लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद हरियाणा में भाजपा के लगभग दस साल के शासनकाल के प्रति आमजन के साथ-साथ भाजपा के कार्यकर्ताओं में भी एक निराशा, हताशा और नाराजगी स्पष्ट दिखाई देने लगी थी। अलग-अलग सामाजिक वर्ग अपनी अपेक्षाओं के पूरा न हो पाने से भाजपा की नीतियों के प्रति अपना विश्वास खो रहे थे और सरकार की आलोचना करने में भी मुखर होने लगे थे। विधानसभा चुनावों में भाजपा के पास अपनी उपलब्धियां बताने के लिए कुछ विशेष थी नहीं। प्रदेश के मुद्दे भाजपा के सामने मुंह बाये खड़े थे। किसानों से लेकर कर्मचारी तक, बेरोजगार युवाओं से लेकर महिला, गृहणियों तक, हर वर्ग सरकार की कार्यप्रणाली से क्षुब्ध था।
क्या दीपेंद्र के 'हरियाणा मांगे हिसाब' ने भी कांग्रेस की लुटिया डुबोई?
- हरियाणा
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- 18 Oct, 2024

दीपेंद्र हुड्डा के अभियान 'हरियाणा मांगे हिसाब' ने क्या बीजेपी को काफ़ी ज़्यादा फायदा पहुँचाया? लोकसभा चुनाव के बाद पिछड़ चुकी भाजपा के लिए क्या यह 'संजीवनी' साबित हुआ?
भाजपा ने लोकसभा चुनावों में अपना रणनीतिक दांव अन्य 'पिछड़ा वर्ग' का चल दिय था जिसका लाभ भाजपा को अपने गढ़ में दक्षिण हरियाणा व जी टी रोड बेल्ट में मिला। भाजपा विधानसभा चुनावों में जीत के लिए अबकी बार फिर भी आश्वस्त नहीं थी। प्रदेश में विभिन्न गुटों को साधने की चुनौतियाँ अलग से भाजपा की चिंता बढ़ाये हुए थी। कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने के लिए पंचकूला में की गयी बैठक में कार्यकर्ताओं की कम संख्या और उठते हुए सवालों ने भाजपा को गहरी परेशानी में धकेल दिया था। गृहमंत्री अमित शाह ने कार्यकर्ताओं को साफ़ कर दिया था कि टिकट न मिलने पर वो पार्टी से नाराज ना हों बल्कि पूरी ऊर्जा से चुनावों में जुट जाएँ। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की कार्यशैली के कारण उपजी नाराजगी को दूर करने में भाजपा जुटी हुई थी। नये मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी अपने कार्यों से प्रदेश में कोई प्रभाव बनाने की जद्दोजहद में उलझे हुए थे।