐसे पूर्व सैनिकों की मदद के लिए सेना ने कई तरह की स्किल योजना भी चलायी है ताकि वेटरन्स को सेना से बाहर दूसरी नौकरी के लिए संघर्ष नहीं करना पड़े। मगर, ये कोशिशें अब तक सफल नहीं हो सकी हैं।
नियमित रूप से हर साल रिटायर होने वाले 60 हज़ार वेटरन्स के साथ-साथ अब हर साल अग्निपथ योजना से भी 37.5 हज़ार जवान रिटायर हुआ करेंगे। दोनों को जोड़ें तो कम से कम अगले 24 साल तक (ऊपर चर्चा की गयी है) 97.5 हजार पूर्व सैनिक दूसरी नौकरी तलाश रहे होंगे।
जब हमारे प्रधानमंत्री अगले डेढ़ साल में समूचे देश में 10 लाख भर्ती का निर्देश ही दे पा रहे हैं तो लगभग एक लाख इन पूर्व सैनिकों का समावेश कहां और कैसे होगा- यह बड़ा सवाल है।
प्रशिक्षित पूर्व सैनिक क्या ख़तरा नहीं बनेंगे?
बढ़ती महंगाई के बीच नौकरी छूटने का संकट पूर्व सैनिक कैसे झेल सकेंगे? मामूली जमा पूंजी कितने दिन उनका साथ देगी? खासकर जो अग्निपथ योजना के 21.5 से 25 साल तक के युवा ‘अग्निवीर’ होंगे वे इस स्थिति का सामना कैसे करेंगे? क्या हथियारों का प्रशिक्षण लिए हुए ये बेरोज़गार नौजवान देश के लिए ही खतरा नहीं बन जाएंगे?
पेंशन से दूर होते हुए जो सेना के जवान नियमित नौकरी में भी होंगे क्या वे भी सेवानिवृत्ति के बाद के भयावह माहौल से डरे हुए नहीं रहेंगे? आखिर उन्हें अपने भविष्य की चिंता क्यों नहीं सताएगी?
पिछली पीढ़ी को जो कुछ समाज ने दिया है उससे वर्तमान पीढ़ी को क्यों वंचित किया जा रहा है- यह सवाल क्या वे खुद से और सरकार से नहीं पूछेंगे। ऐसा पूछते हुए जब सैनिकों को जवाब नहीं मिलेगा तो क्या हमारे देश की सेना मजबूत रह जाएगी?
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