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चंद्रशेखर से गठबंधन कर क्या कमाल कर लेगी दुष्यंत चौटाला की जजपा?

भीम आर्मी से अपने राजनीतिक रूप में आई आज़ाद समाज पार्टी हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की जन नायक जनता पार्टी से हाथ मिला चुनाव पूर्व गठबंधन किया है। भीम आर्मी के बैनर तले दलित समाज के मुद्दों पर काम करने वाले चंद्रशेखर की महत्वाकांक्षा लोकसभा सांसद बनने के बाद से और बलवती हो गई हैं। हरियाणा में चन्द्रशेखर ने एक दो चुनिंदा मुद्दों पर प्रदर्शन करने की कोशिश पहले की लेकिन भीम आर्मी का कोई अस्तित्व अब से पहले कभी बन ही नहीं पाया। बहुजन समाज पार्टी के कुछ असंतुष्ट कार्यकर्ता ही तत्कालिक तौर पर जुड़े थे लेकिन बाद में वो भी वापस बसपा के पक्ष में जा मिले।

भाजपा के विरोध से अस्तित्व में आई जन नायक जनता पार्टी को जो समर्थन 14.9 % वोट हरियाणा के 2019 विधान सभा चुनावों में मिला था उसका दुष्यंत चौटाला ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए भाजपा के साथ ही सौदा कर लिया था। इस वजह से हरियाणा में भाजपा की ही सरकार बनवाने में अहम् भूमिका निभाते हुए उपमुख्यमंत्री का पद पाया। साढ़े चार साल की सता के बाद लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने जैसे ही जजपा से किनारा किया, जजपा लड़खड़ा कर औंधे मुंह जमीन पर आ पड़ी। जजपा के अधिकतर विधायकों ने भी पार्टी नेतृत्व पर आक्षेप लगते हुए पार्टी से किनारा कर लिया। हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में जजपा को मिले 0.87% वोट से समझा जा सकता है। 

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जन नायक जनता पार्टी के अधिकतर विधायक पार्टी के नेतृत्व की कार्यशैली पर आक्षेप लगा किनारा कर चुके हैं। अधिकतर जिला के अध्यक्ष व अन्य प्रदेश पदाधिकारी भी पार्टी छोड़ कर दूसरे राजनीतिक दलों का रुख कर चुके हैं। जन नायक जनता पार्टी का सांगठनिक ढांचा लगभग हर जिले में धराशाई हो चुका है। प्रदेश के मतदाता से किया गया ‘धोखा’ और किसान के हितों का दम भरने वाली जन नायक जनता पार्टी की भूमिका पूरे किसान आंदोलन के दौरान सवालों में रही है। आरोप लगते हैं कि उपमुख़्यमंत्री रहते हुए दुष्यंत चौटाला ने कभी दलित वर्ग के लिए कोई नीति का निर्माण नहीं किया या सरकार से उनके हितों के लिए कोई बड़ा काम करवा नहीं पाए। अब हरियाणा में अपनी राजनीतिक जमीन को तलाशने के लिए किसी सहारे की खोज एक गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के द्वार तक आ गयी।

हरियाणा में दलित समाज लगभग 18.6 % है। दलित समाज के वोट का एक बड़ा हिस्सा 2005 से पहले कांग्रेस के पक्ष में जाता रहा है। लेकिन 2005 से 2014 तक कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेंद्र के कार्यकाल में दलित समाज अपनी उपेक्षा के चलते कांग्रेस से छिटक कर और अपनी हिंदुत्व की पहचान को पाने के भरोसे भाजपा के पक्ष में खड़ा हो गया जिसके चलते भाजपा को एक बड़ा लाभ सता हासिल करने में मिला। अब दस साल के भाजपा के कार्यकाल में कई नीतियों और निर्णयों ने दलित समाज के भ्रम को तोड़ दिया। संविधान द्वारा प्रदान अधिकार और आरक्षण के छिन जाने की आशंका के चलते दलित समाज एक बार फिर से कांग्रेस की नीतियों की ओर लौटने लगा है। 

दलित वर्ग ने हरियाणा में बहुजन समाज पार्टी की राजनीति को कभी कोई बड़ा समर्थन नहीं दिया। अधिकतर दलित वर्ग कांग्रेस में ही विश्वास रखता रहा है। अपने अस्तित्व के बाद से हरियाणा के चुनावों में मायावती के लगातार प्रयास रहे और कई बार गठबंधन भी अन्य दलों  के साथ हुए लेकिन कोई सफलता मायावती को नहीं मिली। विधानसभा चुनावों में बहुजन समाज पार्टी को 2 से 5.6% तक अधिकतम मत प्राप्त हुए हैं। बहुजन समाज पार्टी की उपस्थिति हरियाणा के उत्तरी जिले यमुनानगर अम्बाला, जो उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से सटा हुआ है, में है या कुछ रोहतक जिले में है। 
अधिकतर दलित समाज वर्तमान में हरियाणा की कांग्रेस नेता कुमारी शैलजा को ही अपने वर्ग की बड़ी नेता मानता है।
आज़ाद समाज पार्टी ने इससे पहले राजस्थान के विधान सभा चुनावों में भी हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी से गठबंधन किया था जिसे बाद में हनुमान बेनीवाल ने यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि इस गठबंधन को करना एक गलती थी। क्योंकि गठबंधन के बावजूद अबकी बार आरएलपी की सीटें कम हो गयीं। 
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2018 तक स्वयं को सामाजिक कर्यकर्ता कहने वाले चंद्रशेखर रावण राजनीति के लिए खुद को मिसफिट बताते रहे। किसी भी राजनीतिक दल में जाने को लेकर इंकार करते रहे। मायावती की बहुजन समाज पार्टी के समानांतर कांशीराम के आदर्शों को आधार बना कर सक्रिय चुनावी राजनीति में अब एक अलग लकीर बनाने की जुगत में हैं।    

चुनावों से पहले जन नायक जनता पार्टी के साथ इस गठबंधन से आज़ाद समाज पार्टी को कोई लाभ हरियाणा में नहीं मिल पायेगा, ऐसा माना जा रहा है। वर्तमान में हरियणा में 90 सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी भी पूरे हो जाएं, यही इस गठबंधन की उपलब्धि मानी जा सकती है।

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जगदीप सिंधु
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