वैश्विक कोरोना आपदा से सबसे अधिक प्रभावित ग़रीब और लाचार ही रहे हैं, लेकिन जब ऐसी लाचारी किसी पूर्व मुख्यमंत्री के परिवार से जुड़ जाती है तो राज्य की बदहाल व्यवस्था ख़ुद ही बयाँ हो जाती है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री का परिवार इसका जीता- जागता उदाहरण है।
बेहद ईमानदार छवि वाले मुख्यमंत्री रहे दिवंगत भोला पासवान शास्त्री के परिवार की पृष्ठभूमि अति- साधारण है। सभी झोपड़ीनुमा घर में रहते हैं और मज़दूरी कर अपनी आजीविका चलाते हैं, लेकिन लगभग 60 दिनों के लॉकडाउन की वजह से बाक़ी मज़दूरों की तरह उन्हें भी कोई काम तक मय्यसर नहीं हो पा रहा था। इस वजह से समूचा परिवार ही भुखमरी के कगार पर आ गया। ख़बर स्थानीय मीडिया में तो आई, लेकिन सत्तारूढ़ दल इससे अनजान रहा।
उधर राज्य के नेता प्रतिपक्ष और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने ख़बर पर संज्ञान लेते हुए परिवार को तत्काल एक लाख रुपये और पर्याप्त राशन मुहैया करवा कर उनसे बातचीत भी की। हालाँकि सत्तारूढ़ गठबंधन का कहना है कि चूँकि बिहार में चुनावी वर्ष है इसलिए नेता प्रतिपक्ष ने इसे मुद्दा बनाने के लिए तुरंत उनके परिजनों से बात कर उनकी मदद की और वे इस घटनाक्रम को बतौर एक राजनीतिक अवसर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लॉकडाउन के दौरान 20 ज़िलों के 40 क्वॉरेंटीन सेंटर का वीडियो कॉन्फ़्रेंसिं के ज़रिए मुआयना कर चुके हैं और उसपर उन्होंने संतोष भी व्यक्त किया है।
राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने गुरुवार को यह दावा किया कि सरकार ने कोरोना संक्रमण को रोकने और लॉकडाउन में परेशान ग़रीबों- मज़दूरों को राहत पहुँचाने में सरकार ने अपनी पूरी ताक़त लगा दी। राजस्व संग्रह में कमी आने के बावजूद ग़रीबों की सेवा में तीन माह के भीतर 8538 करोड़ रुपये ख़र्च किये। सरकार की ओर से यह दावा भी किया गया कि 14 दिनों तक क्वॉरेंटीन किये गए लोगों पर औसत रूप से 5300 रुपये प्रति व्यक्ति ख़र्च किये गये हैं।
सरकार के तमाम दावों के बीच हैरान कर देने वाली बात यह रही कि सरकार के इस पहल से ख़ुद पूर्व मुख्यमंत्री का परिवार ही अछूता रह गया। परिवार कोरोना से तो बचा रहा, लेकिन आर्थिक तनाव और तंगी ने उसे भुखमरी के कगार तक पहुँचा दिया।
उनके परिजनों की यह स्थिति विपक्ष के इस दावे की पुष्टि करता है कि कैसे सरकार की सेवाएँ आम मज़दूरों- ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुँची।
विपक्ष भी सरकार के दावे पर बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है और तमाम ख़र्च की गयी राशि पर एक श्वेत- पत्र जारी कर सर्वदलीय बैठक बुलाकर उसपर चर्चा की माँग कर रहा है।
एक तरफ़ बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री के परिजनों की लगातार उपेक्षा हो रही है और इन सारे घटनाक्रमों के बीच गुरुवार को बिहार के दलित विधायक पार्टी लाइन छोड़कर आरक्षण के मुद्दे पर दलितों को गोलबंद करने की कवायद कर रहे हैं।
ज़ाहिर है भोला पासवान शास्त्री की पुण्यतिथि और जयंती पर तो उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण होते रहे, लेकिन उनके परिवार को ग़रीबी से उबारने का कोई प्रयास किसी भी सरकार के एजेंडे में अब तक नहीं रहा है।
क्वॉरेंटीन सेंटरों के हाल
बिहार में 14 हज़ार से अधिक क्वॉरेंटीन सेंटर थे। उसमें क़रीब 20.5 लाख लोग रहे। सरकार ने इस महीने की 15 तारीख़ से उन्हें बंद करने का फ़ैसला कर लिया है। लॉकडाउन के दौरान राज्य स्तर पर चल रहे इन क्वॉरेंटीन सेंटरों पर कई अनियमितताएँ भी दिखीं। कटिहार, सीतामढ़ी, बाँका, नवादा आदि कई ज़िलों में क्वॉरेंटीन किये गए प्रवासियों द्वारा प्रशासन के ख़िलाफ़ विरोध की ख़बरें आयीं तो कई प्रवासी केंद्रों से भाग गए। वहीं अलग-अलग जगहों से घर आने के क्रम में विभिन्न घटनाओं के चलते लगभग 24 लोगों की मृत्यु हो गयी।
स्वास्थ्य विभाग के आँकड़ों के अनुसार बिहार में गुरुवार तक कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या 4452 हो गयी है और इससे मरने वालों की संख्या 29 हो गयी है।
भोला पासवान तीन बार रहे थे मुख्यमंत्री
21 सितम्बर, 1914 को पूर्णिया ज़िले के केनगर प्रखंड अंतर्गत बैरगाछी गाँव में जन्मे भोला पासवान शास्त्री बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री थे। उन्होंने तीन बार मुख्यमंत्री पद की ज़िम्मेवारी (वर्ष 1967 में तीन महीने, 1968 में छह महीने और 1969 में 28 दिनों तक) संभाली। बेहद ईमानदार छवि वाले भोला पासवान शास्त्री राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष, केंद्र में मंत्री और विधानसभा में चार बार विपक्ष के नेता भी रहे थे। उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी। परिवार में उनके भतीजे बिरंची पासवान समेत पोते बसंत और कपिल पासवान आदि हैं जो पूर्णिया शहर में मज़दूरी कर अपना जीवन-यापन करते हैं।
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