बिहार में २०१३ से पहले यह धारणा आम थी कि प्रदेश बीजेपी को भी नीतीश कुमार ही चलाते हैं। लेकिन बीते दिनों जदयू में हुए घटनाक्रम से ऐसा लग रहा है कि जैसे अमित शाह अब नीतीश कुमार की जदयू को चलाते हैं।
क्या यह नहीं माना जाना चाहिए कि जिस तरह अमित शाह ने प्रशांत किशोर को जदयू में वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनवा दिया था, उसी तरह जब प्रशांत किशोर दिक्क़तें पैदा करने लगे तो उनको जदयू से निकलवा दिया?
यही नहीं, कई अखबारों में कॉलम लिखने वाले पवन वर्मा भी बीजेपी व मोदी-अमित शाह की आँखों की किरकिरी ही हैं, लिहाजा लगे हाथ उनको को भी किनारे लगवा दिया गया।
पवन-प्रशांत-हरिवंश
२०१३ में बीजेपी से नाता तोड़ने के समय नीतीश कुमार तीन लोगों को अपनी पार्टी के साथ लेकर आये थे। ये थे भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ अधिकारी व प्रसिद्ध लेखक पवन वर्मा, प्रतिष्ठित पत्रकार-संपादक हरिवंश और राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर।पवन वर्मा जदयू में शामिल होने से पहले भूटान में भारत के राजदूत थे। नीतीश ने उनको कैबिनेट दर्जे के साथ अपना सांस्कृतिक सलाहकार बनाया था और जून २०१४ में दो साल के लिए राज्यसभा भी भेजा। बाद में पवन वर्मा जदयू के राष्ट्रीय महासचिव व राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाए गये।
प्रतिष्ठित पत्रकार-संपादक हरिवंश को नीतीश कुमार ने जदयू में शामिल करवाकर उन्हें छह साल के लिए राज्यसभा भेजा। वह इस समय राज्यसभा के उपसभापति भी हैं। २०१८ में उपसभापति चुने जाने के बाद पदग्रहण के मौके पर प्रधानमंत्री ने उनकी खुल कर तारीफ की थी।
प्रशांत किशोर होने का मतलब
प्रशांत किशोर २०११ से अपनी एजेंसी सीएजी (सिटीजंस फॉर एकाउंटेबल गवर्नेंस) के ज़रिये नरेंद्र मोदी के लिए राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में काम शुरू किया था। २०१२ के गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद प्रशांत किशोर नरेंद्र मोदी के लिए २०१४ के आम चुनाव की तैयारी में लगे।
नरेंद्र मोदी के २०१३ में बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री उम्मीदवार के तौर पर सामने आने के पीछे प्रशांत किशोर की राजनीतिक रणनीति भी थी जो २०१४ के आम चुनाव में खुलकर सामने आई।
‘चाय पर चर्चा’, थ्रीडी सभाएं, ‘रन फॉर यूनिटी’ व ‘मंथन’ जैसे आइडिया और उनका सफलतापूर्वक क्रियान्वयन करके प्रशांत किशोर ने मोदी को बहुत आगे कर दिया।
सोशल मीडिया पर प्रौपेगेंडा का राजनीतिक प्रयोग भी बड़े स्तर नरेंद्र मोदी के लिए प्रशांत किशोर ने ही शुरू करवाया।
अमित शाह से पंगा?
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने अपने खास लेफ्टिनेंट अमित शाह को बीजेपी का अध्यक्ष बनवाया और यहीं से प्रशांत किशोर की बीजेपी में उलटी गिनती शुरू हो गई। प्रशांत किशोर को लग रहा था कि वे प्रधानमंत्री के सबसे खास हैं और उन्होंने अमित शाह से पंगेबाजी शुरू की। इस तरह प्रशांत किशोर वहाँ से बाहर हो गये।
पवन वर्मा ने प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार से मिलवाया। नीतीश उस समय बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्षी गठबंधन की स्क्रिप्ट पर काम कर रहे थे। २०१५ का बिहार विधानसभा चुनाव सामने था। लिहाजा, नीतीश ने प्रशांत किशोर को लपक लिया। ‘बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है’ नारा सामने आने के बाद प्रशांत किशोर चर्चा में आ गये।
नीतीश के लिए प्रशांत किशोर ने सीमित संसाधनों के हिसाब से चुनावी रणनीति बनाने, उसका सफल क्रियान्वयन करने के साथ राजद को भी मैनेज करने का काम बखूबी किया।
प्रशांत किशोर का बढ़ता कद
चुनाव जीतने के बाद नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को कैबिनेट दर्जे के साथ प्लानिंग एवं प्रोग्राम इंप्लीमेंटेशन सलाहकार नियुक्त किया। प्रशांत किशोर उस समय नीतीश के बंगले में ही रहते थे। लिहाजा उनकी हैसियत जदयू में नीतीश के सबसे क़रीबी की बन गई और उनको जदयू में नीतीश के बाद सबसे ताक़तवर व्यक्ति माना जाने लगा।प्रशांत किशोर ने इसके बाद पंजाब विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरेंद्र सिंह व उत्तर प्रदेश के २०१७ के चुनावों में कांग्रेस के लिए और २०१९ में आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी के लिए राजनीतिक रणनीतिकार का काम किया।
प्रशांत किशोर की मुश्किलें
जुलाई, २०१७ ने नीतीश ने महागठबंधन छोड़कर बीजेपी के साथ सरकार बनाई। उस समय लग रहा था कि अब प्रशांत किशोर के लिए नीतीश के यहाँ मुश्किल होगी। लेकिन ऐसा कुछ दिखा नहीं।
नीतीश ने प्रशांत किशोर का इस्तेमाल विकल्प की डोर के रूप में बीजेपी पर दबाव बनाने के लिए किया। मामला फंसा नागरिकता क़ानून के समर्थन को लेकर।
नीतीश ने बीच का रास्ता निकाल लिया था और एनआरसी न लागू करने की घोषणा भी कर दी थी। इसके बावजूद अमित शाह ने १६ जनवरी को वैशाली की अपनी सीएए समर्थन की सभा में नीतीश के नेतृत्व में ही भाजपा के बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की बात दोहराई।
नीतीश की दिक्क़तें
लेकिन प्रशांत किशोर यहां पर रुके नहीं और आगे बढ़ते चले गये। इससे नीतीश का असहज होना तय था। आग में घी का का काम किया पवन वर्मा के मेल ने। इससे जो स्थितियाँ बन रही थीं, उससे बीजेपी का परेशान होना स्वाभाविक है। बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने प्रशांत किशोर को आड़े हाथ लेना शुरू किया। जदयू में प्रशांत किशोर को लेकर पहले से ही आरसीपी सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं से लेकर अजय आलोक के स्तर तक भयानक असंतोष था। नीतीश कुमार ऐसे राजनीतिक हैं जो प्रेशर ज्यादा देर तक न लेकर दूसरों पर शिफ्ट करने के लिए जाने जाते रहे हैं। पर, सच यह भी है कि अब बीजेपी मोदी-शाह वाली है जो खुलकर खेलने में विश्वास रखती है न कि लिहाज और परदेदारी में।
इसी वजह से यह चर्चा आम है कि २०१३ तक जिस तरह नीतीश कुमार बिहार बीजेपी को अपनी ’बी’ टीम की तरह रखते थे, अब वही काम मोदी-शाह की भाजपा नीतीश की जदयू के साथ कर रही है। लेकिन नीतीश को भी कम करके नहीं आँका जा सकता है। और साथ ही प्रशांत किशोर को भी। इसलिए यह देखना रोचक होगा कि इस खेल में कौन किसे पटकनी देगा? अक्टूबर से पहले नये-नये दांव पेंच देखने को मिलना तय है।
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