बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चलाने वाले जेडीयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि वह जाति आधारित जनगणना के मामले पर प्रधानमंत्री मोदी से मिलना चाहते थे। उन्होंने गुरुवार को कहा कि उन्होंने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात के लिए समय मांगा था, लेकिन उन्हें इस पर अब तक कोई जवाब नहीं मिला है। इससे पहले जेडीयू के एक सांसद ने प्रधानमंत्री मोदी से मिलने का समय मांगा था, लेकिन उन्हें गृह मंत्री अमित शाह से मिलने को कहा गया था। यह घटनाक्रम तब हो रहा है जब जाति आधारित जनगणना के लिए कई विपक्षी दल दबाव डाल रहे हैं।
इस मामले में अब तक केंद्र सरकार जाति आधारित जनगणना के पक्ष में नहीं है। बिहार में बीजेपी को छोड़कर क़रीब-क़रीब सभी पार्टियाँ जाति आधारित जनगणना की मांग करती रही हैं। आरजेडी नेता लालू यादव ने भी हाल ही में इसकी मांग की थी। उनके बेटे तेजस्वी यादव लगातार इसकी मांग करते रहे हैं।
तेजस्वी यादव तो तर्क देते आए हैं कि 'जब जानवरों की गणना हो सकती है तो जाति जनगणना क्यों नहीं?' उन्होंने तो यहाँ तक मांग की थी कि यदि केंद्र सरकार सहमत नहीं है तो नीतीश कुमार सरकार को ख़ुद से ही ऐसा कर देना चाहिए। तेजस्वी यादव ने कहा था कि नीतीश कुमार को या तो बिहार के नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करना चाहिए या प्रधानमंत्री से बात कर इस मुद्दे को उठाना चाहिए।
इसी बीच अब नीतीश कुमार का बयान आया है। नीतीश कुमार ने कहा है कि जाति आधारित जनगणना से कुछ लोगों को दिक्कतें होंगी, यह बात पूरी तरह निराधार है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार नीतीश ने मंगलवार को पत्रकारों से कहा था, 'यह केंद्र पर निर्भर है कि वह जाति की जनगणना करे या न करे... हमारा काम अपने विचार रखना है। यह मत सोचो कि एक जाति पसंद करेगी और दूसरी नहीं... यह सभी के हित में है।' उन्होंने कहा था, 'समाज में कोई तनाव पैदा नहीं होगा। खुशी होगी। हर वर्ग के लोगों को योजनाओं से लाभ होगा।'
नीतीश कुमार ने कहा है कि जब बिहार विधानसभा ने जाति आधारित जनगणना के पक्ष में प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा तो किसी भी बीजेपी विधायक ने कोई आपत्ति नहीं जताई। उन्होंने सवाल किया, 'फिर कुछ हलकों से आपत्ति क्यों उठाई जा रही है, यह मेरी समझ से परे है।'
पिछले महीने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि भारत सरकार ने जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य जाति आधारित आबादी की जनगणना नहीं करने के लिए नीति के रूप में तय किया है।
बीजेपी ऐसे लुभाएगी ओबीसी को?
हालाँकि, अब रिपोर्ट है कि ओबीसी समुदाय को लेकर मोदी सरकार ने एक बड़ा फ़ैसला लिया है। सरकार ने उस संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह ताक़त देता है कि वे अपनी ओबीसी जातियों की सूची ख़ुद बना सकते हैं। इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों में रखा जाना है।
मोदी सरकार ने 2018 में 102वें संविधान संशोधन के जरिये अनुच्छेद 342-ए पेश किया था। यह अनुच्छेद पिछड़ी जातियों के राष्ट्रीय आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए लाया गया था। तब विपक्षी दलों ने सरकार को चेताया था कि यह संशोधन ओबीसी जातियों की सूची तैयार करने के राज्यों के अधिकार को प्रभावित कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में महाराष्ट्र सरकार के उस फ़ैसले को खारिज कर दिया था जिसमें उसने मराठा समुदाय को आरक्षण दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 342-ए के तहत सिर्फ़ केंद्र सरकार को ही इस बात का अधिकार है कि वह ओबीसी जातियों की केंद्रीय सूची को तैयार करे।
लेकिन एक बार संसद जब संविधान के अनुच्छेद 342-ए और 366 (26) सी को संशोधित कर देगी तो इससे हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को यह ताक़त मिलेगी कि वे ख़ुद ही ओबीसी की सूची में जातियों को जोड़ सकेंगे।
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