एनआरसी और एनपीआर पर नीतीश कुमार के जेडीयू की आख़िर नीति क्या है? पहले नागरिकता क़ानून पर बीजेपी का साथ दिया और फिर देश भर में प्रदर्शन को देखते हुए एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का विरोध किया। और अब विवादास्पद एनपीआर यानी राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के लिए राज़ी हो गया। मोदी सरकार ही पहले कई बार कहती रही है कि एनआरसी के लिए एनपीआर पहला क़दम है। यानी साफ़ शब्दों में कहा जाए तो एनपीआर की जानकारी को भी एनआरसी के लिए इस्तेमाल करने की बात कही गई थी। लेकिन अब मोदी सरकार ही सफ़ाई देती फिर रही है कि एनपीआर के डाटा का इस्तेमाल एनआरसी के लिए नहीं होगा। तो क्या मोदी सरकार लोगों में भ्रम फैला रही है और यही नीतीश कुमार का जेडीयू भी कर रहा है?
यह सवाल इसलिए कि बिहार के उप मुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने एनपीआर की तारीख़ की घोषणा भी कर दी है और कहा है कि राज्य में 15 मई से 28 मई तक एनपीआर कराया जाएगा। बीजेपी का ही सहयोगी जेडीयू ने कहा है कि चूँकि प्रधानमंत्री ने साफ़ कर दिया है कि देश में एनआरसी लागू करने की कोई योजना नहीं है, इसलिए एनपीआर लागू करने में कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन सवाल है कि क्या जेडीयू को पता नहीं है कि एनआरसी और एनपीआर जुड़े हुए हैं?
नागरिकता क़ानून, एनआरसी और एनपीआर पर जेडीयू का रवैया भी अजीब रहा है। गृह मंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि 'आप क्रोनोलॉजी समझिए, पहले नागरिकता क़ानून आएगा, फिर एनआरसी आएगी'। उनके इस बयान का साफ़ मतलब था कि एनआरसी और नागरिकता क़ानून जुड़े हुए हैं। यह इससे भी साफ़ है कि जब एनआरसी से लोग बाहर निकाले जाएँगे तो नागरिकता क़ानून के माध्यम से पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बाँग्लादेश के हिंदू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध और ईसाई धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी।
इसके बावजूद जेडीयू ने नागरिकता क़ानून का समर्थन किया। संसद के दोनों सदनों में उसने नागरिकता क़ानून के पक्ष में मतदान किया। लेकिन पिछले महीने ही जब गृह मंत्री अमित शाह ने एनआरसी को लागू करने की घोषणा थी और नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ देश भर में विरोध-प्रदर्शन हो रहे थे तब जेडीयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने कहा था कि मुख्यमंत्री नीतिश कुमार एनआरसी के ख़िलाफ़ हैं। उन्होंने कहा था कि राज्य में एनआरसी को लागू नहीं होने दिया जाएगा। बाद में पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के सी त्यागी ने भी कहा कि जेडीयू एनआरसी के ख़िलाफ़ है। तब जेडीयू बीजेपी का पहला ऐसा सहयोगी दल था जिसने एनआरसी का खुलकर विरोध किया था।
इसी बीच प्रधानमंत्री मोदी ने 22 दिसंबर को दिल्ली में एक चुनावी रैली में कहा था कि 2014 में जब से उनकी पार्टी सरकार में आई है तब से एनआरसी को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई और इस पर 'झूठ फैलाया जा रहा है'। जबकि सच्चाई यह है कि गृह मंत्री कई मौक़ों पर साफ़ कह चुके हैं कि पूरे देश में एनआरसी लागू की जाएगी। उन्होंने संसद में भी साफ़ तौर पर कहा था कि एनआरसी को पूरे देश में लागू किया जाएगा।
कई दलों ने जब इसका विरोध किया तो इसी बीच मोदी सरकार एनपीआर को अपडेट करने की बात कह दी। हालाँकि एनपीआर यूपीए सरकार के दौरान ही शुरू किया गया था, लेकिन इस बार के एनपीआर में कुछ नई जानकारियाँ माँगी गईं। इसमें अपने माता-पिता के जन्म की तारीख़ और जगह की जानकारी भी थी। इसी को लेकर यह कहा जाने लगा कि सरकार एनपीआर के डाटा से एनआरसी लागू करने जा रही है। हालाँकि सरकार ने इसको खारिज कर दिया और कहा कि एनपीआर और एनआरसी में कोई जुड़ाव नहीं है। अमित शाह ने इसी बात को दोहराते हुए कहा कि एनपीआर के डाटा को कभी भी एनआरसी के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, बाद में एक इंटरव्यू में क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि एनपीआर के लिए इकट्ठा किए गए 'कुछ' डाटा का इस्तेमाल एनआरसी के लिए किया भी जा सकता है और नहीं भी।
लेकिन सच्चाई यह है कि सरकार ही पहले कम से कम नौ बार कह चुकी है कि एनआरसी और एनपीआर जुड़े हुए हैं और एनपीआर के डाटा का इस्तेमाल एनआरसी के लिए किया जाएगा।
गृह मंत्रालय की 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर पहले ज़िक्र किए गए क़ानून (नागरिकता अधिनियम) के प्रावधानों के तहत भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरआईसी) के निर्माण की दिशा में पहला क़दम है।’ नवंबर 2014 की शुरुआत में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्यसभा में भी वही बात कही थी- ‘एनपीआर हर आम नागरिक की स्थिति की पुष्टि करके भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरआईसी) बनाने की दिशा में पहला क़दम है।’
इसी कारण माना जा रहा है कि एनपीआर को एनआरसी के लिए तैयार किया जा रहा है। इसी को लेकर पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों में एनपीआर का विरोध हो रहा है। केरल में तो एनपीआर अपडेट नहीं कराने को लेकर विधानसभा में प्रस्ताव भी पारित कर दिया।
लेकिन एनआरसी का विरोध करने वाला जेडीयू अब एनपीआर की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। जेडीयू प्रवक्ता के सी त्यानी ने कहा- ‘यह यूपीए सरकार है जिसने 2010 में जनगणना प्रक्रिया के विस्तार के रूप में एनपीआर पेश किया था। जब तक एनपीआर का डाटा एनआरसी के लिए उपयोग नहीं किया जाता है, हमारे लिए कोई मुद्दा नहीं है। अब जब प्रधानमंत्री ने साफ़ कर दिया है कि एनआरसी को लागू नहीं किया जाएगा तो मामला शांत हो गया है। इसके अलावा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ़ कर दिया है कि एनआरसी को लागू नहीं किया जाएगा; एनपीआर के साथ आगे बढ़ने का अब कोई मुद्दा नहीं है।’
सवाल उठता है कि क्या जेडीयू को एनपीआर और एनआरसी पर सरकार के इस अलग-अलग रवैये और बयानों के बारे में जानकारी नहीं है या उसकी कुछ और मजबूरी है?
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