इस साल के आख़िर में बिहार विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और विधानसभा ने 2021 में जाति आधारित जनगणना कराने का प्रस्ताव एकमत से पारित कर दिया है।
इसके पहले जाति जनगणना कराए जाने का प्रस्ताव महाराष्ट्र सरकार ने केंद्र के पास भेजा था, जिसे केंद्र ने ख़ारिज कर दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने यह प्रस्ताव क्यों पारित कराया है औऱ इसके क्या मायने हैं।
मुख्यमंत्री की कहानी में झोल
नीतीश कुमार ने विधानसभा में प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान ख़ुद को जाति जनगणना का हिमायती दिखाने की ज़बरदस्त क़वायद की। उन्होंने वी. पी सिंह सरकार के कार्यकाल का हवाला देते हुए कहा कि भूतपूर्व राष्ट्रपति
ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें बुला कर जाति जनगणना की माँग पेश करने को कहा था और समाजवादी नेता मधु लिमये ने भी इसका समर्थन किया था। कुमार ने बताया कि उन्होंने इस सिलसिले में प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था।
क्या कहा था सरकार ने?
1989 में न तो नीतीश कुमार उतने पॉवरफुल थे, न तो वी. पी. सिंह सरकार के कार्यकाल में जनगणना हुई थी। नीतीश के मुताबिक़, उस समय सरकार ने कहा था कि माँग में बहुत विलंब हो गया है और अब जाति जनगणना नहीं हो सकती। नीतीश ने वही पंचलाइन मारी, जो मंडल कमीशन ने अपनी सिफारिश में कही है कि
'आयोग ने सरकार से जाति जनगणना कराने की सिफ़ारिश की थी, लेकिन तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने कहा कि जनगणना की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और इस मसले पर अब अगली जनगणना में ही विचार किया जा सकता है।'
हक़ीक़त या फ़साना?
हालाँकि नीतीश कुमार की यह कहानी सिर्फ लुभावनी कहानी भी हो सकती है। इसकी वजह यह है कि मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू करने के बाद बीजेपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था और वी. पी. सरकार गिर गई थी। उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जीती और पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने।
हालाँकि नीतीश कुमार की यह कहानी सिर्फ लुभावनी कहानी भी हो सकती है। इसकी वजह यह है कि मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू करने के बाद बीजेपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था और वी. पी. सरकार गिर गई थी। उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस जीती और पीवी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने।
नीतीश क्या छुपा ले गए?
नीतीश को नहीं याद आया अटल कालउसके बाद 2001 में जनगणना हुई। उस समय नीतीश कुमार 10 साल की राजनीति के बाद ख़ासे ताक़तवर हो चुके थे।
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में नीतीश की अच्छी ख़ासी धमक थी। उस दौर में उन्होंने जनगणना के लिए क्या-क्या आवाज़ उठाई, कुमार ने अपने पूरे भाषण में इसके बारे में एक शब्द भी नहीं कहा।
2001 में कुमार की इतनी धमक हो चुकी थी कि उनके समर्थन के बगैर अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार चलानी मुश्किल हो जाती। अटल सरकार बनने के पहले भी कांग्रेस की नहीं बल्कि समाजवादियों की खिचड़ी सरकार ही चल रही थी। इसलिए कुमार यह नहीं कह सकते हैं कि बहुत देर हो चुकी थी, इसलिए वाजपेयी सरकार ने जनगणना कराने से मना कर दिया था।
अपने भाषण में नीतीश कुमार 2001 की जनगणना को ही गोल कर गए और सीधे कूदकर 2011 की जनगणना पर आ गए और परोक्ष रूप से कांग्रेस की सरकार को जाति जनगणना न कराने को लेकर कोसना शुरू कर दिया। दिलचस्प है कि नीतीश कुमार सरकार ने 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के दौरान भी 18 फरवरी 2019 को जाति जनगणना कराए जाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा था।
केंद्र नहीं चाहता जाति जनगणना
इसके पहले महाराष्ट्र की विधान सभा ने 8 जनवरी 2020 को जाति जनगणना कराए जाने का प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा था। एकमत से पारित इस प्रस्ताव की प्रति गृह मंत्रालय को भेजी गई, जिसमें अनुरोध किया गया था कि जनगणना प्रक्रिया में बदलाव किया जाए।
इसके जवाब में 17 फरवरी 2020 को भारत के जनगणना आयुक्त और रजिस्ट्रार जनरल विवेक जोशी ने विधानसभा को सूचित किया कि जाति जनगणना नहीं कराई जा सकती है। इसमें कहा गया,
‘केंद्र सरकार की सूची के मुतिबक़, देश में ओबीसी में शामिल जातियों की संख्या 6,285 है, जबकि अगर राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों की ओबीसी सूची के मुताबिक आँकड़े तैयार किए जाएँ तो जातियों की संख्या 7,200 हो जाएगी। लोग अपने कुल, गोत्र और उपजाति व जाति के नाम में उच्चारण या कुछ शब्द बदलने के मुताबिक़ अलग मान लेते हैं। ऐसे में इससे जातियों का गलत वर्गीकरण हो सकता है।’ पत्र में आगे लिखा गया है, ‘ओबीसी और एसईबीसी की गणना करने से जनगणना की क़वायद की सत्यनिष्ठा प्रभावित होगी और इसलिए 2021 की जनगणना में इसे शामिल नहीं किया जा सकता है।’ इस पत्र से केंद्र का रुख साफ़ लगता है कि वह जनगणना कराए जाने के पक्ष में नहीं है।
क्या नीतीश अनभिज्ञ हैं?
केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना से इनकार किए जाने के ठीक 10 दिन बाद कुमार ने बिहार विधानसभा में जाति जनगणना का प्रस्ताव भेजा है। यह संभव नहीं लगता है कि मुख्यमंत्री जाति जनगणना को लेकर सचेत भी हों और उन्हें जानकारी भी न हो कि महाराष्ट्र के प्रस्ताव पर सरकार ने जाति जनगणना कराए जाने से इनकार कर दिया है और इस सिलसिले में महाराष्ट्र विधानसभा को पत्र भी भेजा जा चुका है।
नीतीश ने विधानसभा में यह कहानी भी नहीं सुनाई कि पिछले साल फरवरी में जब उन्होंने यह प्रस्ताव भेजा था, उसका केंद्र की ओर से क्या जवाब आया है।
अगर नीतीश स्थिति साफ़ नहीं करते तो यह माना जा सकता है कि लोकसभा या विधानसभा का चुनाव होना होता है तो नीतीश कुमार मौसमी ज़रूरत के मुुताबिक़ एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेज देते हैं।
सवाल यह भी है कि अगर नीतीश के पिछले साल की फरवरी के प्रस्ताव और इस साल की फरवरी के प्रस्ताव पर केंद्र सरकार उत्तर भेज दे कि जनगणना करा पाना संभव नहीं है तो ऐसी स्थिति में नीतीश का बीजेपी को लेकर क्या रुख होगा?
नीतीश कुमार को हर हाल में यह साफ करना चाहिए कि वह कुर्सी के प्रेमी हैं, या वास्तव में जाति जनगणना कराए जाने को लेकर गंभीर हैं। अगर वह साफ़ नहीं करते तो अमित शाह के प्रचलित किए शब्द क्रोनोलॉजी के हिसाब से यह प्रस्ताव सिर्फ चुनावी स्टंट है।
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