इस मौक़े पर जेडीयू के वरिष्ठ नेता ललन सिंह ने कहा कि गुप्तेश्वर पांडेय ने लंबे समय तक पुलिस बल में सेवा दी है और उनके आने से जेडीयू को मजबूती मिलेगी। पूर्व डीजीपी पांडेय ने कहा कि उन्होंने पुलिस में रहकर हमेशा ही कानून-व्यवस्था को मजबूत बनाया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसे गंभीरता से लेते थे।
जिस तरह पांडेय ने सुशांत मामले में नीतीश सरकार का पक्ष रखा था और मुंबई पुलिस पर निशाना साधा था, तभी यह साफ हो गया था कि पांडेय की चुनावी राजनीति में एंट्री होने जा रही है। क्योंकि वह उन दिनों बनाए गए ‘बिहार बनाम महाराष्ट्र’ के मुद्दे के चलते बिहार के लोगों में बन रहे इमोशन को देखकर बयान दे रहे थे। पूर्व डीजीपी पांडेय ‘रिया चक्रवर्ती की औकात नहीं है कि वह बिहार के मुख्यमंत्री पर टिप्पणी कर सके’ इस कमेंट के बाद चर्चा में आए थे।
पांडेय ने कुछ दिन पहले पत्रकारों के साथ बातचीत में चुनाव लड़ने का साफ संकेत दिया था। उन्होंने कहा था, ‘मुझसे चुनाव लड़ने को लेकर सवाल पूछा जाता है तो मैं कहता हूं कि क्या चुनाव लड़ना पाप है, आप भी लड़ लीजिए।’
किसी भी शख़्स के चुनावी राजनीति में आने की जोरदार हिमायत करते हुए पांडेय ने कहा था, ‘अगर कोई इस्तीफ़ा देकर या सेवानिवृत्त होकर राजनीति में आना चाहता हो, तो क्या यह अनैतिक है, असंवैधानिक है या ग़ैर क़ानूनी है, यह तो कोई पाप नहीं है।’
राउत ने बोला था हमला
पांडेय के राजनीति में आने को लेकर शिव सेना के प्रवक्ता संजय राउत ने न्यूज़ एजेंसी एएनआई से कहा था कि जो दल पांडेय को उम्मीदवार बनाएगा, जनता उस पर भरोसा नहीं करेगी। राउत ने कहा था, ‘जिस तरह से 3-4 महीने से डीजीपी का महाराष्ट्र के बारे में राजनीतिक तांडव चल रहा था, उसके पीछे उनका क्या एजेंडा था, अब यह साफ हो गया है।’
राउत ने कहा था, 'पांडेय ने जिस तरह की बयानबाज़ी मुंबई के केस के बारे में की, मुझे लगता है वो पॉलिटिकल एजेंडा चला रहे थे, इसका उन्हें इनाम मिलने जा रहा है।’ उन्होंने कहा था कि मोहरे के रूप में उनका इस्तेमाल हो रहा था। राज्यसभा सांसद संजय राउत ने यह भी कहा था कि यह सिविल सर्विस की प्रतिष्ठा के लिए ठीक नहीं है।
राजनीतिक समझौता?
सरकारी नियमों के मुताबिक़, आईएएस, आईपीएस अफ़सरों के वीआरएस के लिए आए आवेदन को स्वीकार करने में एक या दो महीने का वक्त लगता है। 30 साल की नौकरी पूरी करने के बाद कोई भी सरकारी अफ़सर रिटायर होने के लिए आवेदन कर सकता है लेकिन इसके लिए उसे कम से कम तीन महीने पहले नोटिस देना चाहिए। जानकारों का कहना है कि 24 घंटे में वीआरएस का आवेदन स्वीकार होने का मतलब है कि इसमें किसी तरह का कोई राजनीतिक समझौता है।
पिछले साल वीआरएस लेने वाले पूर्व आईपीएस अफ़सर अब्दुर रहमान ने ‘द प्रिंट’ से कहा, ‘हालांकि सरकार ने 24 घंटे में उनके नोटिस को स्वीकार कर लिया तो इसमें सरकार की कोई ग़लती नहीं है और तकनीकी रूप से ऐसा किया जा सकता है। लेकिन अगर कोई राजनीतिक समझौता न हो तो इसमें सामान्य रूप से 90 दिन का वक़्त लगता है।’
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