क्या गाँवों में शौचालय बना देना ही काफ़ी है? क्या इसका इस्तेमाल करना भी मायने रखता है या नहीं? क्या सिर्फ़ शौचालय बना कर गाँवों को खुले में शौच मुक्त यानी ओडीएफ़ घोषित किया जा रहा है? कम से कम सर्वे की रिपोर्ट को पढ़ने पर तो ऐसा ही लगता है। हाल ही में एक सर्वे रिपोर्ट आई है कि उत्तर भारत के गाँवों में जिनके घर शौचलय बन भी गए हैं उनमें से 23 फ़ीसदी लोग खुले में ही शौच करते हैं। यानी जिनके घर शौचालय नहीं बने हैं उनकी तो बात ही दूर है। ऐसे घरों को लोग ज़ाहिर तौर पर खुले में ही शौच करते हैं और उन घरों की महिलाओं को रात के अंधेरे का इंतज़ार करना पड़ता होगा। ऐसे में गाँवों, पंचायतों, ज़िलों और राज्यों को खुले में शौच मुक्त यानी ओडीएफ़ कैसे घोषित किए जा रहे हैं?