नोएडा के सेक्टर 58 में सार्वजनिक पार्क में नमाज़ पर रोक लगाने के मामले में नया मोड़ आ गया है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुसलमीन के प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी ने राज्य सरकार पर तीखा हमला बोल दिया है। उन्होंने कहा है कि 'यूपी पुलिस कांवड़ियों पर फूल बरसाती है, लेकिन कुछ मुसलमानों के हफ़्ते में एक दिन नमाज़ पढ़ लेने से इसे लगता है शांति और सद्भाव बिगड़ सकता है।'
ओवैसी ने ट्वीट कर कहा, 'इसका मतलब मुसलमानों से यह कहना है कि आप कुछ भी कर लें, ग़लती तो आपकी ही है।'
UP Cops literally showered petals for Kanwariyas, but namaz once a week can mean “disrupting peace & harmony”. This is telling Muslims: aap kuch bhi karlo, ghalti to aapki hi hogi.
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) December 25, 2018
Also, by law, how does one hold an MNC liable for what their employees do in individual capacity? https://t.co/b90Jw5ZMHY
किरकिरी होने के बाद ज़िला प्रशासन लीपापोती में लग गया है। उसने कहा कि पार्क में कर्मचारियों के नमाज़ पढ़े जाने के लिए कंपनियों को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा। प्रशासन ने कहा है कि यह आदेश सभी धर्मों पर समान रूप से लागू है, इसलिए इससे यह आशय निकालना बिल्कुल ग़लत है कि यह मुसलमानों के प्रति भेदभाव से प्रेरित है। प्रशासन ने यह भी साफ़ किया कि यह नोटिस सिर्फ सेक्टर 58 के लिए था, पूरे नोएडा के लिए नहीं।
गौतम बुद्ध नगर के ज़िला मजिस्ट्रेट बी. एन. सिंह ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट के 2009 के एक फ़ैसले के मुताबिक़, सार्वजनिक स्थल पर धार्मिक आयोजन के लिए पुलिस और प्रशासन की पूर्व अनुमति ज़रूरी है। पुलिस अफ़सर ने इस निर्णय को लागू करने के लिए ही यह आदेश जारी किया था और उनकी कोई बुरी मंशा नहीं थी।'
दरअसल, प्रशासन ने जो नोटिस जारी किया था, उसमें सेक्टर में काम कर रही कंपनियो से कहा गया था कि यदि उनके मुसलिम कर्मचारी पार्क में नमाज़ अदा करते हुए पाए गए तो इसकी ज़िम्मेदारी उनकी होगी। नोटिस में कहा गया है, 'प्राय: देखने में आया है कि आपके कंपनी के मुसलिम कर्मचारी पाक में एकत्रित होकर नमाज़ पढ़ने आते हैंजिनको पार्क में सामूहिक रूप से मुझ एसएचओ द्वारा मना किया गया है एवं इनके द्वारा दिए गए नगर मजिस्ट्रेट महोदय के प्रार्थना पत्र पर किसी तरह की अनुमति नहीं दी गई है।'
शासन का यू-टर्न इस लिहाज़ से मायने रखता है कि योगी सरकार नोएडा में भारी निवेश के लिए आस लगाए बैठी है। नोएडा-ग्रेटर नोएडा एक्प्रेसवे क्षेत्र में यूपी सरकार हज़ारों करोड़ रुपये निवेश पाना चाहती है। यही कारण है कि अभी हाल ही में गाज़ियाबाद में एक सभा में योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में जनवरी में एक लाख करोड़ का निवेश आएगा। नोएडा में निवेश लुभाने के लिए योगी लगातार जुटे हुए हैं। कई मंचों से उऩ्होंने नोएडा में निवेश करने वाली कंपनियों को हर सुविधा देने की बात की है।
नोएडा में काम कर रही तमाम बड़ी कंपनियाँ इस फ़रमान से सकते में थीं। मल्टीनेशनल कंपनी अडोबी इंटरनेशनल, सैमसंग से लेकर भारतीय कंपनियाँ एचसीएल, एल्सटाम, मिंडा हफ आदि इसे लेकर परेशानी में थीं कि वे कर्मचारियों की फ़ैक्टरी या दफ़्तर के बाहर की किसी गतिविधि को कैसे नियंत्रित कर सकती हैं?
दबाव में दिया था नोटिस?
शुक्रवार की नमाज़ के लिए व्यवस्था करने वाले आदिल राशीद ने आरोप लगाया है कि पिछले महीने गेरुआ गमछा ओढ़े एक व्यक्ति ने अपने फ़ोन से नमाज़ की जगह का विडियो बनाया था और नमाज़ नहीं पढ़ने की चेतावनी दी थी। उनका कहना है कि इसके बाद ही स्थानीय पुलिस कर्मी ने कंपनियों को नोटिस जारी किया। कर्मचारियों का कहना है कि पार्क में नमाज़ काफ़ी पहले से पढ़ी जाती रही है।
पुलिस का कहना है कि बिशनपुरा गाँव के लोगों की शिकायत पर कंपनियों को नोटिस जारी किया गया था। हालाँकि उन्होंने यह भी कहा कि दो हफ़्ते पहले ही पार्क में नमाज़ पढ़ने की अनुमति के लिए आदिल राशिद नाम के एक व्यक्ति ने 250 लोगों के हस्ताक्षर से एक अर्जी लगाई गई थी। उन्होंने बताया कि ज़िला मजिस्ट्रेट ने अनुमति नहीं दी।
क्या कहना है उलेमाओं का?
ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य और लखनऊ के प्रमुख मुसलिम उलेमा ख़ालिद रशीद फिरंगीमहली ने कहा है कि मुसलमानों को उन जगहों पर नमाज़ अदा करने से बचना चाहिए जिनसे दूसरे लोगों को दिक्क़त होती हो। उन्होंने कहा, 'सार्वजनिक जगहों पर नमाज़ पढ़ने के मामले में लोगों को स्थानीय प्रशासन के निर्देशों का पालन करना चाहिए। सबसे अच्छा यह है कि लोग अपने घरों या मसजिद में ही नमाज़ अदा करें।'उत्तर प्रदेश शिया वक़्फ़ बोर्ड के अध्यक्ष सैयद वसीम रिज़वी ने कहा कि लोगों को सार्वजनिक जगहों पर नमाज पढ़ने से पहले प्रशासन की इजाज़त ज़रूर लेनी चाहिए। बग़ैर पूर्व अनुमति के सार्वजनिक जगहों पर नमाज अदा करने की इजाज़त इसलाम में नहीं है।
प्रमुख बरेलवी धर्मगुरु मौलाना शहाबुद्दीन ने कहा कि यह आस्था का सवाल है। पर लोगों को यह ज़रूर ध्यान में रखना चाहिए कि इससे दूसरों को दिक्क़त न हो।
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