लोकसभा चुनावों से ठीक पहले हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन करके हार से बचने के प्रयासों में भाजपा को बड़ी निराशा ही हाथ लगी। प्रदेश के क्षेत्रीय दल अपना आधार पूरी तरह से अपनी नीतियों और राजनीतिक सौदबाजी के कारण खो चुके हैं। अब विपक्ष से बड़ी चुनौती प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भाजपा के सामने है। 10 साल से विपक्ष में बैठी कांग्रेस के लिए एक मौका अबकी बार बड़ी सफलता प्राप्त करने का है क्योंकि मतदाताओं में भाजपा के प्रति असंतोष और आक्रोश बड़े पैमाने पर पूरे प्रदेश में है। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान वर्ग द्वारा भाजपा के प्रतिनिधियों के विरोध को साफ तौर पर लोकसभा चुनावों में प्रचार के दौरान देखने को मिला चुका है।
हरियाणा में विधानसभा चुनाव 2019 में 21 अक्टूबर को हुए थे और नतीजे 24 अक्टूबर को घोषित किये गए थे। चुनावों की अधिसूचना 27 सितंबर को लागू हुई थी। 2019 में पुलवामा की लहर के बावजूद भाजपा पूर्ण बहुमत हासिल करने में असफल रही थी। कुल मतदान 68.20% रहा था जिसमें भाजपा को 36.49 % मतों के साथ 40 सीट मिली थी। कांग्रेस को 28.08% के साथ 31 सीट, क्षेत्रीय पार्टी ईनेलो से टूट कर नयी बनी जन नायक जनता पार्टी को 14.80% मत के साथ 10 सीट, बहुजन समाज पार्टी को 4.21% कोई सीट नहीं और कभी प्रदेश की सत्ता में रही ईनेलो को केवल 2.44 % ही मत प्राप्त हुए थे जिसके चलते केवल एक सीट पर सीमित हो गई थी।
हरियाणा के राजनीतिक धरातल को जिलावार समझा जाए तो अम्बाला डिविजन में पंचकूला में 2 सीट, अम्बाला 4, यमुनानगर 4, कुरुक्षेत्र 4 सीटें आती हैं। करनाल डिविजन में करनाल जिला की 5, कैथल 4, पानीपत 4 सीटें आती हैं। रोहतक डिविज़न में सोनीपत 6, रोहतक 4, झज्जर 4, चरखी दादरी 2 और भिवानी 4 सीटें आती हैं। हिसार डिवीजन में जींद की 5, फतेहाबाद की 3, सिरसा 5 और हिसार की 7 सीटें आती हैं। गुरुग्राम डिवीजन में महेन्दरगढ़ 4, रेवाड़ी 3, गुरुग्राम की 4 सीटें आती हैं। फरीदाबाद डिवीजन में नूंह की 3 पलवल की 3, फरीदाबाद की 6 सीटें आती हैं। विधान सभा की 90 सीटों में लगभग आधी सीटें शहरी क्षेत्र की श्रेणी में आती हैं। भाजपा इन शहरी सीटों को पूरी तरह अपने पक्ष में करने की रणनीति साधने में लगी है।
2019 में भाजपा को फरीदबाद डिवीजन की 12 में से 7, कांग्रेस को 4, निर्दलीय को 1 सीट पर जीत प्राप्त हुयी थी। भाजपा को फरीदाबाद की 6 में से 4 तथा पलवल की 3 में से 3 सीटों में जीत मिली थी। नूंह की 3 में से 3 सीटें कांग्रेस ने जीती थी। कांग्रेस को फरीदाबाद में 1, निर्दलीय को 1 मिली थी। गुरुग्राम डिवीजन की 11 में से भाजपा को 8, कांग्रेस को 2, निर्दलीय को 1 सीट मिली थी। भाजपा को रेवाड़ी की 3 में से 2, गुरुग्राम की 4 में 3 सीट मिली थी। करनाल डिवीजन की 13 सीट में से भाजपा को 7, कांग्रेस को 3, जजपा 1 और निर्दलीय को 2 सीटें मिली थीं। करनाल की 5 में से 3, पानीपत की 4 में से 2, कैथल की 4 में से 2 सीट भाजपा को मिली थी। कांग्रेस को करनाल में 1 और पानीपत में 2 सीट ही मिली थी जबकि कैथल में कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली थी।
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कांग्रेस द्वारा नियुक्त किये गए प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया, जो गुजरात से आते हैं, कांग्रेस को प्रदेश में एकजुट करने में कमजोर ही रहे हैं अब तक। मुख्यतया दो समानांतर धाराएँ कांग्रेस में अपनी लोकप्रियता और वर्चस्व को लेकर प्रतिस्पर्धा में हैं। एक गुट पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंदर हुडा को अपना नेता मानता है और उनमें विश्वास रखता है जबकि दूसरी ओर कुमारी शैलजा के साथ रणदीप सिंह सुरजेवाला, किरण चौधरी (जो अब भाजपा में चली गयीं) और अब भाजपा से वापस आये चौधरी वीरेंदर सिंह मुख्य रूप से दिखाई देते हैं। अहीरवाल के पुराने नेता अजय यादव भी हुडा विरोधी माने जाते हैं। भूपेंदर हुडा से मतभेद के चलते अहीरवाल के अन्य बड़े नेता राव इंदरजीत 2014 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में चले गए थे।
क्षेत्रीय पार्टी ईनेलो, जो अभी एक बड़ी विपक्षी राजनीतिक ताक़त प्रदेश में रही, अपनी पारिवारिक क़लह के कारण समर्थकों, मतदाताओं में अपना आधार लगभग खो चुकी है। राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और वर्चस्व की लड़ाई में दो फाड़ हो कर अपनी राजनीतिक संभावनाओं को प्रदेश में ढूंढ पाने में भी असफल है।
राजनीतिक गलियारों में गतिविधियाँ जोरों पर हैं। कई तरह के अनुमान सियासी सतह पर उभरने लगे हैं। इसमें जजपा के भाजपा में विलय के भी कयास लगाए जा रहे हैं। ऐसी चर्चाएं हैं कि दुष्यंत चौटाला अपनी पार्टी का विलय भाजपा में करने की डील की बातचीत मनोहर लाल खट्टर से बनाये हुए हैं। हालाँकि, भाजपा ऐसे समय में ये जोखिम लेने के लिए तैयार नहीं होगी क्योंकि जजपा के आधार वाले क्षेत्र में जजपा के अधिकतर विधायक जजपा नेतृत्व का खुला विरोध सार्वजनिक मंचों पर कर चुके हैं।
भाजपा प्रदेश में तीसरी बार अपनी सरकार बनाने के लिए जोड़तोड़ करने में मशगूल है। कांग्रेस के हुडा गुट से असंतुष्ट कई नेता पार्टी छोड़ भाजपा की ओर बढ़ गए हैं। भाजपा कोई भी मौक़ा अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिए गँवाना नहीं चाहती। अलग-अलग क्षेत्रों में असंतुष्ट तहसील स्तरीय नेताओं को चिन्हित कर अपनी पार्टी में शामिल करने से कोई गुरेज भाजपा को है नहीं। चुनावों की हलचल में अब दल बदलने के नए-नए अवतार देखने को मिलने वाले हैं। प्रदेश को साधने के लिए मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की छत्रछाया में काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं। चुनावों की घोषणा होने तक कौन किस दिशा को अपनाता है, यह अगले तीन महीने हरियाणा में माहौल को गर्म ही रखेगा।
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