कोरोना को लेकर गांवों में हालात बेहद ख़राब हैं और इस ओर अदालतों का भी ध्यान है। पटना हाई कोर्ट ने नीतीश सरकार से कहा है कि वह गांवों में कोरोना वायरस की दूसरी लहर से हुई मौतों का आंकड़ा दे। अदालत ने यह भी कहा कि सरकार कोरोना की पहली लहर में जो 40 लाख प्रवासी राज्य के गांवों में लौटे थे, उनके बारे में भी बताए। इसके अलावा बक्सर जिले में गंगा में बहते मिले शवों को लेकर भी सरकार से विस्तृत रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है।
अदालत में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ़ जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एस. कुमार ने राज्य सरकार से कहा कि वह बताए कि कोरोना महामारी से निपटने के लिए उसने क्या क़दम उठाए हैं। गांवों में क्या इंतजाम किए गए हैं, इसका विशेष रूप से जिक्र हो। इसके अलावा सरकार कोरोना से होने वाली मौतों का जिलेवार आंकड़ा दे।
अदालत ने कहा, “गांवों की ओर विशेष ध्यान देने का मतलब यही है कि वहां कोई भी व्यक्ति कोरोना काल में स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित न रहे। गांवों में विशेषकर अशिक्षित, वंचित लोगों को ज़्यादा जानकारी नहीं है। यह गांवों के मुखिया की जिम्मेदारी है कि वह उनके इलाक़ों में हो रही मौतों के बारे में 24 घंटे के अंदर सरकार को जानकारी दें।”
कोर्ट की सख़्त टिप्पणी
अदालत ने कहा कि इससे सरकार को मौत का कारण पता करने में मदद मिलेगी और वह महामारी पर नियंत्रण करने के लिए क़दम भी उठा सकेगी। कोर्ट ने सख़्त लहजे में कहा कि वह ऐसे जनप्रतिनिधियों को हटाने के लिए निर्देश जारी करने में देर नहीं करेगी जो अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में फ़ेल साबित हुए हों।
अदालत ने कहा कि ऐसा नहीं है कि कोरोना का वायरस केवल शहरी लोगों पर असर कर रहा है। इसलिए कोरोना की संभावित तीसरी लहर को देखते हुए गांवों में टेस्टिंग और आइसोलेशन की सुविधा होनी चाहिए।
प्रवासी मजदूरों का मामला
अदालत ने प्रवासी मजदूरों को लेकर भी चिंता व्यक्त की और कहा कि पहली लहर में लौटे 40 लाख प्रवासी मजदूरों में से कितने लोग हैं जो फिर से राज्य से बाहर गए और अब दूसरी लहर में लौटकर आए हैं और क्या ऐसे इलाक़ों में वायरस फैला है और क्या इससे मौतें हो रही हैं, इस बारे में प्रशासन को पता करना चाहिए। अदालत इसे लेकर अगली सुनवाई 17 मई को करेगी।
दहशत में हैं ग्रामीण
बिहार के सुपौल से लेकर छपरा या फिर सहरसा और पटना से लगने वाले गांव। इन सभी जगहों के ग्रामीण दहशत में हैं। इन इलाकों में वैक्सीन से लेकर RT-PCR टेस्ट किट की भारी कमी है। शहरों में भी ऑक्सीजन से लेकर दवाइयों तक के लिए लोग परेशान हैं। टेस्टिंग न होने के कारण संक्रमण और मौतों के सही आंकड़े का पता चल पाना बेहद मुश्किल है।
बिहार में कोरोना संक्रमण बढ़ने का कारण प्रवासी मजदूरों का आना भी है। पिछली बार प्रवासी मजदूरों को क्वारेंटीन सेंटर्स में रोका गया था लेकिन इस बार महाराष्ट्र, दिल्ली से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर गांवों में पहुंच गए क्योंकि कोई रोक-टोक करने वाला नहीं था।
बिहार के कई इलाकों के ग्रामीण कहते हैं कि अगर टेस्टिंग बढ़ाई जाए तो यहां काफी संख्या में कोरोना के मरीज मिलेंगे। कई ग्रामीण कहते हैं कि बिना पूर्ण लॉकडाउन के कोरोना को नहीं संभाला जा सकता है।
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