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हरियाणा: स्कूलों में फर्जी दाखिले का दोषी कौन? जानें पूरा मामला

हरियाणा के शिक्षा विभाग के प्राथमिक शिक्षा में 2014 से 2016  के बीच सरकारी स्कूलों में हुई 4 लाख विद्यार्थियों के फ़र्ज़ी दाखिले के भ्रष्टाचार के मामले में एक एफआईआर दर्ज की गई है। सीबीआई चंडीगढ़ की भ्रष्टाचार निरोधी शाखा ने शुक्रवार को एक प्राथमिकी भारतीय कानून की धारा 120 बी 167 218 418 477 ए के तहत दर्ज की है। सर्वोच्च न्यायालय में सीबीआई ने प्रार्थना की थी कि जाँच को फिर से राज्य सतर्कता ब्यूरो को सौंप दिया जाये क्योंकि सीबीआई के पास जांच पूरी करने के लिए पर्याप्त संख्या में अधिकारी व संसाधन नहीं हैं जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने ख़ारिज कर दिया था। इसके बाद सीबीआई ने यह प्राथमिकी दर्ज की है।

मामला हरियाणा के सरकारी स्कूलों में दर्ज 22 लाख दाखिले में से 4 लाख फ़र्ज़ी दाखिले पूरे प्रदेश के अलग-अलग सरकारी स्कूलों से संबंधित है। मामले के आरम्भिक जाँच में पाया गया कि छात्रवृत्ति, वर्दी मिड दे मील के लिए मिले सरकारी फंड को गबन करने के लिए स्कूलों में फर्जी दाखिले किये गए। कई जिलों में अलग-अलग स्कूलों में  पंजीकृत छात्रों से वास्तविक छात्रों की संख्या कम पायी गई थी। सतर्कता ब्यूरो ने राज्य के 12924 स्कूलों की जाँच की थी। इसमें रोहतक रेंज के स्कूलों को छोड़ कर बाकी जिलों में इस प्रकार की गड़बड़ियाँ पायी गई थीं। 

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इसका खुलासा तब हुआ जब शिक्षा विभाग में नियुक्त गेस्ट टीचर को हटाने का आदेश सरकार ने पारित किया जिसके विरोध में गेस्ट टीचर ने जून 2015 में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। मामला सिंगल बेंच में ख़ारिज हो गया तो गेस्ट टीचर ने डबल बेंच में याचिका लगाई तो उच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस दिया। इसके जवाब में सरकार ने बताया कि स्कूलों में बच्चों की संख्या घट गयी है, इसलिए गेस्ट टीचर्स की ज़रूरत नहीं होगी। उच्च न्यायालय ने जब रिकॉर्ड तलब किया तो पाया गया के 22 लाख बच्चों में से 4 लाख दाखिले फर्जी हैं। उसके बाद सवाल उठे कि इनके लिए दिए गए सरकारी फंड के उपयोग में गड़बड़ी होने की आंशका है।

सरकारी धन की अनियमितताओं की कई जिलों से शिकायत मिलने के बाद विभागीय जाँच से न्यायालय संतुष्ट नहीं हुआ। एक आदेश के तहत राज्य सतर्कता ब्यूरो को जाँच सौंपी गयी थी। काफी समय गुजर जाने के बाद भी जाँच में कोई प्रगति न होने के चलते मामला पंजाब  और हरियाणा उच्च न्यायालय में गया था वहाँ से उच्च न्यायालय ने 2 नवंबर 2019 को जाँच स बीआई को सौंपने के आदेश दिए थे।  न्यायालय ने निर्देश दिए थे कि जांच को जल्द पूरा करके रिपोर्ट न्यायालय में सौंपी जाए तथा भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों व कर्मचारियों को चिन्हित करके उचित कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।  

हरियाणा सरकार की शिक्षा योजनाओं के तहत प्राथमिक शिक्षा के विस्तार के लिए कई मदों में जिला प्राथमिक शिक्षा अधिकारियों के माध्यम से सरकारी स्कूलों में धन उपलब्ध करवाया जाता है। ये योजनाएँ गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के बच्चे, आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के विद्यार्थियों, पिछड़ी जातियों के छात्रों के लिए प्रोत्साहन राशि के रूप में होता है। बताया जा रहा है कि विभन्न स्कूलों में जब जाँच की गयी तो विद्यार्थियों की वास्तविक संख्या 18 लाख, जो कि पंजीकृत संख्या 22 लाख से कम पायी गई। 
पाया गया कि स्कूल प्रशासन ने गैर उपस्थित बच्चों के नाम की सरकारी प्रोत्साहन राशि, छात्रवृत्ति, वर्दी व मिड डे मील के खर्च में हेराफेरी करके सरकारी धन का गबन किया है।
शुरुआत में राज्य सतर्कता ब्यूरो ने अपनी जाँच के आधार पर 7 अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज की थी। लेकिन जांच में कोई संतोषजनक प्रगति न होने के कारण उच्च न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए राज्य सतर्कता ब्यूरो को जाँच के सारे कागजात सीबीआई को सौंपने के आदेश दिए थे। अब सीबीआई को आखिर एफ़आईआर दर्ज करनी पड़ी। अभी तक की जांच में यह नहीं सार्वजनिक हुआ कि कितने का घोटाला हुआ है।
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राज्य में भाजपा सरकार की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में आने से बच नहीं सकती कि आखिर पूरे मामले में इतनी देर क्यों की गयी। किसके इशारे पर जाँच में जान-बूझ कर देरी की गई। इस मामले में पूर्व के शिक्षा मंत्री ने क्यों ढील बरती। भ्रष्टाचार पर भाजपा सरकार के ‘जीरो टॉलरेंस’ के दावे की परतें इस मामले से साफ़ तौर पर खुलती हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारी अभी इस मामले पर कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं। पूरे मामले में शिक्षा विभाग शक के घेरे में है। अभी तक किसी को नामजद नहीं किया गया है। आगे की जाँच में ही खुलासा हो पायेगा कि किन-किन जिलों में कौन अधिकारी इस घोटाले में लिप्त हैं।

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जगदीप सिंधु
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