हाल मुकाम : बिहार में सीतामंडी जिले का कुपरैल गांव।
शौक : बीड़ी फूंकना, जीप चलाना, दुश्मन को खोजना। इस चक्कर में प्यार-व्यार भूलना।
योग्यता : सत्ता पक्ष को विपक्ष और विपक्ष को पक्ष में करने का मास्टरमाइंड होना। हजारों कुकर्मियों को मुक्ति दिलाना। नाम सुनकर ही कुकर्मी कर्म भूल जाता है। रॉबिनहुड का बाप ! खुद ही कानून, खुद ही जज, खुद ही सरकार, खुद ही प्रजा। बोले तो सब कुछ।
पारिवारिक हालात : दिवंगत पिताजी की दूसरी बीवी से जन्मे छोटा भाई से वीडियो कॉल करना। छोटी मां के शब्दों को निभाना और दस साल से शादी का इन्तजार करना।
हिन्दी फ़िल्म वालों ने बिहार का चित्रण करने के लिए एक टेम्पलेट बना रखा है! उसी टेम्पलेट का इस्तेमाल किया गया है। हिन्दी फिल्मों में जैसा हिंसक बिहार दिखाया जाता है, वैसा ही बिहार इसमें भी दिखाया गया है। ऊपर से अड़ी बात यह है कि हीरो को ब्राह्णण दिखाया गया है। यह लड़ाकू ब्राह्मण गंदी गालियां नहीं देता, केवल कानून अपने हाथ में लेता है और कानून उसे कुछ नहीं कहता।
सवा दो घंटे की फिल्म में दो घंटे पर्दे पर भैया जी ही छाये रहे। पूरे दो घंटे भैया जी ऐसी शक्ल बनाये रखते हैं मानो हाजत ख़राब हो। गुसलखाने में बैठे हों और कामयाबी नहीं मिल पा रही हो। अंत तक दर्शकों की हाजत खराब करते रहे।
मनोज 99 फिल्में कर चुके हैं तो अब नई फ़िल्म एक्शन अवतार में! उन्होंने भी सलमान खान, विद्युत जामवाल और टाइगर श्रॉफ बनने की सोची।अधेड़ हैं तो क्या सलमान अधेड़ नहीं है? रजनीकांत तो सीनियर सिटीजन होकर भी एक्शन मारते हैं। यह कोई गुनाह नहीं है। जब शाहरुख खान रोमांटिक इमेज को छोड़कर एक्शन रोल करने लगे तो बेचारे मनोज वाजपेयी ने क्या गुनाह कर दिया? उन्हें भी हक है।
सिनेमा के पर्दे पर छाए रहने में कोई बुराई नहीं है मनोज भाई, लेकिन कम से कम चेहरा तो ऐसा मत बनाओ कि दर्शक को लगे कि कांस्टिपेशन के पुराने मरीज़ हो और निकल नहीं पा रही है। या तो निकाल लो या अपना चेहरा मत दिखाओ। इसमें इतनी समझदारी जरूर की है कि रोमांटिक सीन नहीं डाले। केवल 10-15 सेकंड के दो-तीन दृष्य हैं, जिसमें मनोज अपनी होने वाली बीवी (जोया हुसैन) के करीब जाते हैं। वह भी बड़ी जबरदस्त है, नेशनल शूटिंग चैम्पियन। जाहिर है उसने भी पैसे लिये हैं तो एक्शन करवानी ही पड़ेगी।
कई फ़िल्में बन चुकी हैं, जिनमें हीरो अपराध की दुनिया का बादशाह है, लेकिन अपराध छोड़ चुका है। इसमें भी हीरो मज़बूरी में अपना हथियार यानी फावड़ा उठा लेता है और प्रतिशोध लेता है! प्रतिशोध यानी नरसंहार ! मारपीट में उस पर सैकड़ों गोलियां चलती हैं, पर हीरो को कोई भी नहीं लगती। हीरो बाहर स्मार्ट है, गोली आती है तो वह बैठ जाता है या बाएं-दाएं हो जाता है। कभी बैलगाड़ी के नीचे छुप जाता है। कभी छप्पर वाली चद्दर को ढाल बना लेता है।
भैया जी कुछ नहीं करते, हवेली में रहते हैं। सैकड़ों पट्ठे हैं, दर्जनों नौकर हैं, करोड़ों की बात करते हैं- दस बीस, पचास, सौ दो सौ करोड़ तक की। राजनीति में भी दखल रहा है, पर खुद चुनाव से दूर हैं। दुश्मन जब ट्रक और रेल के डिब्बे भरकर नोट चंदा भेज रहा होता है, तब भैया जी पहुँच जाते हैं, मार पिटाई करते हैं। पर कोई इकनॉमिक ऑफेंस नहीं करते। अपवित्र नोटों के बक्सों छूते भी नहीं। कैरेक्टर वाले हैं, ईडी या इनकम टैक्स वालों के चक्कर में नहीं पड़ते। देसी सुपरस्टार की इस फिल्म में गाने भी हैं भोजपुरी टाइप गाना है - पतली कमरिया मेरी आय हाय, दूसरा गाना है- बाघ का करेजा देके ऊपर वाला भेजा।
धूम धाम, ठांय धांय, शूं शपाट। मज़ा आएगा ! देसी सुपरहीरो का देसी एक्शन, एक्टिंग अच्छी है। कहानी कमज़ोर और निर्देशन दोषपूर्ण।
वीडियो गेम समझकर फिल्म को देख सकते हैं।
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