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अडानी समूह ने कोलंबो पोर्ट प्रोजेक्ट के लिए अमेरिकी फंडिंग से क्यों हाथ खींचा

अडानी समूह ने मंगलवार को कहा कि वह श्रीलंकाई पोर्ट प्रोजेक्ट की फंडिंग अपने संसाधनों के दम पर करेगा और अब अमेरिकी फंडिंग नहीं लेगा। यह जानकारी मंगलवार देर रात अडानी पोर्ट्स और एसईजेड लिमिटेड ने दी। उसने कहा कि प्रोजेक्ट "अगले साल की शुरुआत में काम करने लगेगा।" उसने कहा कि कंपनी अपना पूंजी प्रबंधन "आंतरिक संसाधनों" के जरिये करेगी। लेकिन अडानी समूह ने यह कदम अचानक नहीं उठाया है। बहुत सोचसमझकर उठाया है। जिस पर इसी रिपोर्ट में आगे बात की जाएगी।

यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्प ने पिछले साल नवंबर में, कोलंबो पोर्ट पर कोलंबो वेस्ट इंटरनेशनल टर्मिनल (सीडब्ल्यूआईटी) नामक गहरे पानी के कंटेनर टर्मिनल बनाने और ऑपरेशन के लिए 553 मिलियन अमेरिकी डॉलर का लोन देने पर सहमति जताई थी।

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कोलंबो पोर्ट के इस प्रोजेक्ट को अडानी पोर्ट्स, श्रीलंकाई समूह जॉन कील्स होल्डिंग्स पीएलसी और श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी (एसएलपीए) से संबद्ध सीडब्ल्यूआईटी विकसित कर रहा है। अडानी समूह की कंपनी को डीएफसी का लोन इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अमेरिकी सरकार के व्यापक प्रयासों का हिस्सा था। चूंकि अडानी समूह की क्षमता अन्य स्थानों पर पोर्ट विकसित करने में देखी गई, इसलिए डीएफसी ने लोन देने की सहमति में देरी नहीं लगाई।

हालाँकि, डीएफसी ने अडानी और एसएलपीए के बीच समझौते को उसकी शर्तों के हिसाब से बदलने को कहा और लोन प्रक्रिया रुक गई। फिर श्रीलंका के अटॉर्नी जनरल ने इसकी समीक्षा की। परियोजना पूरी होने के करीब है और अडानी पोर्ट्स के पास इस प्रोजेक्ट का 51 फीसदी हिस्सा है। अब उसने बिना यूएस की डीएफसी फंडिंग के बिना प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने का फैसला किया है।
लेकिन यह सब तो कंपनी का कहना है कि वो अपने दम पर अब इस प्रोजेक्ट में पैसा लगाएगी। लेकिन असल वजह कुछ और भी है। अडानी समूह ने यह जानकारी देते हुए उसका जिक्र नहीं किया है।

यूएस एजेंसी डीएफसी ने अडानी समूह पर रिश्वतखोरी के आरोप लगने के बाद तय किया कि वो भी जांच करेगी कि कहीं किसी स्तर पर पैसा यानी रिश्वत तो नहीं दी गई। अमेरिकी एजेंसी ने हाल ही में कहा था कि वह अडानी समूह के अधिकारियों पर लगे रिश्वतखोरी के आरोपों का "आकलन" कर रही है। उसने स्पष्ट किया कि उसने अभी तक समूह को कोई पैसा नहीं दिया है। इससे पता चलता है कि अडानी समूह पर भारतीय अधिकारियों को 2000 करोड़ से ज्यादा की रिश्वत देने का क्या क्या नतीजा सामने आ रहा है।


पिछले महीने, अमेरिकी न्याय विभाग ने अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी, भतीजे सागर अडानी और 6 अन्य पर सोलर पावर कॉन्ट्रैक्ट  हासिल करने के लिए भारतीय अधिकारियों को 265 मिलियन अमेरिकी डॉलर की रिश्वत देने की साजिश रचने का आरोप लगाया था, जिससे बीस वर्षों में 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का मुनाफा होने की उम्मीद थी। अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने सागर अडानी का मोबाइल जब्त कर लिया था और उसकी चैट को डिकोड करने के बाद इस मामले का पर्दाफाश हुआ। अमेरिकी कोर्ट में गौतम अडानी, सागर अडानी और अन्य के खिलाफ महाभियोग पेश किया गया है जो चार्जशीट की तरह है। भारत की मोदी सरकार इसे प्राइवेट मामला बताकर चुप्पी साधे हुए है। अडानी समूह ने यूएस कोर्ट में लगे आरोपों से पूरी तरह इंकार किया है। लेकिन एफबीआई द्वारा जब्त किए गए मोबाइल पर वो भी चुप है।

कोलंबो पोर्ट भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़ा और व्यस्ततम ट्रांसशिपमेंट पोर्ट है। यह 2021 से 90 प्रतिशत से अधिक क्षमता पर इस्तेमाल किया जा रहा है, जो अब इसकी क्षमता बढ़ाने की जरूरत बताता है। श्रीलंका में जियो पॉलिटिक्स के नजरिये से संवेदनशील कोलंबो पोर्ट प्रोजेक्ट चीनी प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अमेरिका द्वारा उठाया गया एक कदम है।

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इस प्रोजेक्ट का पहला चरण 2025 की शुरुआत में व्यावसायिक रूप से चालू होने वाला है। नया टर्मिनल प्रमुख शिपिंग मार्गों पर श्रीलंका की प्रमुख स्थिति और तमाम मार्केट से इसकी निकटता का लाभ उठाते हुए, बंगाल की खाड़ी को इससे जोड़ेगा। कोलंबो वेस्ट इंटरनेशनल टर्मिनल (सीडब्ल्यूआईटी) परियोजना सितंबर 2021 में शुरू की गई थी, जब अडानी पोर्ट्स ने श्रीलंका पोर्ट्स अथॉरिटी और श्रीलंकाई समूह जॉन कील्स होल्डिंग्स के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। 

(इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)
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क़मर वहीद नक़वी
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