दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि दिल्ली में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी से 97 करोड़ रुपए वसूल किए जाएं। वसूली का यह निर्देश राजनीतिक विज्ञापनों को सरकारी विज्ञापन के रूप में प्रकाशित करने के आरोप में दिया गया है।
कहा गया है कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के द्वारा साल 2015 में, दिल्ली हाई कोर्ट के द्वारा साल 2016 में दिए गए आदेशों का उल्लंघन किया है।
उपराज्यपाल ने मुख्य सचिव से कहा है कि इस संबंध में कमेटी ऑन कंटेंट रेगुलेशन इन गवर्नमेंट एडवरटाइजिंग (सीसीआरजीए) की सिफारिशों का पालन करें।
बैजल ने भी जताई थी आपत्ति
द इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है कि दिल्ली के पूर्व राज्यपाल अनिल बैजल ने भी आपत्तियां उठाई थी और आम आदमी पार्टी पर आरोप लगाया था कि वह अपने विज्ञापनों के भुगतान के लिए सरकारी खजाने का उपयोग कर रही है और ऐसा करके सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर रही है।
साल 2015 में दिए गए आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकारी विज्ञापनों में सिर्फ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और भारत के चीफ जस्टिस की ही फोटो लगेगी। अदालत ने अपने आदेश में कल्याणकारी योजनाओं वाले विज्ञापनों में राज्यों में सत्ताधारी पार्टियों के नेताओं की तस्वीरें लगाने पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने साल 2017 में 3 सदस्यों की सीसीआरजीए कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी का काम विज्ञापन के कंटेंट को रेगुलेट करना था।
सीसीआरजीए के आदेश के बाद सूचना और प्रचार निदेशालय ने 16 सितंबर 2016 को बताया कि आम आदमी पार्टी सरकार द्वारा विज्ञापनों में कुल 97,14,69,137 करोड़ रुपए खर्च किए जाने हैं और इसमें से 42,26,81,265 करोड़ रुपए का भुगतान किया जा चुका है और इतने 54,87,87,872 करोड़ का भुगतान होना बाकी है। 30 मार्च, 2017 को सूचना और प्रचार निदेशालय ने आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को पत्र लिखकर निर्देश दिया कि वह सरकारी खजाने में 42.26 करोड़ रुपए तत्काल प्रभाव से जमा करा दें।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राज निवास के अफसरों ने बताया कि विज्ञापनों के लिए आम आदमी पार्टी सरकार के द्वारा भुगतान की गई रकम सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का खुले तौर पर उल्लंघन है।
उपराज्यपाल सक्सेना ने अपने पत्र में कहा है कि 5 साल और 8 महीने बाद भी आम आदमी पार्टी ने इस आदेश का पालन नहीं किया। यह बेहद गंभीर मुद्दा है कि आम आदमी पार्टी ने विज्ञापनों में खर्च की गई रकम को सरकारी खजाने में जमा नहीं कराया। किसी राजनीतिक दल द्वारा इस तरह आदेश की अवहेलना करना न केवल न्यायपालिका का तिरस्कार है बल्कि किसी सरकार के लिए भी यह अच्छा नहीं है।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सतर्कता निदेशालय ने अपनी जांच में पाया कि सूचना और प्रचार निदेशालय ने 42,26,81,265 करोड़ रुपए की वसूली तो नहीं की बल्कि इसके उलट इसने बचे हुए 54,87,87,872 करोड़ रुपए का भी भुगतान कर दिया।
बताना होगा कि दिल्ली के उपराज्यपाल और आम आदमी पार्टी सरकार की पिछले कई महीनों से लगातार तनातनी चल रही है। पिछले महीने उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से कहा था कि वह जैस्मीन शाह को दिल्ली डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन (डीडीडीसी) के उपाध्यक्ष पद से हटाएं। यह आरोप लगाया गया था कि शाह ने अपने दफ्तर का दुरुपयोग राजनीतिक कारणों के लिए किया है। डीडीडीसी को दिल्ली सरकार का थिंकटैंक माना जाता है।
उपराज्यपाल के आदेश के बाद सिविल लाइन इलाके के एसडीएम ने डीडीडीसी के दफ्तर को सील कर दिया था।
उपराज्यपाल के साथ टकराव
आम आदमी पार्टी के नेताओं ने उपराज्यपाल पर खादी और ग्रामोद्योग आयोग का चेयरमैन रहते हुए भ्रष्टाचार करने के आरोप लगाए थे। इसे लेकर आम आदमी पार्टी के विधायकों ने दिल्ली की विधानसभा में रात भर धरना भी दिया था।
आम आदमी पार्टी का कहना था कि जब देश नोटबंदी के दौरान लाइनों में लगा था तब उपराज्यपाल सक्सेना काले धन को सफेद बनाने में लगे थे और उस दौरान वह खादी और ग्रामोद्योग आयोग के चेयरमैन के पद पर थे।
आम आदमी पार्टी ने उपराज्यपाल पर अपनी बेटी को नियमों के खिलाफ जाकर मुंबई में खादी लाउंज के इंटीरियर डिजाइनिंग का ठेका दिलाने का मामला भी उठाया था।
सितंबर में एलजी ने दिल्ली सरकार द्वारा 1000 लो फ्लोर बसों की खरीद की केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआई से जांच कराने को मंजूरी दी थी। इससे पहले एलजी ने केजरीवाल सरकार द्वारा लाई गई और फिर वापस ली गई आबकारी नीति की सीबीआई जांच की सिफारिश की थी। इसके बाद बीजेपी, कांग्रेस केजरीवाल सरकार के खिलाफ मैदान में उतर आए थे।
इस मामले में उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर पर सीबीआई ने छापेमारी की और गाजियाबाद के एक बैंक में उनके लॉकर को भी खंगाला गया और कई लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
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