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प्रशांत किशोर

भाजपा की बी टीम कहे जाने वाले प्रशांत किशोर की नजर दलितों-मुस्लिमों पर क्यों

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर अपनी राजनीतिक पार्टी जन सुराज को लान्च करेंगे। उसी दिन उनकी बिहार यात्रा का दो साल भी पूरा हो जाएगा। प्रशांत किशोर की पार्टी अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में पूरे दमखम के साथ सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। हालांकि दो साल पहले जब उन्होंने पूरे बिहार की यात्रा की थी, उनकी राजनीतिक पार्टी की लॉन्चिंग तभी होना थी। लेकिन अपनी यात्रा के जरिए कोई लहर पैदा नहीं कर पाने के कारण उन्होंने कदम पीछे हटा लिए। 

पश्चिम बंगाल में जब तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) को 2021 के विधानसभा चुनावों में भारी सफलता मिली तो उसका श्रेय लेते हुए प्रशांत किशोर ने कहा था कि वह राजनीतिक रणनीति से दूर जा रहे हैं। फिर उन्होंने 2 अक्टूबर, 2022 से बिहार यात्रा शुरू की, ताकि राजनीति में औपचारिक रूप से उतर सकें।

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किशोर ने अपनी जन सुराज यात्रा पश्चिम चंपारण से शुरू की थी। हालांकि 10 जिलों में वो कार से यात्रा करते हुए पहुंचे थे। लेकिन इस यात्रा के बाद दावा किया गया कि उन्होंने जमीनी स्तर पर नेताओं का एक समूह तैयार किया है। जिनके दम पर वो अपनी पार्टी को पूरे बिहार में फैला देंगे। बहरहाल, प्रशांत किशोर अपनी पार्टी को लॉन्च नहीं कर पाए। अब नया रंग रोगन लगाकर फिर से अपनी राजनीतिक पार्टी को लॉन्च करने की तैयारी है। देश के सबसे पिछड़े राज्यों में बिहार की प्रमुख पार्टियां आरजेडी, भाजपा और जेडीयू हैं। हालांकि कांग्रेस भी है लेकिन प्रमुख पार्टियां वही तीनों मानी जाती हैं।

ब्राह्मण प्रशांत किशोर की दलितों-मुसलमानों से अपीलः चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर खुद ब्राह्मण हैं, लेकिन वो दलितों और मुसलमानों से जाति और धार्मिक आधार पर मतदान बंद करने और "अपने बच्चों के भविष्य" को ध्यान में रखने की अपील कर रहे हैं। लेकिन प्रशांत किशोर जिस जाति से आते हैं, वो खुद आंख बंद कर भाजपा को वोट देती है, उसके लिए प्रशांत किशोर का कोई संदेश नहीं है। यानी अगर दलित और मुस्लिम वोट बैंक के रूप में किसी पार्टी को वोट देते हैं तो उस पर सभी को ऐतराज है, लेकिन ऐतराज करने वाले अपने जाति समूह या समुदाय पर ध्यान नहीं देते जो खुलकर दक्षिणपंथी भाजपा का समर्थन करते हैं। प्रशांत किशोर ने दलितों और मुस्लिमों से जो अपील की है, उसकी खास वजह कुछ और भी है। 1990 के बाद से, बिहार का नेतृत्व उन नेताओं ने किया है जो सामाजिक न्याय की राजनीति से निकले हैं, चाहे वह आरजेडी के लालू प्रसाद और उनकी पत्नी राबड़ी देवी हों, या वर्तमान मुख्यमंत्री और जेडीयू सुप्रीमो नीतीश कुमार हों। इन सभी की दलितों और मुस्लिमों में पहचान है। प्रशांत किशोर वहां अपनी जगह बनाना चाहते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस से इस मुद्दे पर कहा कि “किशोर को पता है कि ऊंची जाति के ब्राह्मण के रूप में उनकी अपनी जाति की पहचान और खुद को एक नेता के रूप में अत्यधिक प्रचारित करने से चीजें शुरू होने से पहले ही खराब हो सकती हैं। इसलिए, वह जातियों, धर्मों के साथ-साथ पेशेवर पृष्ठभूमि से ऊपर उठकर ऐसे गठबंधन की बात कर रहे हैं।'' 
मुस्लिमों को आकर्षित करने के लिए प्रशांत किशोर ने कहा है कि मुस्लिम बिहार की आबादी का 17% हैं, यादवों से 3% अधिक लेकिन उनके पास पूरे बिहार का कोई नेता नहीं है।
मुसलमानों के लिए उनका संदेश इसी तर्ज पर है। हाल ही में, किशनगंज में एक सभा में, उन्होंने घोषणा की कि जन सुराज पार्टी 2025 के विधानसभा चुनावों में 75 मुसलमानों को मैदान में उतारेगी। किशोर ने मुस्लिमों से कहा: “आप डर के मारे असामाजिक तत्वों को वोट देना कब बंद करेंगे और अपने लिए वोट करना शुरू करेंगे। अपने बच्चों के भविष्य के लिए?” किशनगंज के अलावा, किशोर ने अररिया और कटिहार की भी यात्रा की है, जहां मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है। उन्होंने आरजेडी और जेडीयू की मुसलमानों के प्रति दिखावटी बातों पर सवाल उठाए और पूछा कि उन्होंने इस समुदाय को सरकार में महत्वपूर्ण पद क्यों नहीं दिए। 

प्रशांत किशोर कुछ इस तरह की बात दलितों से भी कहते हैं। उनके नेताओं का कहना है कि पार्टियों ने दलित नेताओं का केवल "इस्तेमाल" किया है। दलित वोट वर्तमान में बिखरे हुए हैं क्योंकि चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेता उन्हें अपने ढंग से इस्तेमाल कर रहे हैं। इसीलिए प्रशांत किशोर दलित मुस्लिमों की 37 फीसदी आबादी को अपने मंच पर लाना चाहते हैं, ताकि आरजेडी और जेडीयू के वोट बैंक पर कब्जा किया जा सके।

भाजपा की बी टीम

प्रशांत किशोर ने जो राजनीतिक लाइन पकड़ी है, उससे भाजपा को सीधा फायदा है। यानी 37 फीसदी दलित और मुस्लिम वोट आरजेडी और जेडीयू की ताकत है। ये दोनों समुदाय भाजपा को वोट नहीं देते। इसीलिए प्रशांत किशोर को भाजपा की बी टीम कहा जाता है। क्योंकि बिहार में जिस तरह की दलित-मुस्लिम राजनीति प्रशांत किशोर करना चाहते हैं, उससे भाजपा को जबरदस्त फायदा होगा। इससे यह भी संकेत मिलता है कि अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा अकेले दम पर सरकार बनाना चाहती है। उसे प्रशांत किशोर की पार्टी के जरिए दलित-मुस्लिम वोट बंटने की उम्मीद है।
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हालांकि उन्होंने भाजपा की बी टीम का शक दूर करने के लिए बिहार की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। मुसलमानों से प्रशांत किशोर की जजबाती अपीलों का सिलसिला जारी है। किशोर ने अररिया की सभा में कहाः “तुम्हारे पैग़ंबर साफ़ कहते हैं कि संघर्ष के बिना कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता। आप सिर्फ बीजेपी या नरेंद्र मोदी को हराने के बारे में सोचते रहते हैं लेकिन इस दिशा में ठोस प्रयास नहीं करते. इसके बजाय, आप कुछ लोगों या नेताओं द्वारा उन्हें हराने की प्रतीक्षा करते हैं। फिर, चुनाव के बाद, आप पांच साल तक चुप रहते हैं और फिर से किसी चमत्कार के होने का इंतजार करते हैं।” किशोर ने फिर कहा- “भाजपा एक दिन में नहीं बनी। मोदी 2014 में नहीं आए थे। वह उससे पहले 20 साल तक वहां थे।'' यानी मुसलमानों के मर्म पर भी वो हाथ रख रहे हैं। ताकि बी टीम कहना लोग बंद करेंगे। लेकिन राजनीति में जो दिखता है, वो होता नहीं। जो होता है, राजनीतिक मकसद उससे अलग होता है। फिलहाल प्रशांत किशोर भाजपा की पसंद बने हुए हैं। 

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क़मर वहीद नक़वी
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