क्या बिहार में बाढ़ के हालात ने आपको झकझोरा? पटना के अस्पतालों में पानी। तैरती मछलियाँ। पानी में डूबे बेड और ज़िंदगी से जूझते मरीज़। हज़ारों घरों और दुकानों में पानी भरा है। जन-जीवन अस्तव्यस्त है। ऐसी स्थिति कुछ घंटे से नहीं, बल्कि 4 दिन से लगातार है। कम से कम 29 लोगों की मौत हुई है। क्या ये सामान्य हालात हैं?
बाढ़ का ‘सुशासन’: कहीं नीतीश को न ले डूबे ‘बदइंतज़ामी की बाढ़’!
- बिहार
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- 12 Jan, 2020

क्या बिहार में बाढ़ के हालात ने आपको झकझोरा? पटना के अस्पतालों में पानी। तैरती मछलियाँ। पानी में डूबे बेड और ज़िंदगी से जूझते मरीज़। जन-जीवन अस्तव्यस्त है। क्या ये सामान्य हालात हैं?
आम लोगों के लिए तो यह भयावह स्थिति है, लेकिन क्या बिहार सरकार और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी ऐसा ही लगता है? मुख्यमंत्री की सुनिये। वह कहते हैं कि ऐसे हालात के लिए ज़्यादा बारिश ज़िम्मेदार है। लीजिए। हो गया इलाज! आ गया सुशासन! जब सब बारिश ही तय करेगी, ज़िम्मेदारी बारिश की ही होगी तो सुशासन ही सुशासन होगा! मुख्यमंत्री तो कहते हैं कि तैयारियों में कमी नहीं हुई और तत्काल क़दम उठाने में कोई देरी नहीं हुई। फिर अस्पताल में अफरातफरी क्यों थी? क्यों परिजन सड़क पर मरीज़ों को स्ट्रेचर पर ले जाते दिखे? ऐसा लगा मानो सड़क पर स्ट्रेचर को नाव की तरह खेवाया जा रहा हो! हर तरफ़ आम लोगों के ख़ुद से ही ज़िंदगी बचाने की तसवीरें क्यों दिख रही थीं? क्या उप-मुख्यमंत्री को रेस्क्यू करने की कहानी ही बिहार में बाढ़ से निपटने की पूरी तैयारी को बयाँ करती है?