बिहार में साझा सरकार होने के बावजूद जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी के बीच के रिश्ते तनावपूर्ण और असहज तो पहले भी रहे हैं और दोनों दलों के नेता एक दूसरे पर घात-प्रतिघात पहले भी कर चुके हैं, पर लगता है कि यह अब बढ़ गया है।
यह इससे समझा जा सकता है कि जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नज़दीकी के नेता आर. सी. पी. सिंह ने मंत्रिमंडल में पार्टी के सही प्रतिनिधित्व नहीं होने पर असंतोष सार्वजनिक रूप से जताया है।
मंत्रिमंडल विस्तार?
सिंह ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, 'हम सब एनडीए के हिस्से हैं। नरेंद्र मोदी सरकार में सबको बराबर की हिस्सेदारी मिलनी चाहिए।'
राजनीतिक हलकों में यह चर्चा चल रही है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार हो सकता है।
लेकिन जदयू अध्यक्ष के बयान के कई निहितार्थ हैं।
सवाल यह उठता है कि क्या जदयू अध्यक्ष ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी माँगने के लिए यह बात कही है या वे बीजेपी पर कोई दबाव बनाना चाहते हैं।
दबाव की राजनीति!
यह सवाल इसलिए उठता है कि दो वर्ष पूर्व नीतीश कुमार ने बीजेपी के सांकेतिक मतलब हर सहयोगी दल से एक व्यक्ति को मंत्री बनाये जाने के प्रस्ताव को ठुकराया दिया था। अब वही दल हिस्से की माँग कर रहा है।
याद दिला दें कि पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी से कम सीटें आने पर भी जदयू के नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया। उसके बाद से दोनों सहयोगी दलों में तल्खी बढ़ गई और दोनों के नेता एक दूसरे पर चोट करने लगे।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि पश्चिम बंगाल चुनाव में बीजेपी की क़रारी हार होने के बाद स्थिति बदली हुई है और जदयू बीजेपी पर राजनीतिक दबाव बढ़ाने की कोशिश में है।
चिराग को रोकने की चाल?
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह भी हो सकता है कि जदयू लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान को मंत्रिमंडल में शामिल होने से रोकने के लिए यह दबाव बना रहा हो। रामबिलास पासवान की मौत के बाद उनकी जगह का एक मंत्रिमंडल खाली है और यह उनके बेटे और लोजपा के नेता चिराग पासवान को मिल सकता है।
लेकिन बिहार विधानसभा में जिस तरह लोजपा ने जगह-जगह जदयू के ख़िलाफ़ उम्मीदवार उतारे थे, उसे लगभग 15-20 सीटों का नुक़सान पहुँचाया था और नीतीश कुमार की स्थिति पहले से बहुत कमज़ोर हो गई थी, नीतीश कुमार के लोगों ने चिराग का विरोध किया था।
क्या इस बार भी ऐसा ही होगा, देखना यह है।
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