आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए बिहार में ओबीसी वर्ग को अपनी ओर मिलाने के लिए राजनीति तेज हो गई है। जाति जनगणना के आंकड़े आने के बाद जब साफ हो गया है कि बिहार में सबसे अधिक आबादी अतिपिछड़ा वर्ग 36 प्रतिशत और इसके बाद पिछड़ा वर्ग की आबादी 27 प्रतिशत है तो सभी दल इस वोट बैंक को हथियाने में लग गए हैं।
हाल ये है कि इस वोट बैंक पर कब्जे के लिए बिहार में इंडिया गठबंधन के दो सबसे बड़े सहयोगी राजद और जदयू के बीच भी अंदर ही अंदर तकरार हो रही है। भाजपा किसी भी हाल में इन दोनों वर्ग के वोट बैंक को अपनी तरफ करना चाहती है। इसके लिए वह पुरजोर कोशिश कर रही है। हर दिन इन दलों के नेताओं को बयान आ रहे हैं। सभी दल और नेता खुद को ओबीसी वर्ग का सच्चा हितैषी बता रहे हैं।
राजद और जदयू जहां बिहार में जाति जनगणना करवाने और आरक्षण का दायरा बढ़ाने का श्रेय लेकर इस वर्ग के मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं वहीं भाजपा केंद्र सरकार द्वारा इस वर्ग के लिए किए जाने वाले कामों को गिना रही है। भाजपा ने राज्य में पार्टी के भीतर ओबीसी नेतृत्व को उभारा है। कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा से भी भाजपा को लगा रहा है इसका उसे फायदा होगा।
राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में पिछड़ा वर्ग करीब तीन दशक से अधिक समय से राजनीति के केंद्र में रहा है। अब तक राजद और जदयू को इस वर्ग का भरपूर समर्थन मिलता रहा है जिसकी बदौलत ये दोनों दल सत्ता में आते रहे हैं। अतिपिछड़ा वर्ग का वोट भी इन्हें मिलता रहा है।
लेकिन पिछले कुछ वर्षों में अति पिछड़ा वर्ग को भाजपा ने एकजुट कर लिया है। इस वर्ग का झुकाव भाजपा की ओर तेजी से बढ़ा रहा है। इस वर्ग का समर्थन विधानसभा चुनाव की अपेक्षा बीते दो लोकसभा चुनाव में भाजपा को काफी अधिक मिला है।
इसके कारण पिछले दोनों ही लोकसभा चुनाव में भाजपा की बिहार में अच्छी जीत हुई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन होने का फायदा नीतीश कुमार को भी मिला था।
बिहार में है कुल 63 प्रतिशत ओबीसी आबादी
बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं। ऐसे में भाजपा की कोशिश यहां से अधिक से अधिक सीटों को जीतना है। बिहार में अतिपिछड़ा वर्ग के 36 प्रतिशत और पिछड़ा वर्ग के 27 प्रतिशत आबादी को मिलाने के बाद कुल ओबीसी आबादी 63 प्रतिशत हो जाती है।
भाजपा ने आगामी लोकसभा चुनाव में 400 सीटों को जीतने का लक्ष्य रखा है यह तभी पूरा हो सकता है जब उसे बिहार जैसे बड़े राज्य में अच्छी जीत मिले। बिहार की राजनीति कुछ इस तरह की है कि भाजपा और राजद जिसके साथ भी जदयू चला जाता है उसका पलड़ा चुनाव में भारी पड़ता है।
इसको देखते हुए भी भाजपा कोशिश में है कि वह नीतीश को अपनी तरफ मिला लें। ऐसा होने पर भाजपा को नीतीश समर्थक बड़े ओबीसी वोट बैंक का भी समर्थन लोकसभा चुनाव में मिल सकता है।
अगर आंकड़ों में देखे तो पाते हैं कि 2014 के लोकसभा में पिछड़ा वर्ग के 49 प्रतिशत वोट राजद, 21 प्रतिशत वोट भाजपा और 14 प्रतिशत वोट जदयू को मिले थे। वहीं अति पिछड़ा वर्ग का 10 प्रतिशत वोट राजद को, 18 प्रतिशत वोट जदयू और 52 प्रतिशता वोट भाजपा को मिले थे।
बात 2019 के लोकसभा चुनाव की करे तो इसमें भाजपा और जदयू के गठबंधन ने 42 प्रतिशत पिछड़ा और 75 प्रतिशत अति पिछड़े वोट को हासिल करने में कामयाबी पाई थी। दूसरी तरफ राजद और उसके सहयोगी दलों के गठबंधन को 41 प्रतिशत पिछड़े वर्ग और 14 प्रतिशत अति पिछड़ा वर्ग का वोट मिला था।
इस तरह से देखे तो पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट बैंक तीनों बड़ी पार्टियों में बंट जा रहा है। अब इसका बड़ा हिस्सा पाने के लिए ही तीनों ही पार्टियां लड़ रही हैं।
इस वोट बैंक की खातिर ही हुई जाति जनगणना
इसी वोट बैंक को अपनी ओर करने के लिए राजद और जदयू की गठबंधन सरकार ने बिहार में जाति जनगणना करवाई। इसके बाद आरक्षण का दायरा बढ़ाया। इससे इन दोनों दलों को उम्मीद है कि उन्हें राजनैतिक फायदा मिलेगा। वहीं भाजपा इस वोट बैंक को पाने के लिए अपना प्रदेश अध्यक्ष एक ओबीसी चेहरे को बना चुकी है। इसके साथ ही भाजपा ने विभिन्न अहम पदों पर इस वर्ग के नेताओं को जगह दी है।पिछले दिनों केंद्र सरकार ने अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा की है। इसके बाद भी बिहार में राजनीति तेज हो गई है। माना जा रहा है कि बिहार के पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग या यूं कहे कि ओबीसी वोट बैंक पर अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए भाजपा सरकार ने यह फैसला लिया है।
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने की घोषणा के बाद बिहार में ये तीनों ही बड़े दल इसका क्रेडिट लेने की होड़ कर रहे हैं। भाजपा जहां कह रही है कि उसकी सरकार ने ही अति पिछड़ा वर्ग से आने वाले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिया है वहीं जदयू और राजद कह रही है कि उनकी वर्षों पुरानी मांग के कारण ही उन्हें भारत रत्न पुरस्कार देने की घोषणा हुई है।
जदयू और राजद के बीच कर्पूरी का असली वारिस साबित करने की भी होड़ है। इसी कड़ी में बुधवार को नीतीश कुमार ने पटना में कर्पूरी जयंती पर बड़ी रैली की है। वहीं लालू प्रसाद कर्पूरी ठाकुर को अपना राजनैतिक गुरु बताते हैं।
माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में ओबीसी वर्ग के वोट बैंक पर कब्जे को लेकर इन तीनों दलों के बीच जंग बढ़ेगी। ये तीनों दल जानते हैं कि बिहार में चुनाव जीतना है तो 63 प्रतिशत आबादी वाले इस विशाल वर्ग और उसके वोटबैंक को अपनी ओर मिलाना होगा।
अपनी राय बतायें