जनकवि वरवर राव को भीमा कोरेगाँव मामले में ज़मानत मिल गई है। बंबई हाई कोर्ट ने सोमवार को 81 साल के इस विद्रोही कवि को स्वास्थ्य आधार पर छह महीने की ज़मानत दे दी। अदालत के आदेश पर उन्हें जेल से निकाल कर नानावती अस्पताल में दाखिल कराया गया था।
इसके पहले मशहूर वकील इंदिरा जयसिंह ने वरवर राव की पैरवी करते हुए बंबई हाइकोर्ट में उनके स्वास्थ्य की विस्तृत जानकारी दी थी और अंतरिम ज़मानत का अनुरोध किया था। उन्होंने अदालत से कहा था कि राव फरवरी, 2020 से अभी तक कुल 365 दिनों में से 149 दिन अस्पताल में रहे हैं।
क्या है मामला?
वरवर राव पर 1 जनवरी, 2020 को महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के भीमा कोरेगाँव में हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया था। ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा सेना के बीच हुए युद्ध और उसमें मराठों की हार की 200वीं वर्षगांठ पर जश्न के बाद हिंसा भड़की थी। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे।
मामले की जाँच कर रही नेशनल इनवेस्टीगेशन एजेंसी ने आरोप लगाया था कि राव भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी और उसकी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिये षडयंत्रकारियों से संपर्क में रहे हैं। इस मामले में वरवर राव के अलावा सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेन्द्र गैडलिंग, अरुण फरेरा, वर्नन गोंसालवेस, हनी बाबू, शोमा सेन, महेश राउत, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े को भी गिरफ़्तार किया गया था। राव पर आरोप है कि वे इन सबसे संपर्क में रहे हैं।
वरवर राव पर प्रतिबंधित माओवादी संगठनों के नेताओं के संपर्क में रहने, उन्हें सूचनाएँ और धन-राशि पहुँचाने, युवाओं को माओवादी संगठन में शामिल होने के लिए उन्हें उकसाने के आरोप हैं।
क्या हैं आरोप?
जाँच एजेंसियों का कहना है कि साल 2018 में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की जाँच के दौरान वरवर राव के खिलाफ पुख्ता सबूत मिले और इसी वजह से उन्हें गिरफ्तार किया गया है।
इसी जाँच के दौरान पुलिस को माओवादियों की एक चिट्ठी मिली, जिससे प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश का खुलासा हुआ। इसी चिट्ठी में वरवर राव का भी ज़िक्र है। राव यह सफाई दे रहे हैं कि इस मामले से उनका कोई लेना-देना नहीं है।
बड़ी बात यह है कि राव पर ग़ैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के सख्त प्रावधानों के तहत मामले दर्ज हैं। केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने जैसे गंभीर आरोप हैं।
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नक्सलियों से नाता?
वरवर राव शुरू से ही नक्सलियों और माओवादियों का समर्थक होने की वजह से विवादों में रहे हैं। उन्होंने ‘विरसम’ के नाम से मशहूर ‘विपलवा रचयतलु संघम’ यानी क्रांतिकारी रचनाकार संघ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस संघ से कई वामपंथी कवि, आलोचक, लेखक जुड़े। इस संघ के कर्ता-धर्ताओं पर नक्सलियों का समर्थन करने और नक्सली विचारधारा को आगे बढ़ाने का आरोप लगा।
वरवर राव खुद एक कवि हैं। मार्क्सवादी आलोचक के रूप में उनकी खास पहचान है। वे प्राध्यापक भी रहे हैं। कई सालों तक उन्होंने कॉलेजों में साहित्य पढ़ाया है। सवर्ण जाति से होने के बावजूद वरवर राव को दलितों, आदिवासियों और पिछड़ी जाति के लोगों के पक्ष में आवाज़ उठाने वाले नेता के रूप में काफी शोहरत मिली।
नक्सल-आंदोलन समर्थक की छवि
मानवाधिकार संरक्षण के लिए उन्होंने कई आंदोलन किए। लेकिन शुरू से ही उनकी छवि नक्सल-आंदोलन समर्थक के तौर पर रही है। तथा-कथित पुलिस-नक्सली मुठभेड़ों, न्यायिक हिरासत में नक्सलियों की मौत के खिलाफ भी वरवर राव हमेशा मुखर रहे हैं। अलग-अलग आंदोलनों में हिस्सा लेने के लिए वरवर राव कई बार गिरफ्तार किए जा चुके हैं।
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